-पीर अली ने कहा था, कुछ अवसर ऐसे भी आते हैं, जहां जान की परवाह न करना ही ईमानदारी पटना . मनुष्य के जीवन में अधिकतर अवसर ऐसे होते हैं, जहां जान बचाना अक्लमंदी है, लेकिन कुछ अवसर ऐसे भी आते हैं, जहां जान की परवाह न करना ही ईमानदारी है. उक्त जवाब पटना के कमिश्नर विलियम टेलर को फांसी पर लटकने वाले पटना के पहले क्रांतिवीर पीर अली ने उस समय दिया, जब फांसी पर चढ़ाने से पहले उनसे पूछा गया कि क्या वह अब भी कोई ऐसा काम करने को तैयार हैं, जिससे उसकी जान बच जाये. विलियम टेलर ने 1857 के विद्रोह पर लिखी अपनी किताब क्रायसिस में आगे लिखा है कि उसके बाद मेरी कठोरता पर व्यंग्य करते हुए उसने कहा कि तुम मुझको और मेरे जैसे लोगों को प्रतिदिन फांसी देते रहो, मगर याद रखो कि मेरी जगह पर हजारों पैदा होते रहेंगे और तुम्हारा दमनात्मक मकसद कभी प्राप्त नहीं होगा. फांसी की सजा के बावजूद चेहरे पर नहीं थी बेचैनी, मायूसी और भय 1857 के विद्रोह का दमन करने और इस क्रम में कई लोगों को फांसी पर चढ़ाने वाले पटना के उस समय के क्रूर ब्रिटिश कमिश्नर विलियम टेलर ने पीर अली खान का विवरण देते हुए आगे लिखा है कि वह निडर, संजीदा, गंभीर और धार्मिक दीवानों का एक आदर्श था. जब अंतिम सजा (फांसी) का आदेश उसके विरुद्ध दिया जा चुका, तो मैंने उससे ऐसे कुछ प्रश्न पूछने के इरादे से, जिनसे षडयंत्र के संबंध में कुछ और जानकारी प्राप्त हो सके, उसको एक विशेष कमरे में बुलाया. जंजीरों से बुरी तरह जकड़ा हुआ, मैले और गंदे कपड़े पहने हुए जिन पर हर जगह उसके जख्मों के खून के गहरे धब्बे थे, वह मेरे और दूसरे अंग्रेज साथियों के सामने लाया गया. उसको मालूम था कि उसके जीवन की अंतिम आस भी समाप्त हो चुकी है. मगर उसके चेहरे पर थोड़ी भी बेचैनी, मायूसी और भय नहीं प्रकट हो रहा था. झूठ बोल बच सकते थे, पर सच कहा और चढ़ गये फांसी पर पीर अली के गिरफ्तार हाेने की कहानी भी उनकी निर्भीकता से ही जुड़ी है. तीन जुलाई 1857 को पटना में हंगामा शुरू हुआ और ब्रिटिश अफीम कोठी के एजेंट डॉ लाॅयल की हत्या कर दी गयी. पटना सिटी के मुहल्ला गुरहट्टा में पुस्तक विक्रेता का काम करने वाले पीर अली की इस विद्रोह और हंगामे में महत्वपूर्ण भूमिका थी. पांच जुलाई को जब वे घायल अवस्था में पुलिस के द्वारा पकड़े गये तो ब्रिटिश पुलिस का सिपाही उनको पहचानता नहीं था. वे झूठ बोलकर बच सकते थे लेकिन पूछने पर उन्होंने अपना सही नाम बता दिया. महज दो दिनों के भीतर ही कमिश्नर टेलर और पटना के मजिस्ट्रेट दोनों ने मामले की सुनवाई कर उनको फांसी की सजा सुना दी और फैसले के तीन घंटे के भीतर उनको फांसी पर चढ़ा भी दिया गया.
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