संवाददाता, पटनाआधुनिक जीवनशैली में इयरफोन के अधिक इस्तेमाल से युवाओं में सुनने की क्षमता कम हो रही है. साथ ही सड़क क्रॉसिंग के समय भी इनके इस्तेमाल से शहर में दुर्घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं. विशेषज्ञों के अनुसार, कई घंटों तक लगातार इयर फोन और म्यूजिक तेज आवाज में सुनने की वजह से खासकर बच्चों और युवाओं की सुनने की क्षमता कमजोर हो रही है . बच्चे अपनी कक्षा में शिक्षकों को सही से सुन नहीं पा रहे थे. लगातार कम सुनने की वजह से पढ़ाई में पिछड़ने पर शिक्षकों ने इसकी शिकायत परिजनों से की. परिजन बच्चों को लेकर शहर के सरकारी व प्राइवेट अस्पताल के इएनटी के डॉक्टरों के पास पहुंच रहे हैं. इसका खुलासा शहर के पीएमसीएच, आइजीआइएमएस, एनएमसीएच व पटना एम्स के इएनटी विभाग की ओपीडी में आने वाले मरीजों के इलाज के बाद हुआ है.
अस्पतालों में मरीजों का चल रहा हियरिंग लॉस ट्रीटमेंट
इन चारों मेडिकल कॉलेज अस्पतालों में रोजाना करीब 10 से 15 मरीज कम सुनने की समस्या लेकर पहुंच रहे हैं, जिनमें से अधिकांश इयरफोन के अत्यधिक इस्तेमाल से परेशान हैं. वर्तमान में, इन अस्पतालों में लगभग 85 ऐसे मरीज हैं जिनका इलाज चल रहा है. इनमें सबसे अधिक पीएमसीएच में 27, एनएमसीएच में 16, एम्स में 20 और आइजीआइएमएस में 18 कुल 81 मरीजों का हियरिंग लॉस ट्रीटमेंट चल रहा है. हालांकि कानों की सफाई, दवा आदि माध्यमों से इलाज के बाद कई मरीज ठीक हो गये हैं. डॉक्टरों का कहना है कि उनके पास कानों में दर्द, परेशानी और संक्रमण की शिकायतें लेकर ज्यादा लोग आ रहे हैं. ज्यादातर लोग आठ घंटे से ज्यादा समय तक हेडफोन का इस्तेमाल करते हैं, जिससे कानों पर काफी जोर पड़ता है और इससे संक्रमण का प्रसार हो सकता है. इनमें सबसे अधिक 11 साल से 40 उम्र वाले लोग शामिल हैं.रात में इयरफोन लगा कर रील्स देखना सही नहीं
आइजीआइएमएस के इएनटी विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ राकेश कुमार सिंह ने बताया कि आइजीआइएमएस में कम सुनने वाले मरीजों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है. उन्होंने विशेष रूप से रात के समय इयरफोन लगाकर रील्स देखने की बढ़ती प्रवृत्ति पर चिंता व्यक्त की. इसके साथ ही ऑनलाइन क्लास, मोबाइल पर बातचीत और म्यूजिक सुनने के दौरान बच्चे और बड़े खूब इयरफोन व हेडफोन का इस्तेमाल कर रहे हैं. सोशल मीडिया पर ”लाइक” और ”कमेंट” के चक्कर में युवा पूरी रात रील्स बनाने और देखने में लगे रहते हैं, जिसका सीधा असर उनके कानों पर पड़ रहा है. ऐसे लोग कानों में दर्द, परेशानी और संक्रमण की शिकायतें लेकर आ रहे हैं.इयर फोन पर देर तक म्यूजिक सुनने से कान की नसें हो जाती हैं डेड
दानापुर अनुमंडलीय अस्पताल व स्वास्थ्य विभाग की चिकित्सा पदाधिकारी (इएनटी) डॉ शाहीन जफर ने कहा कि लाउड वॉल्यूम में म्यूजिक सुनने से मानसिक समस्या होने के साथ-साथ हार्ट इश्यू और ब्रेन को इनडायरेक्ट खतरा हो सकता है. कई यंगस्टर्स इस बीमारी को सीनियर सिटीजन की समस्या मानते हैं, लेकिन हियरिंग लॉस की समस्या अब 20 वर्ष की उम्र में ही देखने को मिल रही है. वहीं इयर फोन पर लंबे समय तक लाउड म्यूजिक सुनने से कान की नसें डेड हो जाती हैं, जिससे सुनने की क्षमता पूरी तरह से चली जाती है. प्रतिदिन आठ घंटे 90 डेसीबल साउंड सुन सकते हैं. इससे ज्यादा साउंड कान के पर्दे खराब कर सकता है.स्कूली बच्चे हेडफोन का इस्तेमाल नहीं करें
पीएमसीएच इएनटी विभाग के डॉ आदित्य कौशल का कहना है कि वैसे तो स्कूली बच्चों को हेडफोन का इस्तेमाल ही नहीं करना चाहिए. अगर वे लैपटॉप या कंप्यूटर के जरिये ऑनलाइन कक्षा से जुड़ रहे हैं तो इनकी आवाज ही पर्याप्त है. डॉ सत्येंद्र ने बताया कि बच्चों व बड़ों की सुनने की 60 प्रतिशत से अधिक क्षमता जाने पर कारगर नहीं होता है. ऐसे बच्चों व बड़ों को सुनने की मशीन (हियरिंग एंड) लगाने की सलाह दी जाती है. वहीं बाकी मरीजों को दवा से ठीक कर दिया जाता है.परिजनों ने बताया -हियरिंग लॉस से हुई
परेशानी
रूपसपुर के रहने वाले पवन राय के 16 वर्षीय बेटे अंशु कुमार
को रील्स बनाने के साथ तेज आवाज में म्यूजिक सुनने की आदत थी. पिता ने बताया कि कुछ महीने बाद उसको कोई भी बात बोलने पर दोबारा सुनने की आदत सी पड़ गयी. संदेह होने के बाद उसे आइजीआइएमएस लेकर पहुंच गये, जहां हियरिंग लॉस के बारे में बताया गया. हालांकि कान की सफाई व दवा आदि सब सुधार हो रहा है.कंकड़बाग के हनुमान नगर के रहने वाले संजय पांडे के 18 साल के बेटे आलोक रंजन
का इलाज पीएमसीएच में चल रहा है. मां बेबी कुमारी ने बताया कि आलोक पिछले दो साल से इयरफोन का अधिक इस्तेमाल करता है. यहां तक कि रात को सोते समय पर वह मोबाइल पर गाना सुनना या फिर गेम आदि खेलने की आदि की आदत हो गयी. कान में तेज दर्द के बाद उसे डॉक्टर के पास लेकर गये, जहां जांच के बाद डॉक्टर हियरिंग लॉस बताया. डॉक्टर ने तत्काल प्रभाव से ज्यादा देर तक इयरफोन लगाने से मना किया.सावित्री देवी अपने छोटे भाई विनोद कुमार
को लेकर पीएमसीएच में भर्ती हैं. विनोद पेशे से ट्रैक्टर चालक है. ड्राइविंग के दौरान वह तेज आवाज में गाना सुनता था. ऐसे में कान से कम सुनाई देने और तेज दर्द होने के बाद अपने भाई को लेकर पीएमसीएच आयी, जहां डॉक्टरों ने कान के नस में समस्या बतायी. जांच में पता चला कि लाउड वॉल्यूम में म्यूजिक सुनने की आदत पड़ गयी थी. फिलहाल विशेषज्ञ डॉक्टरों की देखरेख में इलाज जारी है.90 डेसिबल के ऊपर आवाज नुकसानदायक
डॉक्टरों के मुताबिक, 90 डेसिबल से अधिक आवाज लगातार सुनने से सुनाई देने की क्षमता धीरे-धीरे कम होती जाती है. अक्सर बच्चे मोबाइल पर इयर फोन लगाकर और टीवी में तेज आवाज में संगीत सुनते हैं. डीजे और अन्य म्यूजिक सिस्टम में 120 डेसिबल की आवाज होती है, जो कानों के लिए बेहद नुकसानदेह है. युवाओं को बड़े स्पीकरों के सामने लंबे समय तक रहने से बचना चाहिए. लंबे समय तक इयरफोन का उपयोग करने से इयर वैक्स अंदर चले जाते हैं. इससे बाहर जाने का कोई रास्ता नहीं होने से दर्द होता है. जिनको सुनने की समस्या है उन्हें लंबे समय तक तेज आवाज में संगीत सुनने से बचना चाहिए. अगर इयर फोन जरूरी है तो बेहतर है कि हैडफोन का उपयोग करें. लगातार हैड फोन सुनने के बदले हर 15-15 मिनट का ब्रेक लें.हियरिंग लॉस के लक्षण
– कान में सीटी की आवाज सुनाई देना- कम सुनाई देना, किसी की बात ठीक से सुनाई नहीं देना- फोन पर बात करने में परेशानी- तेज आवाज में टीवी देखना या गाने सुनना- चक्कर आना, सनसनाहट, नींद नहीं आना, सिर दर्द, कान में दर्द- चिड़चिड़ापन, एंग्जाइटी और ब्लड प्रेशर बढ़ना
बचाव
– महीने में एक बार कानों की जांच करवाएं- लंबे समय तक फोन पर बात नहीं करें- अगर आपका प्रोफेशन कॉल सेंटर या फोन पर काम करने का है तो प्रति घंटे 10 मिनट का ब्रेक लें, फ्रेश एयर में जाएं- जिनके कानों का ऑपरेशन हुआ है, सुनने में दिक्कत है उन्हें इस पर विशेष ध्यान देना चाहिए
डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है