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Chhath puja 2020: चार दिवसीय महापर्व छठ की कल से शुरूआत, जानें सूर्य के उपासना का इस पर्व में क्या है महत्व

सूर्योपासना के लिए प्रसिद्ध पर्व है छठ. मूलत: सूर्य षष्ठी व्रत होने के कारण इसे छठ कहा गया है. यह पर्व वर्ष में दो बार मनाया जाता है. पहली बार चैत्र में और दूसरी बार कार्तिक में. चैत्र शुक्ल पक्ष षष्ठी पर मनाये जाने वाले छठ पर्व को चैती छठ व कार्तिक शुक्ल पक्ष षष्ठी पर मनाये जाने वाले पर्व को कार्तिकी छठ कहा जाता है. पारिवारिक सुख-समृद्धी तथा मनोवांछित फल प्राप्ति के लिए यह पर्व मनाया जाता है. स्त्री और पुरुष समान रूप से इस पर्व को मनाते हैं.

सूर्योपासना के लिए प्रसिद्ध पर्व है छठ. मूलत: सूर्य षष्ठी व्रत होने के कारण इसे छठ कहा गया है. यह पर्व वर्ष में दो बार मनाया जाता है. पहली बार चैत्र में और दूसरी बार कार्तिक में. चैत्र शुक्ल पक्ष षष्ठी पर मनाये जाने वाले छठ पर्व को चैती छठ व कार्तिक शुक्ल पक्ष षष्ठी पर मनाये जाने वाले पर्व को कार्तिकी छठ कहा जाता है. पारिवारिक सुख-समृद्धी तथा मनोवांछित फल प्राप्ति के लिए यह पर्व मनाया जाता है. स्त्री और पुरुष समान रूप से इस पर्व को मनाते हैं.

 लोक मातृका षष्ठी की पहली पूजा सूर्य ने ही की

लोक परंपरा के अनुसार सूर्यदेव और छठी मइया का संबंध भाई-बहन का है. लोक मातृका षष्ठी की पहली पूजा सूर्य ने ही की. यह पर्व चार दिनों का है. भैयादूज के तीसरे दिन से यह आरम्भ होता है. पहले दिन सेन्धा नमक, घी से बना हुआ अरवा चावल और कद्दू की सब्जी प्रसाद के रूप में ली जाती है. अगले दिन से उपवास आरम्भ होता है. व्रति दिनभर अन्न-जल त्याग कर. रात्रि में खीर बनाकर, पूजा करने के उपरान्त प्रसाद ग्रहण करते हैं, जिसे खरना कहते हैं.

पूजा में पवित्रता का रखा जाता है विशेष ध्यान

तीसरे दिन डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य यानी दूध अर्पण करते हैं. अंतिम दिन उगते हुए सूर्य को अर्घ्य चढ़ाते हैं. पूजा में पवित्रता का विशेष ध्यान रखा जाता है; लहसून, प्याज वर्जित होता है. जिन घरों में यह पूजा होती है, वहां भक्तिगीत गाये जाते हैं. अंत में लोगों को पूजा का प्रसाद दिया जाता हैं

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संतान को लंबी आयु का मिलता है वरदान

पौराणिक मान्यता के अनुसार इस व्रत को करने से संतान को लंबी आयु का वरदान मिलता है और इसलिए छठ पूजा की जाती है. छठ पूजा में सूर्य देव की उपासना क्यों की जाती है इसे लेकर कई मान्यताएं हैं.एक मान्यता के मुताबिक छठ की शुरुआत महाभारत काल में हुई थी. जिसकी शुरुआत सूर्यपुत्र कर्ण ने की थी. कर्ण हर दिन घंटों तक कमर तक पानी में खड़े होकर भगवान सूर्य को अर्घ्य दिया करते थे. ऐसा माना जाता है कि सूर्य देव की कृपा से ही वो महान योद्धा बने. आज भी छठ में इसी परंपरा के तहत अर्घ्य देने की रीत है.

राजा प्रियंवद को संतान की हुई प्राप्ति

वहीं एक और मान्यता के अनुसार, राजा प्रियंवद जो नि:संतान थे. उन्हें तब महर्षि कश्यप ने पुत्रेष्टि यज्ञ कराया. राजा ने रानी मालिनी को यज्ञ आहुति के लिए बनाई गई खीर प्रसाद के रूप में दी. जिसके प्रभाव से उन्हें एक पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई. लेकिन वह बच्चा मरा हुआ पैदा हुआ.पुत्र वियोग में डूबे राजा प्रियंवद अपने मृत्य पुत्र के शरीर को लेकर श्मशान चले गए और अपने प्राण को त्यागने का प्रयास करने लगे. तभी भगवान की मानस कन्या देवसेना प्रकट हुई. उन्होंने प्रियंवद से कहा कि सृष्टि की मूल प्रवृत्ति के छठे अंश से उत्पन्न होने के कारण ही मैं षष्ठी कहलाती हूं. उन्होंने राजा से कहा कि हे राजन तुम मेरा पूजन करो और दूसरों को भी प्रेरित करो. राजा ने पुत्र इच्छा की भावना से सच्चे मन के साथ देवी षष्ठी का व्रत किया और उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई. यह पूजा कार्तिक शुक्ल षष्ठी को हुई थी. तब से लोग संतान प्राप्ति के लिए छठ पूजा का व्रत करते हैं.

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