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Bihar News: नवादा. आशुतोष कुमार. झारखंड और बिहार के सीमावर्ती इलाकों के लिए बहुप्रतीक्षित सपना अब हकीकत के बेहद करीब है. राजगीर–तिलैया–कोडरमा रेलवे लाइन, जिसे पूर्वी भारत की सबसे महत्वाकांक्षी रेल परियोजनाओं में गिना जा रहा है, अपने अंतिम निर्माण चरण में पहुंच चुकी है. रेलवे सूत्रों के अनुसार यह ऐतिहासिक रेलखंड मार्च 2026 तक पूरी तरह परिचालन के लिए तैयार हो जाएगा. करीब 64 किलोमीटर लंबी यह रेललाइन न केवल दूरी घटाएगी, बल्कि दशकों से उपेक्षित क्षेत्रों में रोजगार, व्यापार, शिक्षा, स्वास्थ्य और पर्यटन की नई रफ्तार भर देगी. अब तक 43 किलोमीटर ट्रैक का कार्य पूरा किया जा चुका है, जबकि शेष 21 किलोमीटर पर युद्धस्तर पर काम जारी है.
जब पटरियों पर दौड़ेगा विकास
इस रेललाइन के चालू होते ही राजगीर, तिलैया, नवादा, बरही और कोडरमा सीधे रेल नेटवर्क से जुड़ जाएंगे. इससे हजारों यात्रियों की रोज़मर्रा की जिंदगी आसान होगी. छात्रों को जहां शिक्षा के नए अवसर मिलेंगे, मरीजों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं तक पहुंच मिलेगी और स्थानीय किसानों व व्यापारियों को बड़े बाजारों से जुड़ने का रास्ता खुलेगा.
बौद्ध सर्किट को मिलेगा अंतरराष्ट्रीय विस्तार
यह रेलमार्ग राजगीर, नालंदा और पावापुरी जैसे विश्वविख्यात बौद्ध स्थलों को जोड़ते हुए आध्यात्मिक और सांस्कृतिक पर्यटन का नया द्वार खोलेगा. देश ही नहीं, विदेशों से आने वाले बौद्ध श्रद्धालुओं के लिए यह मार्ग एक वरदान साबित होगा. पर्यटन विशेषज्ञों का मानना है कि यह लाइन बौद्ध पर्यटन सर्किट को वैश्विक मानचित्र पर और मजबूती से स्थापित करेगी.
इंजीनियरिंग का चमत्कार
रेलवे अधिकारियों के अनुसार यह खंड देश के सबसे तकनीकी रूप से चुनौतीपूर्ण रेल प्रोजेक्ट्स में शामिल है. घने जंगलों, दुर्गम पहाड़ियों और सुदूर इलाकों को चीरते हुए तैयार हो रही इस लाइन में 4 आधुनिक सुरंगें और 7 बड़े पुल शामिल हैं, जिनमें से कई ऐसे क्षेत्रों में बनाए गए हैं जहां पहले बुनियादी ढांचे की कल्पना तक नहीं थी.
पुल इतने बड़े हैं कि नीचे पूरा जंगल समा जाए
तिलैया-कोडरमा रेलखंड में जो पुल बनाए जा रहे हैं, वे साधारण पुल नहीं हैं. इस मार्ग में कुल 7 बड़े पुल बनाए जा रहे हैं, जो गहरी घाटियों और जंगलों के ऊपर से गुजरते हैं. कई जगहों पर पुल इतने ऊंचे हैं कि नीचे से देखने पर पेड़-पौधे, जंगल और पहाड़ी रास्ते बहुत छोटे दिखाई देते हैं. रेलवे ने इन पुलों को इस तरह बनाया है कि तेज बारिश, बाढ़ और भारी ट्रेन का वजन भी इन्हें हिला न सके. ग्रामीण इलाकों के लोगों का कहना है कि उन्होंने अपने जीवन में इतने बड़े और मजबूत पुल पहले कभी नहीं देखे.
पहाड़ के सीने में बनी सुरंग
इस रेललाइन में कुल 4 सुरंगें बनाई जा रही हैं. ये सुरंगें सीधे पहाड़ को काटकर बनाई गई हैं. सुरंग के अंदर इतनी जगह है कि रेल इंजन और डिब्बे आराम से निकल सकें. कुछ सुरंगों की चौड़ाई करीब 3 मीटर तक है, जबकि छोटी सुरंगें भी मजबूत पत्थर और कंक्रीट से बनाई गई हैं. जब ट्रेन सुरंग में घुसेगी तो कुछ पल के लिए बाहर की रोशनी गायब हो जाएगी, फिर सामने से उजाला दिखेगा और ट्रेन सीधे पहाड़ के उस पार निकल आएगी. यह नजारा यात्रियों के लिए रोमांचक और यादगार होगा.
जंगल और जानवरों का भी रखा गया पूरा ध्यान
रेलवे ने सुरंग और पुल बनाते समय इस बात का खास ख्याल रखा है कि हाथी और दूसरे जंगली जानवरों का रास्ता बंद न हो. इसके लिए जगह-जगह वन्यजीव गलियारे बनाए गए हैं, ताकि जानवर सुरक्षित आ-जा सकें. यानी विकास भी हो और जंगल भी बचे. इसी सोच के साथ यह काम किया जा रहा है. यह पहल दर्शाती है कि विकास और प्रकृति एक-दूसरे के विरोधी नहीं, बल्कि पूरक हो सकते हैं.
रांची से राजगीर अब और करीब
लाइन चालू होने के बाद राजगीर–रांची यात्रा का समय 3 से 4 घंटे तक कम हो जाएगा. इससे यात्रियों को समय और खर्च—दोनों की बड़ी बचत होगी. आगामी स्टेशन, खासकर कोडरमा और नवादा, केवल स्टेशन नहीं बल्कि स्थानीय संस्कृति के जीवंत केंद्र होंगे. यहां, लोक कला, लकड़ी शिल्प, सौर ऊर्जा आधारित ढांचा, स्थानीय पहचान को राष्ट्रीय मंच देगा. पीडब्लूआई के इंजीनियर शैलेंद्र कुमार ने कहा कि तिलैया कोडरमा रेलखंड पर निर्माण कार्य युद्ध स्तर पर जारी है. वैसे तो डेडलाइन मार्च 2026 ही निर्धारित है. लेकिन यह बढ़कर अक्टूबर नवंबर तक जा सकती है. वर्ष 2026 के अंत तक परियोजना पूरी तरह से सुचारू रूप से चालू हो जाएगी.
अब नए अध्याय की शुरुआत
इस रेललाइन को वर्ष 2001-02 के रेल बजट में तत्कालीन रेल मंत्री नीतीश कुमार की पहल पर मंजूरी मिली थी, लेकिन इसे आकार लेने में लगभग दो दशक लग गए. परियोजना को अंतिम रूप देने के लिए रेल मंत्रालय ने 2025-26 के बजट में 446.74 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं. राजगीर-तिलैया-कोडरमा रेललाइन सिर्फ एक रेल परियोजना नहीं, बल्कि क्षेत्रीय एकीकरण, सांस्कृतिक संरक्षण, दूरदर्शी अवसंरचना विकास की मिसाल बनने जा रही है. यह रेलखंड आने वाले वर्षों में पूर्वी भारत के रेलवे विकास के लिए नई दिशा और नया मानक स्थापित करेगा.
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