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Bihar chaupal-1: सुन लीजिए…, ई पैसा नेताजी खेत जोत कर नहीं कमाये हैं

Bihar chaupal: जनता की समस्या से नेताजी लोग जिस तरह से मुंह मोड़ लेते हैं, उसी तरह पैसे देने की चिंता से मुक्त होकर समर्थक ने गुटखे की एक पुड़िया मुंह में डाल ली. उसका मुंह गुटखे से पैक हो गया था. गर्दन लंबी कर वो आगे लगे जाम की तरफ देखने लगा.

Bihar chaupal: मनोज कुमार, पटना. गोपालगंज में सुबह-सुबह ही सड़क पर काफी भीड़ दिख रही थी. गाड़ियों का काफिला जा रहा था. तंग सड़क पर जाम की नौबत थी. स्कॉर्पियो, बोलेरो से काफिला लैस था. गाड़ियों पर झंडे-बैनर टंगे थे. बैनर पर एक नेताजी की हाथ जोड़े तस्वीर लगी थी. तस्वीर उनके चेहरे के असल रंग से जुदा थी. खैर…. तस्वीर में भी असल रंग ही दिखे तो, फिर तो हो गया. सड़क के बगल वाली पान की दुकान पर खड़े पांच-छह लोगों की निगाह काफिले पर टिकी थी. जाम होने के कारण गाड़ियों की रफ्तार थम गयी थी. तभी गर्दन में पार्टी का पट्टा लपेटे एक युवा समर्थक उतरा. जल्दी में गुटखे की पुड़िया मांगी. जितनी तेजी में वो था, उससे अधिक स्पीड में पान दुकानदार ने उसे गुटखे की पुड़िया थमा दी.

मोबाइल से डाल दीजिए पैसा

ये सब तो बहुत तेजी में हुआ. जैसे ही कार्यकर्ता ने 20 रुपये के लिए पांच सौ का नोट दुकानदार को थमाया, नजारा बदल गया. दुकानदार ने नाराज लहजे में कहा- अरे 20 रुपया दीजिए. ई. पनसऊवा भोरे-भोरे हम कहां तुरायेंगे. नहीं तो, मोबाइल से पैसा डाल दीजिए. पहले से दुकान पर खड़े पांच-छह लोगों को ये सब देखके रहा नहीं गया. वे आपस में गपियाने लगे. पान दुकानदार की तरफ देखते हुए कमलेश कुशवाहा ने कहा- देखिए… बाजार में पांच सौ का नोट का अब बाढ़ आने वाला है. नवंबर लास्ट तक ई चलेगा. दुकान में अब खुदरा पैसा रखिए. पटना इहे राह से लोग जायेगा. लोग रास्ता भर चाह-पान करते आगे बढ़ेगा. सड़क जाम हो गया था. समर्थक भी इत्मीनान हो गया था कि गाड़ी तुरंते नहीं खुलेगी. अब थोड़ा रिलैक्स फील कर वो बोला- देखिए न भईया. कुछ जुगाड़ कीजिए. मोबाइल में हमरा बीसो रुपया नहीं है, नहीं तो आपको गूगल कर देते. पांच-पांच सौ का दूगो नोटवे है. पूरा पर्स झार के दिखा दिया. जाम लंबा होने के कारण अब पता लग गया था कि गाड़ी आधे घंटे बाद ही खुलेगी.

मुंह में डाल ली गुटखे की एक पुड़िया

जनता की समस्या से नेताजी लोग जिस तरह से मुंह मोड़ लेते हैं, उसी तरह पैसे देने की चिंता से मुक्त होकर समर्थक ने गुटखे की एक पुड़िया मुंह में डाल ली. उसका मुंह गुटखे से पैक हो गया था. गर्दन लंबी कर वो आगे लगे जाम की तरफ देखने लगा. पहले से खड़े लोगों की बतकही फिर शुरू हो गयी. पान दुकानदार को लोग शैलेश भाई कहते हैं. रवींद्र वर्मा ने कहा- शैलेश भाई इहो बढ़िया धंधा है. नेताजी के संगे-संगे भर चुनाव रहिए. दूनो टाइम भोजन. ऊपर से हजार दू हजार बगली में भी. अभिए देख लीजिए. मोबाइल में 20 रुपिया भी नहीं है. मगर, बगली में दू गो पनसऊवा है. ई पैसा कहां से आया होगा, ई हम बताएं कि आप बूझ गये. वर्मा जी ई-बात दो बार दुहरा दिये. दूसरी बार ई बात कहने के समय कार्यकर्ता से उनकी नजर टकरा गयी. वर्माजी उसका भाव देखकर समझ गये कि इसने सब बात सुन लिया है और बूझ भी गया है. उसको करीब आता देख, कमलेश भाई थोड़ा सहमे.

रैली में जाने के लिए मिलता है एक हजार रुपइया

मगर, जैसे ही समर्थक पास आया. माहौल बदल गया. उसने कहा- आपलोग का सब बात हम सुने हैं. सही बात है. हमको रैली में जाने के लिए एक हजार रुपइया मिला है. मगर, हमरा भी बात सुनिए. बीए किये हैं. नौकरी का खूब तैयारी किये. कई साल त बहाली का फारमे नहीं आया. कई बार पेपर लीक हो गया. जोगाड़-जंतर हमरा पास था नहीं. न खेत है न बधार. कुछो-कुछो काम करके दिन काट रहे हैं. अब ई चुनाव आ गया है. ऐसे में हजार-दू हजार रैली में जाने के लिए मिल जा रहा है, तो का दिक्कत है. उसकी आंखों में नाराजगी थी. आक्रोश था. एक ही सांस में सब बोल दिया. यहां ही नहीं रूका. कहा- ई पइसवा… नेताजी अपन खेत में खटकर नहीं कमाये हैं. हम रैली में आये हैं. मगर, बूझते सब है. हमरा मुंह मत खोलवाइये. हम पढ़े-लिखे हैं. उसने कहा- हम ही पइसा नहीं लिये हैं. बहुत लोग पैसा लेकर रैली में आया है. मगर, ई हो बात सही है कि सब लोग पैसा लेकर रैली में नहीं आया है. बहुत लोग पार्टी के विचार, समर्थक, कार्यकर्ता, नेता होने की वजह से भी रैली में आया है.

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Ashish Jha
Ashish Jha
डिजिटल पत्रकारिता के क्षेत्र में 10 वर्षों का अनुभव. लगातार कुछ अलग और बेहतर करने के साथ हर दिन कुछ न कुछ सीखने की कोशिश. वर्तमान में पटना में कार्यरत. बिहार की सामाजिक-राजनीतिक नब्ज को टटोलने के लिए प्रयासरत. देश-विदेश की घटनाओं और किस्से-कहानियों में विशेष रुचि. डिजिटल मीडिया के नए ट्रेंड्स, टूल्स और नैरेटिव स्टाइल्स को सीखने की चाहत.

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