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लालू मुलायम से दूरी, यूपी चुनाव में रालोद के अजीत सिंह बनेंगे नीतीश की धुरी

आशुतोष के पांडेय पटना / नयी दिल्ली : जनता दल के टुकड़े हजार हुए, कोई यहां गिरा कोई वहां गिरा. जनता दल के एक होने के सवाल पर पुराने फिल्मी गाने पर बनी ये राजनीतिक पैरोड़ी प्रो. नवल किशोर चौधरी सुनाते हैं.बिहार की सियासत को दशकों से समझने वाले प्रो. नवल किशोर चौधरी वैसे तो […]

आशुतोष के पांडेय

पटना / नयी दिल्ली : जनता दल के टुकड़े हजार हुए, कोई यहां गिरा कोई वहां गिरा. जनता दल के एक होने के सवाल पर पुराने फिल्मी गाने पर बनी ये राजनीतिक पैरोड़ी प्रो. नवल किशोर चौधरी सुनाते हैं.बिहार की सियासत को दशकों से समझने वाले प्रो. नवल किशोर चौधरी वैसे तो अर्थशास्त्र के ज्ञाता हैं लेकिन राजनीतिक समीकरणों पर भी अपने बेबाक विचार जरूर रखते हैं. खबरें आ रही हैं कि नयी दिल्ली पहुंचे नीतीश कुमार एक बार फिर प्रयोगधर्मी राजनीति की ओर कदम बढ़ा रहे हैं. इस बार उनके साथ हैं राष्ट्रीय लोक दल रालोद के प्रमुख अजीत सिंह. चर्चा है कि नीतीश कुमार उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव और 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव को देखते हुए इस बातचीत को आगे बढ़ा रहे हैं. नीतीश कुमार ने अजीत सिंह की पार्टी को जदयू में विलय का प्रस्ताव दिया है. राजनीतिक सूत्र कहते हैं कि प्रस्ताओं के साथ अजीत सिंह को उच्च सदन में उपस्थित कराने का भी प्रस्ताव दिया गया है. यानी बिहार के सियासी गलियारों से गुजरते हुए राज्यसभा पहुंचाने की भी तैयारी का प्रस्ताव दे दिया गया है. हालांकि सियासत में सारे प्रस्ताव जारी हो जाते हैं लेकिन खबरों में कहा जाता है अभी आखिरी फैसला बाकी है.

उत्तर प्रदेश में पांव जमाने की कवायद

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पार्टी की राजनीति हो या प्रदेश की, नीतीश कुमार के बारे में कहा जाता है कि वह प्रयोग जरूर करते हैं. सियासी पंडित मानते हैं कि जब प्रयोग होता है, तभी उसके सफल और असफल होने की बात सामने आती है. हालांकि लोकसभा चुनाव के कुछ वक्त पहले तक जब भी नीतीश कुमार दिल्ली दौरे से लौटते थे, तो एक बात जरूर कहते थे. बातचीत जारी है, एक फेडरल फ्रंट जरूर सामने आयेगा. उनका यह सपना पूरा नहीं हुआ, लेकिन बिहार चुनाव में उनके प्रयासों ने एक फ्रंट जरूर खड़ा कर दिया. राजनीतिक जानकार मानते हैं कि जदयू उत्तर प्रदेश की सियासत में अपने जनाधार को मजबूती देना चाहता है. नीतीश कुमार को पता है, यदि अजीत सिंह के कंधे का सहारा मिले, तो यूपी में ज्यादा नहीं लेकिन पार्टी की धमक जरूर हो जायेगी. यह धमक राजनीतिक समीकरण के रूप में आगामी लोकसभा चुनाव में जरूर उन्हें फायदा पहुंचायेगी. हालांकि शुरुआती खबरें जो आ रही हैं उसमें नीतीश की सियासत के इस नये शतरंज में राजनीति के दो माहिर समाजवादी नेता शामिल नहीं हो रहे हैं. उन्हें इस प्लान से अलग रखा जा रहा है. सूत्र बताते हैं कि लालू प्रसाद यादव और मुलायम सिंह यादव को जन विकास पार्टी से अलग रखा गया है.

रालोद और जदयू मिलकर अन्य पार्टियों के साथ बना सकते हैं नयी पार्टी

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राजनीति में संभावनाओं और समर्थन कापक्ष हमेशा खुला रहता है. जदयू और रालोद के विलय के बाद एक नयी पार्टी सामने आ सकती है, जो जन विकास पार्टी के नाम से जानी जायेगी. इसमें ओमप्रकाश चौटाला की पार्टी, एचडी देवगौड़ा और झारखंड से बाबूलाल मरांडी की पार्टी जेवीएम के शामिल होने की संभावना है. नीतीश कुमार दिल्ली में अपने इस सियासी प्लान को मूर्त रूप देने में लगे हैं. बैठकों का दौर भी जारी है. सियासी हलकों से जो जानकारी निकलकर सामने आ रही है उसके मुताबिक जन विकास पार्टी का चुनाव चिन्ह पेड़(ट्री) हो सकता है. वर्तमान फोकस यूपी के चुनाव पर होगा और उसके लिये अपना दल के अलावा पीस पार्टी के नेताओं से लगातार बातचीत जारी है. सूत्र बताते हैं कि इस नयी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद यादव जबकि संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष अजीत सिंह को बनाया जायेगा. इतना ही नहीं शरद यादव ने तो बकायदा खबर की पुष्टि कर दी है कि अजीत सिंह से बातचीत चल रही है लेकिन विलय की तारीख तय नहीं है. जदयू के महासचिव के. सी त्यागी के आवास पर रालोद और बाकी नेताओं की बैठक जारी है जिसमें वशिष्ठ नारायण सिंह के अलावा नीतीश कुमार के रणनीतिक सलाहकार प्रशांत किशोर भी शामिल हैं.

राजनीतिक जानकार क्या कहते हैं

पूर्व राज्यसभा सांसद और समाजवादी राजनीति पर गहरी पैठ रखने वाले शिवानंद तिवारी इस पूरी कवायद को तर्कहीन मानते हैं. शिवानंद तिवारी का कहना है कि बिहार की राजनीति से जुड़ी हुई पार्टियां जिनका कहीं और जनाधार नहीं है वह इस कवायद को करके सिर्फ बेसलेस प्रयास कर रही हैं. वह कहते हैं कि इसका कोई भी फायदा नहीं मिलने जा रहा है. वहीं पटना विश्वविद्यालय के प्रो. नवल किशोर चौधरी कहते हैं कि जो भी समाजवादी और लोहियावादी विचारधारा के लोग हैं यदि वह एका होने की कोशिश करें तो, जातिगत आधार को नहीं भूल सकते हैं. क्योंकि कहीं न कहीं ऐसे नेताओं की मूल राजनीति जाति पर भी टिकी रही है. लालू प्रसाद यादव और मुलायम को अलग करके एक तो इस तरह की पार्टी या एकमत होने की कल्पना करना ठीक नहीं. दूसरी इस तरह की पार्टियों के जन्म में ही मृत्यु के बीज छिपे होते हैं.

प्रो. चौधरी मानते हैं कि नीतीश कुमार का यह प्रयोग फेल होगा और यह सिर्फ और सिर्फ राजनीतिक स्टंट बनकर रह जायेगा. यूपी बिहार की धारा के लोग इसे स्वीकार नहीं करेंगे. प्रो. चौधरी का मानना है कि सबसे बड़ी बात जो है, वह यह कि नीतीश कुमार समाजवाद और लोहियावाद की राजनीति का नेतृत्व नहीं करते. राजनीतिक विशेषज्ञ इसे पॉलिटिकल स्टंट करार दे रहे हैं लेकिन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का प्रयोग जारी है. वैसे भी किसी राजनीतिक विशेषज्ञ ने वर्तमान राजनीति की परिभाषा के लिये सच कहा है कि सत्ता के लिये सिद्धांत के साथ समझौता ही वर्तमान राजनीति की सटीक परिभाषा है.




Prabhat Khabar Digital Desk
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