आशुतोष के पांडेय
पटना : सियासत में सामूहिक भोज का अपना एक अलग महत्व है. सत्ता भोज के बहाने ही सही सामूहिकता में दिखती है. राजनीतिक गलियारों के लोग एक पांत में बैठकर भोजन का आनंद लेते हैं.वैसे तो समकालीन सियासत में सामूहिक भोज का अपना एक अलग इतिहास रहा है. मकर संक्राति के पावन अवसर पर बिहार की सियासत में भी सामूहिक भोज का एक दौर चलता है. इस दौर के प्रखर अगुवा बनते हैं समाजवादी नेता और जदयू के प्रदेश अध्यक्ष वशिष्ठ नारायण सिंह. 15 जनवरी को राजधानी पटना के न्यू पटना क्लब में चूड़ा- दही के भोज का आयोजन किया गया है. कहा यह जा रहा है कि इस सामूहिक भोज के बहाने ही सही महागंठबंधन की हालिया कड़वाहट चूड़ा-दही और गुड़ के मिठास में गायब हो जायेगी.
सामूहिक भोज का सियासी महत्व
इतना ही नहीं कई राज्यों में होने वाले आगामी विधान सभा चुनावों की रणनीति भी इस डिनर डिप्लोमेसी में तैयार कर ली जाएगी. समाजवादी बैकग्राउंड वाले नेताओं के लिए सामूहिक भोज काफी मायने रखता है. समाजवादी नेता और पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर से लेकर जयप्रकाश नारायण तक सामूहिक भोज की महता को मानते हुए इसे समाजिक एकता वाले भोज की दृष्टि से देखते थे. जदयू नेता वशिष्ठ नारायण सिंह के चूड़ा-दही भोज में सियासी लोगों के साथ आम लोगों का भी जुटान होता है. पांच दिन पहले से तैयारी में लगे वशिष्ठ नारायण सिंह इस भोज की पूर्व स्मृतियों की भी याद करते हुए मुस्कुरा देते हैं. उम्र के इस पड़ाव पर इस भोज को लेकर उनकी उत्सुकता देखते बनती है.
आम से लेकर खास तक चखते हैं चूड़ा-दही
बिहार की राजनीति के शीर्षस्थ सियासी चेहरे, पत्रकार, चिकित्सक और अधिवक्ताओं के अलावा सड़क के दिहाड़ी मजदूर भी गाढ़ी दही और चूड़ा खाकर वशिष्ठ नारायण सिंह उर्फ दादा को दुआ देते हुए निकलते हैं. दादा बताते हैं कि 1999 में दिल्ली के बीपी हाउस और नार्थ एवेन्यू से शुरू हुई सामूहिक भोज की यह परंपरा आज पाटलीपुत्र की धरती पर पहुंच कर वर्तमान पटना को एक सूत्र में पिरोने का काम कर रही है. राज्यसभा सांसद वशिष्ठ नारायण सिंह इस भोज को समाजिक सरोकार और मानवीय संवेदना से ऊपजी सामूहिक परंपरा की पवित्रता के नजरिए से देखते हैं. उन्हें इस भोज में राजनीति नहीं दिखती. उन्हें भोज में सिर्फ अपनापन और सामूहिक मिलन की वह परंपरा दिखती है जो समाज को जोड़े रखे. दादा अपनी स्मृतियों में से भोज की चंद तस्वीरें आँखों के सामने लाकर बताते हैं कि कैसी दिल्ली में हिंदी के मूर्धन्य पत्रकार स्व0 प्रभाष जोशी और रामबहादुरा राय के साथ उपराष्ट्रपति भैरो सिंह शेखावत भी प्रेम से चूड़ा-दही का आनंद लेते थे.
वशिष्ठ नारायण सिंह 1998 में पहला भोज दिया था
वशिष्ठ नारायण सिंह कहते हैं कि इतना ही नहीं भोज में सामूहिक कंट्रीब्यूसन भी इसका एक रोचक पहलू है. साथ ही इस भोज के लिए किसी को निमंत्रण नहीं दिया जाता है. इस भोज में किसी एक पार्टी, किसी एक समुदाय को नहीं बुलाया जाता है. यहां सर्वजन समभाव की भावना से चूड़ा दही परोसा जाता है. एक तरफ रिक्शा चालक भोजन करता है तो दूसरी तरफ मुख्यमंत्री भी बैठे होते हैं. वशिष्ठ नारायण सिंह कहते हैं कि यह कप-प्लेट की संस्कृति से उपजा भोज नहीं है. यह भोज सियासत के साथ समाजिक संबंधों का मिलन बिंदू है. वशिष्ठ नारायण सिंह के चाहने वाले उनके यहां सब्जियों से लेकर चूड़ा तक लेकर आते हैं. कोई पोटली में लेकर आता है तो कोई बोरी में. सियासत में सत्ता के नजदीक रहने वाले राजनेता भी इस भोज के दिन सारी कटुता भूलाकर जमी हुई दही की तरह जमकर चूड़ा-दही का आनंद उठाते हैं.
भोज की तैयारी जोरों पर
जदयू के प्रवक्ता नवल शर्मा बताते हैं कि तैयारी परवान पर है. स्वयं दादा तैयारियों का जायजा ले रहे हैं. भोज में महागंठबंधन के सभी नेता शामिल होंगे. लालू प्रसाद यादव से लेकर राबड़ी देवी तक. बिहार के सैकड़ों जदयू पार्टी कार्यकर्ता के साथ नेता इस भोज में शामिल होंगे. वहीं सियासी अनुमान यह भी लगाया जा रहा है कि बिहार में मिली जीत के बाद यह पहली बार होगा जब महागंठबंधन के नेताओं की भारी जुटान इस भोज में होगी. वशिष्ठ नारायण सिंह यह कहते हैं कि सामूहिक भोज में जब राजनीतिक लोगों का जुटान होगा तो चूड़ा-दही की मिठास के साथ महागंठबंधन की रणनीति को लेकर भी बातें होंगी ही. इसमें कौन सी बड़ी बात है बात तो होनी चाहिए.
इस बार भोज में 15 से 20 हजार लोगों के शामिल होने का अनुमान है वहीं 25 क्लिंवटल चूड़ा भागलपुर और बेतिया से लाया जा रहा है. पार्टी कार्यकर्ता 15 दिन पहले से दही जमा करने लगे हैं. 20 क्विंटल दही और इतनी ही मात्रा में गया का तिलकुट भोज का ऋंगार बनेगा. दादा की महफिल चूड़ा-दही से सजेगी. इस महफिल में परवाने सियासी होंगे. स्वाद के चटकारे सियासी गलियों में गूंजे या ना गूंजे लेकिन सामूहिकता का अदभूत सौंदर्य तो राजधानी पटना के न्यू पटना क्लब में दिखेगा ही.