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बिहार में दावं पर है दो जोडियों की साख : मोदी-शाह बनाम नीतीश-लालू

समीर कुमार पटना : बिहार विधानसभा चुनाव के लिए बुधवार को तिथियों का एलान कर दिया गया है. इसी के साथ सूबे में सियासी पारा भी तेजी से चढ़ने लगा है. चुनाव में अपनी जीत पक्की करने को लेकर सभी प्रमुख दलों ने एड़ी-चोटी का जोर लगाया है. पिछले विधानसभा चुनाव की तुलना में इस […]

समीर कुमार

पटना : बिहार विधानसभा चुनाव के लिए बुधवार को तिथियों का एलान कर दिया गया है. इसी के साथ सूबे में सियासी पारा भी तेजी से चढ़ने लगा है. चुनाव में अपनी जीत पक्की करने को लेकर सभी प्रमुख दलों ने एड़ी-चोटी का जोर लगाया है. पिछले विधानसभा चुनाव की तुलना में इस बार का चुनाव कई मायनों में अलग व खास है. कल के राजनीतिक दोस्त आज राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी हैं और प्रतिद्वंद्वी दोस्त हैं.

2010 में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान जहां राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव के विरोध में जदयू एवं भाजपा ने एक साथ मिलकर चुनाव लड़ा था. वही, इस बार जदयू ने राजद के साथ हाथ मिला कर भाजपा के विरोध में चुनाव लड़ने का एलान किया है. लंबी दोस्ती के बाद जदयू व भाजपा ने एक-दूसरे से नाता तोड़ लिया है और इस बार दोनों ने एक-दूसरे के खिलाफ मोरचा खोल दिया है. इसी कड़ी में पिछले चुनाव में राजद प्रमुख लालू प्रसाद के घोर विरोधी रहे सीएम नीतीश कुमार ने उनके साथ मिलकर भाजपा को पटखनी देने का एलान किया है. बदलते-बिगड़ते इन सियासी रिश्तों के बीच चार प्रमुख नेता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व भाजपा अध्यक्ष अमित शाह एवं जदयू नेता व मुख्यमंत्री नीतीश कुमार व राजद प्रमुख लालू प्रसाद की शाख दांव पर लगी है.

लोकसभा चुनाव के दौरान उत्तर प्रदेश में भाजपा को जबरदस्त कामयाबी दिलाने वाले भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के लिए बिहार विधानसभा चुनाव बहुत अहम है. उत्तर प्रदेश में उनके नेतृत्व में भाजपा को मिली शानदार कामयाबी के बाद उन्हें पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया था. हालांकि इसके बाद हुए दिल्ली विधानसभा चुनाव में भाजपा को जबरदस्त हार का सामना करना पड़ा था.

राजनीतिक प्रेक्षकों की मानें तो दिल्ली विस चुनाव से पहले पार्टी की ओर से किरण बेदी को सीएम प्रत्याशी घोषित किये जाने के कारण भाजपा को हार का सामना पड़ा था. इस लिहाज से अमित शाह के लिए बिहार विधानसभा चुनाव प्रतिष्ठा का विषय बना हुआ है.

इसी के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए बिहार विधानसभा चुनाव कई मायने में अहम है. लोकसभा चुनाव में मिली जबरदस्त जीत के बाद दिल्ली विधानसभा चुनाव में पार्टी की हार के बाद विरोधी दलों ने जमकर हमला बोला था. कांग्रेस समेत अन्य विरोधी दलों ने भाजपा पर आरोप लगाते हुए कहा, मोदी लहर के बावजूद पार्टी को दिल्ली में आप से करारी हार मिली. ऐसे में बिहार में जदयू से अलग होने के बाद से सूबे के पार्टी नेताओं ने विस चुनाव को प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया है. जानकारों की मानें तो जदयू से अलग होने के पीछे एनडीए की ओर से नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया जाना मुख्य कारण था. इसी से खफा होकर नीतीश कुमार ने भाजपा से अलग होने का मन बनाया था. अब नीतीश कुमार को अहंकारी बताने वाले भाजपा नेताओं ने विस चुनाव में जदयू को पटखनी देकर उन्हें सबक सिखाने का मन बनाया है. इसी कड़ी में पीएम नरेंद्र मोदी के लिए बिहार चुनाव अहम माना जा रहा है.

उधर, भाजपा से अलग होने के बाद से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के लिए विस चुनाव प्रतिष्ठा का विषय बना हुआ है. 2010 में भाजपा के साथ मिलकर विस चुनाव में जीत का परचम लहराने वाले नीतीश कुमार ने इस बार अपने पूर्व सहयोगी के खिलाफ राजद के संग गंठजोड़ कर मोरचा खोल दिया है. जदयू-राजद के एक साथ आने पर भाजपा ने भी नीतीश की आलोचना में कोई कसर नहीं छोड़ा है. भाजपा ने आरोप लगाते हुए कहा है कि लालू प्रसाद के जंगलराज के विरोध में सूबे की जनता ने उन्हें मुख्यमंत्री बनाया था और आज राजद के साथ मिलकर वे मंगलराज लाने की बात कर रहे हैं.

राजनीतिक प्रेक्षकों की मानें तो लालू प्रसाद के साथ आने से नीतीश कुमार की छवि एवं जदयू के वोट बैंक पर कितना असर पड़ेगा यह तो वक्त बतायेगा लेकिन भाजपा से अलग होने एवं राजद से मिलने के बाद उनके लिए जीत की राह उतनी आसान नहीं है. लोकसभा चुनाव में जदयू को मिली हार के बाद से बिहार विस चुनाव नीतीश कुमार के लिए अहम माना जा रहा है. नीतीश कुमार ने भी खुद कई मंचों से कहा है कि लोकसभा चुनाव के दौरान जनता पीएम मोदी के झांसे में आ गयी थी, लेकिन इस बार जनता झांसे में नहीं आने वाली है. हमने राज्य के विकास के लिए बहुत कुछ किया है. जिसको देखते हुए यहां की जनता उन्हें एक बार फिर मुख्यमंत्री बनायेगी.

वही, लंबे समय तक बिहार में शासन कर चुके राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद के लिए भी बिहार विस चुनाव अहम है. बीते लगातार दो चुनावों में मिली हार के बाद से ही राजद को अपनी शाख बचाने के लिए इस बार का विस चुनाव बेहद अहम है. परिवारवाद के आरोपों से घिरे लालू प्रसाद ने इस बार नीतीश कुमार के साथ हाथ मिलाकर भाजपा को सूबे से बाहर निकालने का एलान किया है. राजनीति प्रेक्षकों की मानें तो इस चुनाव के दौरान लालू-राबड़ी खुद से ज्यादा अपने बेटे-बेटियों के लिए राजनीतिक मंच तैयार करने में जुटे हैं. इस लिहाज से राजद प्रमुख के लिए यह चुनाव अहम है.

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