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पर्यावरण संरक्षण पर हर महीना चर्चा सराहनीय कदम
सुरेंद्र किशोर राजनीतिक विश्लेषक पर्यावरण संरक्षण के प्रति और अधिक जागरूकता दिखाते हुए बिहार सरकार ने एक महत्वपूर्ण निर्णय किया है. अब राज्य के सरकारी विद्यालयों व कार्यालयों में पर्यावरण संरक्षण और जागरूकता पर चर्चा होगी. चर्चा हर महीने के पहले मंगलवार को होगी. उस चर्चा के दौरान मिले उपयोगी सुझावों पर राज्य सरकार अमल […]
सुरेंद्र किशोर
राजनीतिक विश्लेषक
पर्यावरण संरक्षण के प्रति और अधिक जागरूकता दिखाते हुए बिहार सरकार ने एक महत्वपूर्ण निर्णय किया है. अब राज्य के सरकारी विद्यालयों व कार्यालयों में पर्यावरण संरक्षण और जागरूकता पर चर्चा होगी.
चर्चा हर महीने के पहले मंगलवार को होगी. उस चर्चा के दौरान मिले उपयोगी सुझावों पर राज्य सरकार अमल भी करेगी. काश! पर्यावरण संरक्षण के प्रति ऐसी जागरूकता इस देश व प्रदेश में सन 1991 में ही पैदा हो गयी होती, फिर तो स्थिति उतनी नहीं बिगड़ती जितनी आज बिगड़ चुकी है.
एमसी मेहता की जनहित याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने 1991 में ही यह आदेश दिया था कि प्राथमिक से लेकर विश्वविद्यालय स्तर तक अनिवार्य व पृथक विषय के रूप में पर्यावरण विज्ञान की पढ़ाई शुरू करायी जाये. सुप्रीम कोर्ट ने साथ ही एक खास बात भी कही थी कि ‘हमने इस संबंध में राज्य सरकार तथा दूसरे संबंधित पक्षोें को सुनने की जरूरत नहीं समझी. क्योंकि, भारत ही नहीं, बल्कि पूरे विश्व में यह आम स्वीकृति है कि पृथ्वी के अस्तित्व के लिए अपरिहार्य रूप से यह जरूरी है कि पर्यावरण की रक्षा की जाये और प्रदूषण से इसे बचाया जाये. ’1991 के बाद के वर्षों में जागरूकता जरूर आयी है, पर समस्या के अनुपात में अब भी कम ही है.
खुद को नष्ट करने में लगे लोग
प्रकृति हमें जितना देती है, वह हर मनुष्य की जरूरतों के लिए पर्याप्त है. किंतु, प्रकृति के पास लालच की पूर्ति के लिए पर्याप्त साधन नहीं है.
यही कहा था महात्मा गांधी ने. जब कहा था, तब तक संभवतः जरूरत व आपूर्ति के बीच संतुलन लगभग बरकरार था. पर, अस्सी के दशक से यह संतुलन तेजी से बिगड़ने लगा. कुछ दशक पहले यह रपट आयी थी कि जितने संसाधनों को उत्पादित करने की क्षमता प्रकृति के पास है, उससे 20% अधिक संसाधनों का मनुष्य उपभोग कर रहा है. यह रफ्तार जारी रही, तो 2050 तक हम 80 से 120% अधिक प्राकृतिक साधनों का इस्तेमाल करने लगेंगे. यदि वैसा ही हुआ तो नतीजा होगा, उसकी कल्पना हम कर ही सकते हैं.
यानी खुद को नष्ट करने में लगे हैं हम!
अविवेकपूर्ण दोहन का जानलेवा परिणाम इस जाड़े के मौसम में प्रकृति को करवट बदलते हमने देखा. सर्दी लंबी चली. अनुमान है कि गर्मी अगले महीने से ही रिकाॅर्ड तोड़ने लगेगी.
यदि हम नहीं चेते, तो वह दिन दूर नहीं, जब साल-दर-साल हम पहले की अपेक्षा अधिक भीषण गर्मी व लू की चपेट में आते रहेंगे. दिवंगत वैज्ञानिक स्टीफन हाॅकिन्स ने कहा था कि इस धरती के लोगों को चाहिए कि वे नये ग्रह पर अपने बसने के लिए तैयार रहें. हाॅकिन्स ने यह भी अनुमान लगाया कि सन 2600 तक धरती आग का गोला बन जायेगी. स्टीफन के अनुसार मनुष्य के पास 100 साल का ही समय है. तब तक वे दूसरे ग्रह पर अपने लिए इंतजाम कर लें.
‘आप’ का असर आंध्र में भी : आंध्र प्रदेश के सीएम वाइएस जगन मोहन रेड्डी ने राज्य के सरकारी प्राथमिक चिकित्सा केंद्रों की स्थिति सुधारने की दिशा में ठोस कदम उठाया है. संभवतः उन पर दिल्ली विस के चुनाव नतीजे का असर है. दिल्ली के बारे में यह कहा जा रहा है कि अरविंद केजरीवाल सरकार ने सरकारी स्कूलों व प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में काफी फर्क ला दिया है.
आप की जीत में अन्य बातों के अलावा इसका भी योगदान है. संभव है कि आंध्र प्रदेश के अलावे भी कुछ अन्य राज्य ‘दिल्ली माॅडल’ अपनायेंगे. सन 2005 में सत्ता में आने के बाद नीतीश कुमार की सरकार ने भी राज्य के सरकारी अस्पतालों की स्थिति में काफी सुधार किया था, पर बाद के वर्षों में ढीलापन आता गया. ‘अनुपस्थित चिकित्सकों’ व विवादास्पद दवा-मशीन व्यापारियों- आपूर्तिकर्ताओं के प्रभाव से मुक्त रह कर कोई भी सरकार स्वास्थ्य क्षेत्र में अपने यहां भारी सुधार कर सकती है.
और अंत में : उच्च सदन के द्विवार्षिक चुनाव के अवसर पर अनेक राजनीतिक व गैर राजनीतिक लोगों के लिए खट्टे -मीठे अनुभवों के भी अवसर हुआ करते हैं. सन 1970 से गवाह हूं. ऐसे अवसरों पर राजनीति में सक्रिय लोगों के दिल टूटते भी हैं और कई के बाग-बाग भी हो जाते हैं.
कुछ लोगों को तो बिना उम्मीद किये भी बड़ा अवसर मिल जाता है. कई बार नेताओं व दलों के बीच खटास भी पैदा होती है. कई बार दल और दिल टूट भी जाते हैं. एक बार फिर वह अवसर आ रहा है. इस बार देखना है कि कितने दिल टूटते और कितने बाग-बाग होते हैं. हां, यह सर्वाधिक कठिन समय पार्टी प्रधान के लिए साबित होता है. क्योंकि, यहां तो एक अनार-सौ बीमार हैं. किसे दें प्यार और किसे दुत्कार?!!
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