पटना : बिहार में घरेलू हिंसा की दर्ज घटनाओं की जांच पूरी नहीं हो पा रही है. करीब 70 फीसदी ऐसे मामले हैं, जिनका निष्पादन जांच के बिना नहीं हो पा रहा है. यह स्थिति तब है जब सरकार ने महिलाओं की सुरक्षा को लेकर सभी जिलों में हेल्पलाइन की स्थापना की है. यहां कोई भी पीड़ित महिला शिकायत कर सकती है. लेकिन, अधिकारियों की सुस्ती व लापरवाही से महिला उत्पीड़न मामले में दोषियों को सजा मिलने में देर हो रही है या वह छूट जाते है. कई मामलों में पीड़ित पक्ष भटकते रहते हैं और आरोपित आराम से सड़कों पर खुले घूम रहे हैं. घरेलू हिंसा के 2018-19 में 1119 मामले दर्ज हैं. इनमें मात्र 223 का निबटारा हो पाया. इसी प्रकार दफ्तर में यौन उत्पीड़न के 2018-19 में 1322 मामले दर्ज किये गये. जिसमें 849 का ही समाधान किया गया.
दहेज उत्पीड़न के 2018-19 दर्ज 203 मामलों में 31 की जांच पूरी हुई और इसका निबटारा किया गया. पति के दूसरे विवाह कर लेने की 2018-19 में 30 मामले दर्ज हुए. इनमें महज दो का ही समाधान हुआ. मामलों को देखा जाये, तो हर साल घरेलू हिंसा व सामाजिक हिंसा से पीड़ित महिलाओं की शिकायतों को दूर करने में गति काफी धीमी है. महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा महिला विकास निगम हिंसा और दुर्व्यवहार की शिकार महिलाओं को चौबीस घंटे सेवा उपलब्ध करा रही है. इसके लिए सात जिलों में सर्व सेवा केंद्र स्थापित किया गया है, जहां महिलाएं किसी भी हिंसा की शिकायत कर सकती है.
दो सालों की स्थिति
घरेलू हिंसा : 2016-17 दर्ज 3990 व निष्पादन 3284 , 2017-18 दर्ज 4023 व निष्पादित 1651,
दहेज उत्पीड़न : 2016-17 दर्ज 639 व निष्पादित 469 , 2017-18 दर्ज 776 व निष्पादित 267,
दहेज हत्या : 2016-17 दर्ज 06 व निष्पादित 05, 2017-18 दर्ज 05 व निष्पादित 05, 2018-19 दर्ज 05 और 00.
दूसरा विवाह : 2016-17 दर्ज 88 व निष्पादित 92 , 2017-18 दर्ज 101 व निष्पादित 27.
कार्यालय व अन्य स्थानों पर यौन उत्पीड़न
2016-17 दर्ज 98 व निष्पादित 72 2017-18 दर्ज 148 व निष्पादित 91 2018-19 दर्ज 68 व 38
अन्य मामले : 2016-17 दर्ज 1339 और निष्पादित 1152
2017-18 : दर्ज 3488 और
निष्पादित 2509,