पटना/नयी दिल्ली : बिहार की राजधानी में मशहूर गांधी मैदान के नजदीक गंगा के किनारे पिछले दो सौ बरस से ज्यादा समय से डच और ब्रिटिश वास्तुकला का हाथ थामे खड़ी हल्के पीले और लाल रंग की कलक्ट्रेट इमारत में पुस्तकालय, कैफे और प्रदर्शनी हॉल बनाकर इसे सांस्कृतिक केंद्र की शक्ल देने का प्रस्ताव है, ताकि इस धरोहर को सही मायने में आनेवाली पीढ़ी को एक विरासत के रूप में सौंपा जा सके. पटना हाईकोर्ट ने इस इमारत को ध्वस्त करने या इसके किसी भी हिस्से को नुकसान पहुंचाने पर फिलहाल रोक लगा दी है.
हाईकोर्ट से मिली राहत से उत्साहित संरक्षणवादी वास्तुकारों, शहरी योजनाकारों और हैरिटेज विशेषज्ञों का सुझाव है कि इस परिसर के नये सिरे से इस्तेमाल के तरीकों पर विचार किया जाना चाहिए. उन्होंने यहां लाइब्रेरी, शहर आधारित संग्रहालय, कैफे और कला प्रदर्शनी दीर्घा आदि का निर्माण करके इसे सांस्कृतिक केंद्र के रूप में विकसित करने का सुझाव दिया है. बिहार सरकार ने वर्ष 2008 में करीब 12 एकड़ के इलाके में फैले पटना समहरणालय को धरोहर स्थल का दर्जा दिया था, लेकिन पिछले कुछ समय से इसके वजूद पर खतरा मंडरा रहा था. विशेषज्ञों ने इस इमारत के संरक्षण को पटना में ही नहीं बल्कि पूरे बिहार में इतिहास को संजोने का ‘स्वर्णिम अवसर’ करार दिया है.
इमारत को बचाने के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाने वाले भारतीय राष्ट्रीय कला एवं संस्कृति न्यास (इन्टैक) के पटना क्षेत्र के संयोजक और वयोवृद्ध वास्तुकार जे के लाल ने कहा, ”लोग सरकार से लगातार यह अपील कर रहे थे कि पटना समहरणालय की ऐतिहासिक इमारत को गिराने की बजाय इसके विभिन्न भागों को सांस्कृतिक केंद्र के तौर पर विकसित किया जाये, जहां कैफे, प्रदर्शनी स्थल और मंच कला केंद्र आदि का निर्माण किया जा सकता है.”
कोलकता स्थित संरक्षणवादी वास्तुकार मनीष चक्रवर्ती ने कहा, ”समहरणालय की इमारत में खूब ऊंची छतों वाले बड़े-बड़े कक्ष हैं और पूरे परिसर को एक खुले सांस्कृतिक केंद्र के रूप में विकसित किया जा सकता है, जहां लोग विशिष्ट मौकों पर एकत्र होकर उत्सव मना सकते हैं. चक्रवर्ती ने पश्चिम बंगाल के सेरमपुर स्थित 233 साल पुरानी दानिश तावम इमारत के संरक्षण के लिए काम किया है. उनके प्रयासों से जर्जर हो चुकी इस इमारत को पिछले साल एक खूबसूरत हैरिटेज कैफे और एक लॉज में बदल दिया गया. चक्रवर्ती को सेरमपुर में सेंट ओलव चर्च की 200 साल पुरानी इमारत के यूनेस्को द्वारा सम्मानित संरक्षण का श्रेय भी जाता है. उनका मानना है कि सरकार को किसी सांस्कृतिक पूर्वाग्रह के बिना इन धरोहर इमारतों को बोझ नहीं, बल्कि इतिहास की धरोहर के तौर पर देखना चाहिए.
दिल्ली स्थित वास्तुकार विक्रम लाल का कहना है, ”इस इमारत में पटना पर आधारित लाइब्रेरी हो, जिसमें प्राचीन पाटलीपुत्र से लेकर आधुनिक पटना की तमाम किताबें और पांडुलिपियां संजोकर रखी जाएं. यह देश-विदेश के लोगों को आकर्षित करेगी. यह हमारे समृद्ध अतीत को एक नये स्वरूप में वर्तमान को सौंपकर बेहतर भविष्य के निर्माण में सहायक होगा. ‘ऐतिहासिक पटना समहरणालय बचाओ’ अभियान के तहत पिछले साढ़े तीन साल से इस इमारत को बचाने की कोशिश की जा रही थी और सरकार से इसे एक नया स्वरूप देने का आग्रह किया गया था.
मुंबई स्थित संरक्षणवादी कमलिका बोस के अनुसार इस इमारत में शैक्षणिक और सांस्कृतिक गतिविधियों के केंद्र के साथ ही एक कैफे बनाकर परंपरागत पटना के लिए एक उपयोगी स्थल का निर्माण किया जा सकता है. इसी अभियान से जुड़े स्वतंत्र शोधकर्ता राजीव सोनी का कहना है कि शहरीकरण के पैर पसारने के कारण आधुनिकीकरण के नाम पर हरियाली और धरोहर इमारतें कम होती जा रही हैं. ”हमारे पास पटना संग्रहालय और बिहार संग्रहालय है, लेकिन एक ऐसा संग्रहालय भी होना चाहिए, जो प्राचीन पटना शहर के उद्भव से लेकर इसके आधुनिक स्वरूप तक की कहानी सुनाये.” पुराने लोग, पुराने दरख्त और पुरानी इमारतें वक्त के साथ बूढ़े भले हो जाएं बेकार कभी नहीं होते, उनका होना अतीत के साथ एक डोर सी बांधे रहता है और कोशिश यही होनी चाहिए कि वर्तमान के हाथों इस डोर का सिरा बिना टूटे भविष्य को सौंप दिया जाये.