बिहार के इन शिल्पकारों से लीजिए प्रेरणा जिन्होंने अपने काम से लहराया सफलता का परचम
हर साल की भांति इस साल भी विश्वकर्मा पूजा 17 सितंबर (मंगलवार) को मनायी जायेगी. एेसी मान्यता है कि इसी दिन देवताओं के शिल्पकार विश्वकर्मा का जन्म हुआ था. भगवान विश्वकर्मा को दुनिया का पहला इंजीनियर भी माना जाता है. बिहार में भी कई ऐसे शिल्पकार हैं जिन्होंने अपनी मेहनत के बल पर सफलता का परचम लहराया है. इन लोगों की कामयाबी की कहानी से साफ जाहिर होता है कि अगर कुछ करने की तमन्ना हो तो इस दुनिया में कुछ भी असंभव नहीं है.
छोटी दुकान से शुरू किया व्यवसाय आज 150 लोगों की चला रहे आजीविका
रणविजय प्रताप सिंह
अनुराग शरण
सासाराम : करीब 25 साल पूर्व आजीविका के लिए व्यापार करने की ठानी. पिता ने महज तीन लाख रुपये की पूंजी दी. शहर में इलेक्ट्रॉनिक्स की दुकान खोली और आज यूपी के वाराणसी से लेकर गया तक बिजनेस का चेन खड़ा कर दिया. इससे जुड़ कर करीब 150 लोग आजीविका कमा अपने परिवार का भरण-पोषण कर रहे हैं. यह उपलब्धि जिले के पांजर गांव निवासी शिवकुमार सिंह के बेटे रणविजय प्रताप सिंह ने हासिल की है.
रणविजय ने 17 सितंबर, 1994 को शहर के सनपातो मार्केट में जय इलेक्ट्रॉनिक्स नामक एक दुकान खोली थी. दुकान खेलने के पांच वर्ष बाद उत्तरप्रदेश के वाराणसी में प्रोपर्टी डीलर का अतिरिक्त कार्य शुरू किया. उसी वर्ष वाराणसी के सिगरा में जय इलेक्ट्रॉनिक्स के नाम से ही इंपोर्टेड इलेक्ट्रॉनिक्स स्पेयर पार्ट्स की दुकान खोली. सिगरा में ही वर्ष 2001 में बड़ी कंपनियों के सेल फोन का आउटलेट खोला. इसके बाद 2003-04 में सासाराम में बीएसएनएल ने एयर में वेब छोड़ ट्रायल किया, उसी समय पूरे शाहाबाद व औरंगाबाद में इकलौता मोबइल फोन का आउटलेट खोला.
वर्ष 2013 में गया, नवादा व जहानाबाद के लिए एक मोबाइल कंपनी के डीलर बने और उसकी स्थापना गया में बाबा सर्विसेज के नाम से की. वर्ष 2014 में गैस के कारोबार में उतरे व सासाराम में सर्वेश्वरी गैस एजेंसी के नाम से आलटलेटस की स्थापना की और महज पांच वर्ष में ही 32 हजार ग्राहक जुड़ चुके हैं.
पत्नी ने बखूबी निभाया साथ
रणविजय कहते हैं कि इस समय उनके इस बिजनेस चेन से जुड़ कर करीब 150 लोग काम कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि उनके इस सफर में उनकी पत्नी किरण सिंह ने उनका बखूबी साथ दिया. पत्नी ने बच्चों की पढ़ाई पर ध्यान दिया और इसी की बदौलत आज उनकी बड़ी बेटी सलोनी पीएमसीएच में थर्ड इयर की छात्रा है. छोटी बेटी सोनी ने गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज, सहारनपुर, में इसी वर्ष दाखिला लिया है. छोटा बेटा डीपीएस दिल्ली में 12वीं कर रहा है.
कभी खुद करते थे कारखाने में काम आज 36 श्रमिकों से करा रहे मजदूरी
दिलीप कुमार
अमिताभ श्रीवास्तव
पटना सिटी : भी प्लास्टिक के कारखाने में प्रबंधक का काम करने वाले दिलीप कुमार आज खुद का कारखाना स्थापित कर 36 लोगों से काम करा रहे हैं. अतीत को याद कर वे बताते हैं कि नालंदा के अस्थावां के किसान परिवार में दो जनवरी, 1971 को जन्म लेने के बाद वे पढ़ाई के लिए पटना आये थे.
यहां पर भाई स्वर्गीय ज्वाला प्रसाद ने भी पढ़ाई लिखाई करने के बाद छोटा-सा प्लास्टिक का कारखाना खोला था, जिसमें वे प्रबंधक के पद पर काम करते थे. इस दरम्यान उनकी पढ़ाई भी पटना विश्वविद्यालय में चल रही थी. स्नातक तक की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने खुद को स्थापित करने के लिए कार्य करते हुए संघर्ष आरंभ किया. इस दरम्यान भाई के मोगलपुरा में स्थित कारखाने गोल्डन प्लास्टिक में काम करते हुए खुद की इकाई स्थापित करने की योजना बनायी.
इसके बाद धीरे-धीरे पारिश्रमिक से मिली राशि को जमा कर व बैंक से आर्थिक मदद लेकर 10 लाख की लागत से रैनबो इंडस्ट्रीज नामक कारखाने की नींव मोगलपुरा में ही रखी. इसमें बरसाती सीट, तिरपाल व प्लास्टिक रैनवल बनाने का कार्य आरंभ किया. मेहनत व लगन के साथ धीरे-धीरे कारखाना चल निकाला. अब यहां पर लगभग 36 श्रमिक काम करते हैं. आज उनकी कंपनी का वार्षिक टर्न ओवर दो करोड़ का है.
वे बताते हैं कि ईमानदारी से किया गया हर कार्य सफल होता है. वे अपना आदर्श माता स्वर्गीय देवकी देवी , पिता स्वर्गीय सुखदेव प्रसाद व बड़े भाई स्वर्गीय ज्वाला प्रसाद को मानते हैं. सामाजिक गतिविधियों में भी भागीदारी निभाने वाले दिलीप कुमार बताते हैं कि भगवान की कृपा से आज उनके पास सब कुछ है, ऐसे में जरूरतमंदों की सेवा करना भी उनका दायित्व है.
भरोसे से मिली ताकत, छोटी दुकान से कोसी के ऑटोमोबाइल किंग के रूप में उभरे
अशफाक आलम
चंदन
मधेपुरा : शहर में 1994 से पार्ट्स की छोटी-सी दुकान से शुरू हुआ सफर बढ़ कर दो शहर में हीरो मोटोकॉर्प के डीलरशिप तक जा पहुंचा. मधेपुरा व सुपौल में बेहतरीन शोरूम के जरिये जहां लगभग ढाई सौ लोग को रोजगार मिला हुआ है. बेहद संघर्षों से गुजर कर ऊंचाई का सफर प्राप्त करने वाले अशफाक आलम उन दिनों को याद करते कहते हैं कि लोगों का भरोसा मुझ पर बना रहा. यही कारण है कि आज जीवन में सफलतापूर्वक सब कुछ हासिल कर सके हैं. वर्तमान में मधेपुरा में यूनिक हीरो व सुपौल में अनस हीरो समेत कोसी में शाओमी के सुपर डिस्ट्रीब्यूटर हैं.
बेहद कठिनाई से शुरू हुआ सफर : 50 हजार रुपये की पूंजी से जब दुकान की शुरुआत की तब सफर इतना आसान नहीं था. स्वयं दिल्ली एवं पटना जाकर पार्ट्स लाना और बेचना पड़ता था. बैंक भी उस दौर में लोन देने से कतराते थे.
धीरे-धीरे स्थितियां बदलीं. उस दौर में कोसी इलाके से राजधानी तक पहुंचने में लोगों को बारह से चौदह घंटे लगते थे. ऐसे में धनाढ़य लोग व्यवसाय के लिए दूसरे प्रदेश में पलायन कर रहे थे. वहीं मधेपुरा जैसे कस्बाई इलाके में रहने वाला अशफाक अपनी माटी पर ही कुछ कर गुजरना चाहते थे. नतीजतन ऑटोमोबाइल सेक्टर में देश ही नहीं, दूसरे मूल्कों में भी अशफाक आलम ने अपने बेहतर प्रदर्शन से मधेपुरा ही नहीं बिहार को गौरवान्वित होने का अवसर दिया है.
छोटी दुकान से शुरू हुआ सफर : मधेपुरा में जिला परिषद द्वारा गुदरी बाजार में कुछ दुकान बनाकर आवंटित किया गया. युवा अशफाक ने यहां एक दुकान ली और इससे अपना सफर शुरू किया. 1998 में वह अपने लिए हीरो की बाइक खरीदने कटिहार गये.
वहां की भीड़ ने उन्हें प्रभावित किया और वह 1999 से दोस्तों की मदद लेकर कटिहार से किसी प्रकार गाड़ी लाकर मधेपुरा में बेचने लगे. वर्ष 2003 में कंपनी ने उन्हें ए आर डी बनाया. वहीं से उनकी उड़ान शुरू हुई और वर्तमान में सालाना 42000 बाइक व स्कूटर बेचते हैं. 250 स्टाफ कार्यरत हैं. मधेपुरा, सहरसा एवं सुपौल में शाओमी कंपनी के सुपर डिस्ट्रीब्यूटर हैं. इनकी पहचान पूरे क्षेत्र में बन गयी है.
एक अरब 35 करोड़ का टर्नओवर, सामाजिक गतिविधियों में भी लेतेहैं अभिरुचि
अशफाक आलम के सभी व्यापार का सालाना टर्नओवर एक अरब 35 करोड़ है. शहर के सबसे बड़े टैक्सपेयर के रूप में इनकी पहचान है. इसके अलावा हर सामाजिक गतिविधि में भागीदारी रखते हैं. युवाओं के प्रेरणा स्रोत हैं. वह कहते हैं इंसान को खुद पर विश्वास रखकर ईमानदारी से काम करना चाहिए. कामयाबी चलकर पास आ जाती है. बस हमेशा उन लोगों को याद रखना चाहिए. जिन्होंने इस सफर में किसी न किसी रूप से सहयोग दिया हो नैतिक समर्थन दिया हो.
भागलपुर की बेटी दुनिया को प्राकृतिक खतरे से बचने की सिखा रही इंजीनियरिंग
बरनाली घोष
संजीव
भागलपुर : भागलपुर के अजंता टॉकिज के सामने स्थित घर में जन्मी, पली-बढ़ी, माउंट कार्मेल व एसएम कॉलेज से शिक्षा पाकर भागलपुर इंजीनियरिंग कॉलेज से सिविल इंजीनियरिंग में बीटेक की. तब कोई नहीं जानता था कि भागलपुर की यह बेटी बरनाली घोष एक दिन दुनिया भर में छा जायेगी.
लेकिन अपनी मेहनत व लगन से बरनाली आगे बढ़ती गयीं और आज दुनिया के विभिन्न देशों में जाकर प्राकृतिक खतरे (भूकंप) से बचने की इंजीनियरिंग सिखा रही है. उनकी पहचान का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि वैश्विक खतरों के लिए काम करने वाले पर रिपोर्ट तैयार करनेवाले बीबीसी के चैनल-टू में बरनाली पर भी डॉक्यूमेंट्री बनायी गयी है. भूकंप के कारण मानव जीवन के नुकसान के विनाशकारी परिणामों को कम करने के लिए वह काम करती हैं. अब तक कई पुरस्कार जीत चुकी हैं.
मोट मैक डोनाल्ड, लंदन की तकनीकी निदेशक हैं बरनाली : तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय के अंग्रेजी विभाग के शिक्षक स्व लोहित घोष व गीता घोष की पुत्री डॉ बरनाली घोष कैंब्रिज यूनिवर्सिटी से पीएचडी की है. उन्होंने बताया कि लंदन में मोट मैकडोनाल्ड की तकनीकी निदेशक पद पर कार्यरत हैं. कई वर्षों तक वर्ल्ड लीडिंग स्टेम एजुकेशन की एंबेसडर रहीं. कैंब्रिज के इंजीनियरिंग विभाग के ट्रिनिटी कॉलेज में इंजीनियरिंग सोसाइटी के समिति का हिस्सा बन कर सक्रिय रूप से इंजीनियरिंग का प्रचार कर रही है.
पाकिस्तान व नेपाल में भी कर चुकी हैं काम : चार्टर्ड सिविल इंजीनियर बरनाली ने दुनिया के कई देशों में भूकंप इंजीनियरिंग पर काम किया है. दुनिया के विभिन्न स्थानों में स्थित चुनौतीपूर्ण परियोजनाओं के लिए अपना विशिष्ट तकनीकी कौशल का प्रतिभा मनवा चुकी हैं.
अप्रैल 2015 में आये विनाशकारी भूकंप के बाद नेपाल में इफिट क्षेत्र मिशन का एक हिस्सा थीं और निजी कंपनियों व सहायता संगठनों के बीच एक प्रभावी साझेदारी को बढ़ावा देने पर काम किया था. पाकिस्तान में सबसे अधिक ठोस गुरुत्वाकर्षण बांध के भूकंपीय डिजाइन पर सलाह दे चुकी है. हाल ही में सहयोग के माध्यम से भूकंपीय डिजाइन में स्थिरता और जलवायु परिवर्तन अवधारणाओं को शामिल कर रही है.
बरनाली का नाम लेते होता है गर्व
डॉ बरनाली घोष शुरू से ही प्रतिभावान छात्रा रही हैं. उनके अंदर कुछ खास करने की शुरू से ही इच्छा रही. अभियंता दिवस पर बरनाली का नाम लेते हुए गौरव का अनुभव होता है कि ऐसी छात्रा भागलपुर इंजीनियरिंग कॉलेज की प्रोडक्ट हैं.
डॉ शशांक शेखर, शिक्षक, भागलपुर इंजीनियरिंग कॉलेज
तीन सौ रुपये से शुरू की नौकरी, अब 75 लाख प्रतिमाह का कर रहे व्यापार
शिवनाथ प्रसाद गुप्ता
मुजफ्फरपुर : दिल में कुछ करने की तम्मना हो, तो मुश्किल को भी पार कर मंजिल पा लेते हैं. बियाडा में उद्योग चलाने वाले शिवनाथ प्रसाद गुप्ता ने कुछ ऐसा ही कर दिखाया है. दूसरे की फैक्टरी में तीन सौ रुपये की नौकरी करने वाले शिवनाथ प्रसाद आज हर माह 75 लाख रुपये का व्यापार करते हैं. उनकी खुद की पाइप की फैक्टरी है. वह इस फैक्टरी में बनी पाइप पूरे बिहार में सप्लाइ करते हैं. कहते हैं कि अगर कुछ करना है, तो मेहनत और ईमानदारी से पीछे नहीं भागना चाहिए. मंजिल खुद मिल जाती है.
बिना वेतन का सीखा काम
शिवनाथ गुप्ता ने बताया कि उन्हें उद्योग लगाने की चाहत थी. लेकिन पैसे नहीं थे. 1993 में पाइपो प्लास्ट नामक फैक्टरी में उन्होंने काम सीखा. इसके बाद नरेंद्र गुलाटी की फैक्टरी में 1996 में तीन हजार रुपये प्रतिमाह पर काम करना शुरू किया. इस फैक्टरी में उन्होंने पांच साल यानी वर्ष 2000 तक काम किया. इसके बाद मालिक ने घाटा बता पांच साल की तनख्वाह के एवज में महज 18 हजार रुपये ही दिया. यािन तीन सौ रुपये प्रतिमाह के हिसाब से. इसके बाद कृष्णा प्लास्टिक फैक्टरी में लेबर पार्टनर पर काम शुरू किया.
वह फैक्टरी भी एक साल बाद बंद होने के कगार पर चली आयी. इसके बाद फैक्टरी मालिक ने शिवनाथ से कहा कि वह उसकी फैक्टरी चलायें. पांच साल बाद उसे फैक्टरी का पैसा देंगे. इस दौरान फैक्टरी मालिक ने उन्हें कुछ पैसा भी फैक्टरी चलाने के लिए दिया. शिवनाथ ने पांच साल बाद फैक्टरी मालिक को तय राशि पांच लाख वापस कर दिया. बियाडा में अपनी फैक्टरी उषा पॉली प्लांट शुरू किया. अब उस फैक्टरी से वह प्रतिमाह 75 लाख रुपये का व्यापार कर रहे हैं.
