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पटना : दो टन मेडिकल कचरे से रोज प्रदूषित हो रहा राजधानी का वातावरण
पटना : पटना शहर के सरकारी व निजी अस्पतालों और जांच केंद्रों से रोजाना 7़ 76 टन (7767 किलो) बायो मेडिकल कचरे (फार्मास्यूटिकल कचरे) की निकासी होती है. इसमें से करीब दो टन मेडिकल वेस्ट का ट्रीटमेंट नहीं हो पाता है. यह उन अस्पतालों और जांच केंद्रों का मेडिकल कचरा है, जिन्होंने अभी तक बायो […]
पटना : पटना शहर के सरकारी व निजी अस्पतालों और जांच केंद्रों से रोजाना 7़ 76 टन (7767 किलो) बायो मेडिकल कचरे (फार्मास्यूटिकल कचरे) की निकासी होती है. इसमें से करीब दो टन मेडिकल वेस्ट का ट्रीटमेंट नहीं हो पाता है. यह उन अस्पतालों और जांच केंद्रों का मेडिकल कचरा है, जिन्होंने अभी तक बायो मेडिकल ट्रीटमेंट सेंटर तक अपना मेडिकल कचरा पहुंचाने का प्रबंधन कानूनन जरूरी होने के बाद नहीं किया है.
फिलहाल हालत यह है कि बायो मेडिकल कचरा खास तौर पर शहर के भू और धरातलीय जल को प्रभावित कर रहा है. एक्सपर्ट बताते हैं कि इससे पानी के खतरनाक जीवाणुओं को जिंदा रहने के लिए अतिरिक्त ताकत मिलती है. जीवाणु स्वास्थ्य के लिए नये सिरे से खतरा बन जाते हैं.
दिया जाता है कचरा
पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड से मिली आधिकारिक जानकारी के मुताबिक समूचे प्रदेश में रोजाना करीब 32 टन (32363 किलो) बायो मेडिकल कचरे की निकासी होती है. इसमें 25 टन (25112 किलो) निजी अस्पतालों से सात टन से अधिक (7251 किलो) बायो मेडिकल वेस्ट निकलता है. इसमें कुल 26.40 टन (26400 किलो) मेडिकल वेस्ट का ट्रिटमेंट कर दिया जाता है. शेष छह टन खुले में फेंक दिया जाता है.
एक्सपर्ट्स का कहना है कि इसका असर
वातावरण पर लगातार पड़ रहा है. रोजाना सात टन से इस आंकड़े का आकलन करें, तो 75 हजार टन से अधिक बायोमेडिकल कचरा वातावरण में खप जाता है. लिहाजा इससे होने वाले नुकसान की कल्पना सहज ही की जा सकती है. जहां तक राजधानी पटना का सवाल है, यहां रोजाना निकलने वाले 7767 किलो मेडिकल कचरे में 6600 किलो निजी अस्पतालों से और शेष 1167 किलो कचरा सरकारी अस्पतालों से निकलता है. गौरतलब है कि समूचे बिहार में पटना, गया, भागलपुर और मुजफ्फरपुर में बायो मेडिकल कचरे के ट्रीटमेंट के लिए प्लांट लगे हुए हैं. इन सेंटर्स पर कलेक्शन करके मेडिकल वेस्ट पहुंचाया जाता है.
बायो मेडिकल वेस्ट बेहद खतरनाक हैं. खुले में मेडिकल कचरा फेंकने वालेसंस्थानों को नोटिस दिया गया है. कचरे को ट्रीटमेंट सेंटर पहुंचाना ही होगा. इन्हें खुले में छोड़ना खतरनाक है. इनसे ताकत पाने वाले जीवाणुओं पर एंटीबायोटिक भी बेअसर होते हैं.
डॉ अशोक कुमार घोष, अध्यक्ष, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड बिहार
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