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बढ़ रहा मछली का उत्पादन, इस साल आत्मनिर्भर हो जायेगा बिहार
मांग व उत्पादन में अब 42 हजार टन का ही रह गया है गैप पटना : मछली उत्पादन में आत्मनिर्भर बनने की दिशा में बिहार कदम बढ़ा चुका है. यह जमीनी सच्च्चई है. अब राज्य में मांग और उत्पादन में 42 हजार टन का गैप रह गया है. पशु एवं मत्स्य संसाधन विभाग ने गैप […]
मांग व उत्पादन में अब 42 हजार टन का ही रह गया है गैप
पटना : मछली उत्पादन में आत्मनिर्भर बनने की दिशा में बिहार कदम बढ़ा चुका है. यह जमीनी सच्च्चई है. अब राज्य में मांग और उत्पादन में 42 हजार टन का गैप रह गया है. पशु एवं मत्स्य संसाधन विभाग ने गैप को पाटने का टारगेट लेकर काम शुरू कर दिया है. पिछले साल 22 जिलों में सुखाड़ के बाद भी 2018 में 2017 की तुलना में करीब 14 हजार टन अधिक मछली का उत्पादन हुआ. पिछले साल राज्य में 6.01 लाख टन मछली का उत्पादन हुआ, जबकि उसके पहले 5.87 लाख टन मछली का उत्पादन हुआ था.
हाल के कुछ वर्षों में राज्य में मछली का उत्पादन बढ़ा है. राज्य मछली की आयात करने के साथ-साथ निर्यात भी करने लगा है. राज्य में मछली की मांग बढ़ी है, फिर भी बिहारी राष्ट्रीय औसत से डेढ़ किलो कम मछली खाते हैं.
अगर इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आइसीएमआर) की अनुशंसा की बात करें तो इसकी तुलना में करीब चार किलो कम है. पिछले पांच साल में राज्य में मछली की उत्पादन में बढ़ोतरी हुई है, लेकिन इसके बाद भी मांग और उत्पादन में करीब 42 हजार टन का सालाना गैप रह गया है. पड़ोसी देश नेपाल और पड़ोस के राज्यों में मछली का जाना शुरू हुआ है, लेकिन अब भी आंध्र प्रदेश से यहां मछली आ रही है. राज्य में अभी मछली की मांग 6.41 लाख टन है, जबकि उत्पादन 6.01 लाख टन है. पशु एवं मत्स्य संसाधन विभाग ने चालू वित्तीय वर्ष 2019-20 में इस गैप को समाप्त करने की लक्ष्य निर्धारित किया है. विभागीय अधिकारियों के अनुसार मछली खपत का राष्ट्रीय औसत नौ किलो प्रति व्यक्ति सालाना है, जबकि बिहार में इसकी उपलब्धता अभी प्रति व्यक्ति 7.7 किलो सालाना है. आइसीएमआर की अनुशंसा सालाना प्रति व्यक्ति 12 किलो खपत की है.
गैप को समाप्त करने की है योजना
मछली खपत और उत्पादन में पिछले कुछ सालों में अंतर आया है. लेकिन अब भी करीब 42 हजार टन की कमी है, जिसे चालू वित्तीय वर्ष में भरने का लक्ष्य रखा गया है. इसके लिए निजी मछली उत्पादकों को प्रोत्साहित करने की योजना है.
सरकार तालाब निर्माण और मछली उत्पादन के लिए अनुदान भी दे रही है. मत्स्य संसाधन के संयुक्त निदेशक निशात अहमद ने बताया कि अभी राज्य में 92 हजार हेक्टेयर में सरकारी और निजी तालाब हैं. मछली उत्पादन का यह बड़ा स्रोत है. इसके अलावा नदी, नहर, झील, जलकर, तालाब आदि में भी मछली का उत्पादन होता है. राज्य में करीब आठ लाख हेक्टेयर चौर की जमीन है, जिसमें अधिकांश समय पानी भरा रहता है और किसी तरह एक फसल हो पाती है. कुछ इलाके में तो वह भी नहीं.
विभाग एेसे में किसानों को तालाब खुदवाने और उसमें मछली उत्पादन को लेकर जागरूक कर रहा है. मोकामा टाल, कुशेश्वरस्थान, बरैला चौर, कावर झील आदि क्षेत्रों में मछली उत्पादन की काफी संभावना है. विभाग की सचिव डाॅ एन विजय लक्ष्मी ने बताया कि बिहार मछली उत्पादन में आत्मनिर्भर बनने की दिशा में कदम बढ़ा चुका है.
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