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कभी पटना था कांग्रेसियों का गढ़, रामावतार शास्त्री ने किया था इसे ध्वस्त

पटना : बिहार की राजधानी पटना की सियासी रणभूमि शुरुआती दौर में कांग्रेसियों की गढ़ मानी जाती थी. बाद में सीपीआइ व भाजपा का भी वर्चस्व रहा. वर्तमान में भी इस सीट को लेकर एक साथ रहने वाले दो दिग्गज नेता आपस में भिड़ने वाले हैं. साथ रहने वाले अब भाजपा छोड़ कर कांग्रेस में […]

पटना : बिहार की राजधानी पटना की सियासी रणभूमि शुरुआती दौर में कांग्रेसियों की गढ़ मानी जाती थी. बाद में सीपीआइ व भाजपा का भी वर्चस्व रहा. वर्तमान में भी इस सीट को लेकर एक साथ रहने वाले दो दिग्गज नेता आपस में भिड़ने वाले हैं.

साथ रहने वाले अब भाजपा छोड़ कर कांग्रेस में शामिल हो गये हैं. जिनका मुकाबला भाजपा से होना है. पहले तीन लोकसभा चुनाव के बाद चौथे लोकसभा चुनाव में कांग्रेसियों के गढ़ को भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के नेता रामावतार शास्त्री शिकस्त देने में सफल रहे थे.

उन्होंने 1967 में हुए चौथे लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के आरडी सिन्हा को हरा कर यह सीट छीनी थी. इसके बाद 1971 और फिर 1980 के मध्यावधि चुनाव में रामावतार शास्त्री पटना सीट पर कब्जा जमाने में सफल रहे थे. 1977 के चुनाव में लोकदल के टिकट पर पूर्व सीएम महामाया प्रसाद सिन्हा यहां से चुनाव जीत गये थे.

परिसीमन में बदलती रही सीट : परिसीमन को लेकर पटना सीट बदलता रही. 1951 में हुए पहले लोकसभा चुनाव में संयुक्त बिहार में पटना व आसपास के क्षेत्रों में तीन लोकसभा क्षेत्र की सीटें थीं.

पहले चुनाव में पाटलिपुत्र से कांग्रेस के सारंगधर सिन्हा ने सोशलिस्ट पार्टी के ज्ञानचंद को, पटना सेंटल से कांग्रेस के कैलाशपति सिन्हा ने निर्दलीय उम्मीदवार चंद्रिका सिंह को और पटना पूर्व से कांग्रेस की तारकेश्वरी देवी ने सोशलिस्ट पार्टी के बीपी जवाहर को हराया था. 1957 में दूसरे लोकसभा चुनाव में सिर्फ पटना सीट ही रह गयी. इस चुनाव में कांग्रेस के सारंगधर

सिन्हा ने सीपीआइ के रामावतार

शास्त्री को हराया था. तीसरे लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की रामदुलारी देवी ने सीपीआइ के रामावतार शास्त्री को शिकस्त दी थीं.

भाकपा की ताकत थी कभी यहां

1967 में हुए चौथे लोकसभा चुनाव में सीपीआइ के रामावतार शास्त्री ने कांग्रेस के गढ़ को तोड़ने में सफल रहे थे. उन्होंने कांग्रेस के आरडी सिन्हा को हराया. 1971 में पांचवें लोकसभा चुनाव में भी सीपीआइ नेता का पलड़ा भारी रहा. रामावतार शास्त्री भारतीय जन संघ के कैलाशपति मिश्र को हराने में कामयाब रहे. आपातकाल के बाद 1977 में हुए छठे लोकसभा चुनाव में इंदिरा विरोधी लहर में भारतीय लोकदल के महामाया प्रसाद सिन्हा भारी मतों से चुनाव जीत गये.

1980 में हुए मध्यावधि चुनाव में रामावतार शास्त्री ने जनता पार्टी से चुनाव लड़ रहे महामाया प्रसाद सिन्हा से यह सीट छीन ली. 1984 में आठवें लोकसभा चुनाव में फिर से कांग्रेस की वापसी हुई. डॉ सीपी ठाकुर ने सीपीआइ के रामावतार शास्त्री को शिकस्त दी. एक लाख 17 हजार वोट लाकर तीसरे नंबर पर लेफ्टिनेंट जेनरल एसके सिन्हा रहे थे.

भाजपा का भी रहा है वर्चस्व

पटना सीट पर भाजपा का भी वर्चस्व रहा. 1989 में भाजपा से शैलेंद्र नाथ श्रीवास्तव चुनाव जीते. इसके बाद 1998 व 1999 में भाजपा से डॉ सीपी ठाकुर ने क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया.

इससे पहले 1991 व 1996 में जनता दल व 2004 में राजद से रामकृपाल यादव चुनाव जीते. 2009 में परिसीमन के बाद पटना जिला की दो सीटें बनीं. पटना साहिब सीट से भाजपा के शत्रुघ्न सिन्हा लगातार दो बार 2009 व 2014 में चुनावी जंग फतह कर चुके हैं.

पाटलिपुत्र से 2009 में जदयू के रंजन प्रसाद यादव व 2014 में भाजपा से रामकृपाल यादव सफल रहे. इस बार लड़ाई बदल गयी है. पटना साहिब से कांग्रेस के उम्मीदवार शत्रुघ्न सिन्हा व भाजपा के रविशंकर प्रसाद के बीच टक्कर होगी. वहीं, पाटलिपुत्र सीट से भाजपा के रामकृपाल यादव व राजद की मीसा भारती के बीच मुकाबला होगा.

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