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पटना : परिजनों ने खोजा, फिर भी दरभंगा से सीतामढ़ी पहुंचने में लगे 15 दिन
बच्चों की तलाश तो छोड़िए, सुपुर्दगी, कानूनी लड़ाई में भी हांफ रहा तंत्र पटना : सरकारी तंत्र लापता बच्चों की तलाश में ही नहीं, बल्कि बरामदगी के बाद उनकी विधिवत सुपुर्दगी और कानूनी लड़ाई लड़ने में भी हांफ रहा है. इससे पीड़ित बच्चों को सरकार की योजनाओं का लाभ नहीं मिल पा रहा है. मानव […]
बच्चों की तलाश तो छोड़िए, सुपुर्दगी, कानूनी लड़ाई में भी हांफ रहा तंत्र
पटना : सरकारी तंत्र लापता बच्चों की तलाश में ही नहीं, बल्कि बरामदगी के बाद उनकी विधिवत सुपुर्दगी और कानूनी लड़ाई लड़ने में भी हांफ रहा है.
इससे पीड़ित बच्चों को सरकार की योजनाओं का लाभ नहीं मिल पा रहा है. मानव तस्करों और बाल मजदूरी के चंगुल से मुक्त बच्चों का सही मायनों में पुनर्वास नहीं हो पा रहा है.
सीतामढ़ी के बाजपट्टी थाने के मधुवन गोर गांव निवासी मो बेचू का बेटा सितंबर, 2018 में में लापता हो गया था. परिजनों ने करीब डेढ़ माह में अपने प्रयास से बेटे काे दरभंगा के एक बालगृह में खोल निकाला. बेचू ने बताया कि बेटे की तलाश से अधिक परेशानी उसे घर लाने में हुई. थाने में एफआईआर करायी गयी थी, इसके बाद भी कागजी कार्यवाही पूरी कराने में दर-दर की ठाेकर खानी पड़ी. उसे घर ले जाने में 15 दिन लग गये.
दूसरी ओर बिहार में चाइल्ड लेबर ट्रैकिंग सिस्टम में एक साल में सिर्फ 750 बच्चों की एंट्री हुई है. हाल ही में राजस्थान के चूड़ी कारखानों से बिहार के 71 बच्चों को मुक्त कराया गया. इनमें से सिर्फ 27 बच्चों की सीएलटीएस में एंट्री हुई. एफआईआर की काॅपी और बच्चों के रिलीज सर्टिफिकेट उपलब्ध नहीं होने से बाकी बच्चों की एंट्री नहीं हो सकी. इस कारण इनको पुनर्वास के लिए मिलने वाली तात्कालिक राशि भी नहीं मिल सकी है.
सरकार की ओर से बाल मजदूरों को मुक्त होेते ही तीन हजार रुपये दिये जाते हैं. 25 हजार रुपये मुख्यमंत्री राहत कोष से दिये जाते हैं. बच्चों के उत्पीड़न करने वालों सजा हो जाती है तो पीड़ित बच्चे को ढाई लाख रुपये केंद्र सरकार देती है. जयपुर के आमेर थाने में दर्ज (एफअाईआर नंबर 47/17) इन बच्चों के मामले की सुनवाई अपर जिला एवं सेशन न्यायाधीश, क्रम 11 जयपुर महानगर में हो रही है. 27 नवंबर को तारीख थी. अभी तक गवाही करायी गयी है.
बॉक्स
इच्छाशक्ति की कमी
पटना. जस्टिस वेंचर्स इंटरनेशनल के स्टेट प्रोग्राम कोऑर्डिनेटर जाहिद का कहना है कि बच्चों के असुरक्षित पलायन और ट्रैफिकिंग को रोकने के लिए सरकारी तंत्र में इच्छाशक्ति बहुत कमजोर है. राज्य और जिला स्तर की कमेटी विशेषकर विजिलेंस कमेटी का फील्ड में भ्रमण न के बराकर है. ट्रैफिकर के खिलाफ राज्य में एफआईआर भी होनी चाहिए.
बच्चों को कानूनी मदद
पटना. बच्चों के जुड़े मामलों में सरकार निशुल्क विधिक मदद उपलब्ध करायेगी. इस साल से राज्य विधिक सेवा प्राधिकार अब बच्चों के जुड़े मामलों में न केवल प्रभावी पैरवी करायेगा, बल्कि उनकी सुनवाई प्राथमिकता से कराने के लिए भी काम करेगा. इसमें कई संस्थाओं की लीगल सपोर्ट भी ली जायेगी.
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