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पटना : घाटों के कुप्रबंधन से बुझ रहे घरों के चिराग, प्रशासन अंजान
बिहार में वर्ष 2018 में अब तक डूबने से 80 से अधिक मौतें पटना : अति उत्साह एवं नदी/तालाबों के घाटों के कुप्रबंधन के चलते समूचे बिहार में वर्ष 2018 में अब तक अस्सी से अधिक लोगों की पानी में डूबने से मौत हाे चुकी है. मरने वालों में तीन-चौथाई बच्चे रहे हैं. ताजातरीन घटनाक्रम […]
बिहार में वर्ष 2018 में अब तक डूबने से 80 से अधिक मौतें
पटना : अति उत्साह एवं नदी/तालाबों के घाटों के कुप्रबंधन के चलते समूचे बिहार में वर्ष 2018 में अब तक अस्सी से अधिक लोगों की पानी में डूबने से मौत हाे चुकी है. मरने वालों में तीन-चौथाई बच्चे रहे हैं. ताजातरीन घटनाक्रम बीते बुधवार का रहा, जिसमें पटना सिटी और मसौढ़ी में कुल मिला कर पांच बच्चों की दर्दनाक मौत हुई. हैरत की बात यह रही कि घाट से बच्चे के डूबने का वीडियो तो लोगों ने बना लिये, लेकिन बच्चों को बचाने के लिए समुचित प्रयास नहीं किया जा सका. बात साफ है कि घाट कुप्रबंधन के शिकार हैं, जिससे कई घरों के चिराग असमय बुझ रहे हैं.
पटना सिटी परिक्षेत्र में डूबे बच्चों की उम्र 11-15 वर्ष के बीच रही. अति उत्साह में बच्चे नहाने गये. हुआ वही कि बच्चों को पानी के तेज बहाव और घाट की गहराई का अंदाजा नहीं लग सका. अहम बात यह है कि गायघाट जैसे बेहद व्यस्त घाट पर बचाव के बेहतर इंतजाम नहीं थे. गोताखोर काफी समय बाद वहां पहुंच सके. जानकारों का कहना है कि बाढ़ के संवेदनशील दौर में यहां गोताखोरों का तैनात न होना अचरज भरा रहा. बात साफ है कि न तो शहरी घाटों पर सुरक्षा के कोई पुख्ता इंतजाम हैं, न ग्रामीण क्षेत्रों में पंचायतों ने इसके लिए कोई खास प्रबंध कर रखा है. मसौढ़ी में तो मरने वाले बच्चों की उम्र दस साल से कम है. यहां पईन में डूबने से बच्चों की मौत हो गयी. इससे पहले कई घटनाओं में सेल्फी क्रेज भी खतरनाक साबित हो रहा है.
नदी में होने वाली मौतों की वजह पानी की प्रकृति को न समझ पाना रहा है. लोग इस बात का अंदाजा नहीं लगा पाते हैं कि नदी तल पर पानी का बहाव ऊपरी बहाव से कहीं ज्यादा होता है. इससे कम पानी में भी बच्चे खुद को संभाल नहीं पाते. चूंकि मानव शरीर का घनत्व पानी के घनत्व से अधिक होता है, इसलिए वह डूब जाता है. मानव शरीर का घनत्व 1़ 08 होता है, जबकि पानी का घनत्व 1़ 01 है.
विशेषज्ञों के मुताबिक गंगा और दूसरी नदियों के खासतौर पर ग्रामीण इलाकों के परंपरागत घाट तहस-नहस किये जा चुके हैं. रेत माफियाओं ने घाटों के स्वरूप ही बदल दिया है, जिसके चलते जब भी जल स्तर बढ़ता है, तब नदी तल और उसके किनारे तेजी से कटाव होता है, इससे स्थानीय लोग भी अंदाजा नहीं लगा पाते हैं कि पानी कहां कितना है?
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