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बिहार : पटना हाईकोर्ट का आदेश, सिविल कोर्ट में चतुर्थवर्गीय कर्मियों की नियुक्ति प्रक्रिया रद्द

पटना : राज्य के जिला अदालतों में चतुर्थवर्गीय पदों पर पुरानी नियमावली के तहत चल रही नियुक्ति प्रक्रिया को पटना हाईकोर्ट ने निरस्त कर दिया. साथ ही हाईकोर्ट ने नयी नियमावली के तहत फिर से नियुक्ति प्रक्रिया शुरू करने का आदेश दिया है. मुख्य न्यायाधीश राजेंद्र मेनन और न्यायाधीश राजीव राजीव रंजन प्रसाद की खंडपीठ […]

पटना : राज्य के जिला अदालतों में चतुर्थवर्गीय पदों पर पुरानी नियमावली के तहत चल रही नियुक्ति प्रक्रिया को पटना हाईकोर्ट ने निरस्त कर दिया. साथ ही हाईकोर्ट ने नयी नियमावली के तहत फिर से नियुक्ति प्रक्रिया शुरू करने का आदेश दिया है.
मुख्य न्यायाधीश राजेंद्र मेनन और न्यायाधीश राजीव राजीव रंजन प्रसाद की खंडपीठ ने बिहार युवा अधिवक्ता कल्याण समिति की ओर से दायर लोकहित याचिका को इस आदेश के साथ निष्पादित कर दिया.
हाईकोर्ट ने अपने आदेश में स्पष्ट कहा है कि राज्य की जिन 22 जिला अदालतों में 2009 की पुरानी नियमावली के तहत नियुक्ति प्रक्रिया पूरी कर अंतिम चयन सूची अगर बन ली गयी है तो भी उस पूरी सूची को निरस्त की जाये और वहां पर फिर से 2017 में लागू नयी नियमावली के तहत नियुक्ति प्रक्रिया शुरू की जाये. पुरानी नियमावली के तहत दो जिलाें जमुई और भागलपुर में हुई नियुक्तियों का भविष्य हाईकोर्ट के निर्देश पर की जा रही निगरानी जांच के परिणाम पर निर्भर करेगा.
कोर्ट ने कहा कि यदि वहां नियुक्ति प्रक्रिया कानून के तहत सही पायी गयी तो उसे बरकरार रखा जायेगा और गैरकानूनी होने पर उसे भी निरस्त माना जायेगा.
हाईकोर्ट का यह आदेश सुप्रीम कोर्ट द्वारा रेणु बनाम तीस हजारी जिला कोर्ट में दिये गये आदेश पर आधारित है. इसमें यह तय किया गया कि तृतीय व चतुर्थवर्गीय पदों पर की जाने वाली नियुक्ति केवल इंटरव्यू के आधार पर कराना न सिर्फ असंवैधानिक है, बल्कि पूरी नियुक्ति प्रक्रिया की पारदर्शिता पर सवाल खड़ा करता है.
वर्ष 2009 की पुरानी नियमावली के तहत तृतीय व चतुर्थवर्गीय पदों पर नियुक्ति के लिए केवल इंटरव्यू प्रक्रिया का प्रावधान ही था. वर्ष 2014 में रेणु मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद राज्य की निचली अदालतों के तृतीय व चतुर्थवर्गीय पदों पर नियुक्ति के लिए 23 मई, 2017 से नया नियम लागू हुआ, जिसके तहत नियुक्ति दो चरणों में यानी लिखित परीक्षा और इंटरव्यू के जरिये होनी है.
लिखित परीक्षा के लिए 85% और इंटरव्यू के लिए 15% अंक देने का प्रावधान है. सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता दीनू कुमार ने अदालत को बताया कि सभी निचली अदालतों में रिक्तियों को भरने के लिए नियुक्ति प्रक्रिया जुलाई, 2017 से शुरू हुई थी. उस वक्त नया नियम आ गया था.
फिर भी पुराने नियम के तहत नियुक्ति प्रक्रिया जारी रखने का कोई औचित्य नहीं था. उन्होंने अदालत को बताया कि पुराने नियम की प्रक्रिया में पारदर्शिता नहीं है. इस नियुक्ति में भतीजावाद को प्रश्रय दिया जा रहा है.
दूसरी ओर हाईकोर्ट प्रशासन का पक्ष रखते हुए अधिवक्ता सत्यवीर भारती ने अदालत को बताया कि यह रिक्तियां वर्ष 2016 में ही अधिसूचित हो गयी थीं. उस वक्त 2009 का पुराना नियम ही लागू था. पुराना या नया सभी नियम नियुक्ति प्रक्रिया में पारदर्शिता बनाये रखता है.
भाई-भतीजावाद नहीं हो, इसका पूरा ख्याल रखा गया है. हाईकोर्ट ने अधिवक्ता श्री भारती के दलील को खारिज करते हुए सभी 22 जिलों की जिला अदालतों की नियुक्ति प्रक्रिया को निरस्त कर नये सिरे से नियुक्ति प्रक्रिया शुरू करने का निर्देश दिया. अदालत ने केवल आठ जिलाें, जहां जुलाई, 2017 में नयी नियमावली के तहत नियुक्तियां की जा रही हैं, उसे जारी रखने का आदेश दिया. इन जिलाें में औरंगाबाद, समस्तीपुर, पूर्वी चंपारण, गोपालगंज, सीतामढ़ी, जहानाबाद, पटना व दरभंगा हैं.
जिन जिलों में पुरानी नियमावली के तहत इन पदों पर नियुक्ति की गयी थी और सफल उम्मीवार अपने पदस्थापन के स्थान पर योगदान कर अपना कार्य कर रहे हैं, उन पर इस आदेश का कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा. गौरतलब है कि इस मामले में मुख्य न्यायाधीश की ही खंडपीठ ने 16 अक्तूबर, 2017 को राज्य के सभी जिला अदालतों में पुराने नियम के अनुसार हो रही नियुक्ति प्रक्रिया पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी थी.

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