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चर्चा में रहे बिहार के सियासी भोज के बाद लालू कुनबे के सामने ये हैं चुनौतियां

पटना : बिहार की राजनीति में 27 जुलाई, 2017 को एनडीए सरकार बनने के साथ ही इसबार की मकर संक्रांति बदला-बदला सा दिखा. इस बार बिहार में मकर संक्रांति केमौके पर सियासी दलों की आेर से आयोजित चूड़ा-दही भोज में एनडीए गठबंधन की धमक दिखाई दी.वहींमहागठबंधन का दरबार सूनारहा. बिहार में इस बार बदलेइन सियासी […]

पटना : बिहार की राजनीति में 27 जुलाई, 2017 को एनडीए सरकार बनने के साथ ही इसबार की मकर संक्रांति बदला-बदला सा दिखा. इस बार बिहार में मकर संक्रांति केमौके पर सियासी दलों की आेर से आयोजित चूड़ा-दही भोज में एनडीए गठबंधन की धमक दिखाई दी.वहींमहागठबंधन का दरबार सूनारहा. बिहार में इस बार बदलेइन सियासी भोज के साथ ही राजद कुनबे की मुश्किलें बढ़ने को लेकर सियासी चर्चाएं तेज हो गयी है. लालू के जेल में जाने के साथ ही तेजस्वीयादवऔर तेजप्रतापयादव की कई मामलाें में परेशानियां बढ़ने की उम्मीद जतायी जा रही है.

दरअसल, पिछले साल जदयू-राजद-कांग्रेस के महागठबंधन की सरकार थी. तब लालू प्रसाद के भोज में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार समेत तीनों दलों के दिग्गजों की जुटान के बीच लालू के आतिथ्य का चिरपरिचत अंदाज भी दिखा था. दो वर्षों तक महागठबंधन सरकार होने के दौरान चूड़ा-दही भोज के मौके पर लालू प्रसाद ने नीतीश कुमार को तिलक लगा कर एकजुटता का परिचय दिया था. वहीं, इस बार एनडीए के प्रमुख घटक दल लोजपाकी आेरसे आयोजितभोज में पहुंचे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को रामविलास पासवान ने गले लगाकर मकर संक्रांति की बधाई दी. उधर, लालू प्रसाद के चारा घोटाला के एक मामले में जेल में होने और उनकी बड़ी बहन के निधन के कारण राजद खेमा चूड़ा-दही भोज से अलग रहा.

आकलन में जुटी कांग्रेस
चारा घोटाले में लालू प्रसाद के जेल जाने के बाद कांग्रेस अपने संगठन को बिहार में पुर्नजीवित करने में जुट गयी है. पुराने कांग्रेसियों की घर वापसी यात्रा की 18 जनवरी से शुरुआत यह संकेत दे रही है कि कांग्रेस बिहार में लालू के साथ तो रहेगी, किंतु अपने वजूद से कोई समझौता नहीं करेगी.चर्चा है कि बिहार की स्थिति पर कांग्रेस में पटना से लेकर दिल्ली तक विमर्श का दौर जारी है. लालू के साथ और लालू के बिना की स्थितियों का आकलन किया जा रहा है. वहीं, लालू के जेल जाने के बाद से राबड़ी और तेजस्वी यादव से मुलाकात कर चुके कांग्रेस के प्रदेश कार्यकारी अध्यक्ष कौकब कादरी का यह बयान भी मायने रखता है कि कांग्रेस ने भ्रष्टाचार का हमेशा विरोध किया है. हमारे नेताओं पर जब भी भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं तो उनपर कार्रवाई हुई है. धर्मनिरपेक्षता के नाम पर हम राजद के साथ तो हैं लेकिन, लालू के मामले में कानूनी प्रक्रिया के साथ हैं.

इन सबके बीच शनिवार को बिहार के वरिष्ठ कांग्रेसी प्रदेश में अपनी पार्टी के वर्तमान और भविष्य पर चिंतन करने के लिए सदाकत आश्रम में इकट्ठाहुए.बताया जा रहा है कि इसबैठक में लालू के जेल जाने के बाद की स्थितियों और कांग्रेस के स्टैंड पर चर्चा हुई.इनसबकेबीच कांग्रेस की आमंत्रण यात्रा 18 जनवरी से बेतिया जिले के वृंदावन में उस स्थान से शुरू होनी है जहां कभी महात्मा गांधी और जवाहर लाल नेहरू जा चुके हैं. विधानसभा में महागठबंधन के सहारे चार से 27 सीटों की हैसियत पर पहुंचने वाली कांग्रेस के सामने बड़ी चुनौती अपने वर्तमान को बरकरार रखकर विस्तार की कवायद करना है. कांग्रेस के रणनीतिकार मानते हैं कि राजद और जदयू जैसे क्षेत्रीय दलों के उभार के बाद से बिहार में कांग्रेस की स्थिति कमजोर होती चली गयी.

कर्पुरी जयंती के बहाने वोट बैंक की राजनीति
नये साल की शुरुआत से ही राज्य के प्रमुख राजनीतिक दल अतिपिछड़ों की गोलबंदी में जुट गये हैं. जननायक कर्पुरी ठाकुर की जयंती इस कार्य का जरिया बनेगी. 24 जनवरी को श्रीकृष्ण मेमोरियल हॉल में जदयू द्वारा आयोजित कर्पुरी जयंती समारोह को एक ओर जहां मुख्यमंत्री नीतीश कुमार संबोधित करेंगे. वहीं मुख्य विपक्षी दल राजद 24 जनवरी से 7 फरवरी तक पूरे पखवारे राज्य स्तर एवं जिलों में विभिन्न कार्यक्रम आयोजित करेगा. इन कार्यक्रमों में लालू प्रसाद के जेल जाने को भी मुद्दा बनाया जायेगा. उधर, भाजपा पहली बार हर जिले में इस मौके पर सम्मेलन करेगी. कार्यक्रम में पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के आने की संभावना है. चुनावी दृष्टिकोण से प्रदेश में अतिपिछड़ों का वोट बैंक महत्वपूर्ण है. इस समूह में करीब 110 छोटी-छोटी जातियां शामिल हैं और यह एक बड़ा वोट बैंक हैं.

1996 से 2013 तक जदयू की सहयोगी रही भाजपा ने इस दौरान कर्पुरी जयंती के प्रति बहुत उत्साह नहीं दिखाया. मगर जदयू से अलग होने के बाद भाजपा ने कर्पुरी जयंती समारोह के प्रति अधिक दिलचस्पी दिखाई. 2016 में आयोजित समारोह में पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने भी भाग लिया था. भाजपा एक बार फिर जदयू के साथ हो चुकी है और पूरे उत्साह के साथ कपरूरी जयंती मनाने की तैयारी में है. भाजपा की सहयोगी पार्टी रालोसपा 25 जनवरी को रवींद्र भवन में कर्पुरी जयंती समारोह आयोजित करेगी, जिसमें राष्ट्रीय अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा मुख्य वक्ता होंगे.वहीं, हिंदुस्तान अवाम मोर्चा अपने अध्यक्ष जीतनराम मांझी के आवास पर 24 जनवरी को जयंती मनायेगा.

लालू की गैर मौजूदगीकाफायदा उठाने की कोशिश में एनडीए
इन सबके बीच राजद प्रमुख लालू प्रसाद ने भले ही जेल से अपने समर्थकों को एकजुट रखने के लिए भावनात्मक खत लिखा है, लेकिन राजग की कोशिश उनकी गैर मौजूदगी का फायदा उठाने की है. लालू के खत के मुकाबले राजग के घटक दलों ने प्लान तैयार कर लिया है. जदयू नेताओं ने सामाजिक बदलाव की फेहरिस्त लेकर प्रदेश में निकलने का कार्यक्रम तैयार किया है तो भाजपा भ्रष्टाचार पर चोट कर दलितों और पिछड़ों के बीच पैठ बनाने-बढ़ाने के लिए विकास के रोडमैप को भुनाने की तैयारी में है. भाजपा का फोकस मुख्य रूप से पिछड़ों, दलितों, महादलितों और अल्पसंख्यकों के लिए शुरू की गयी योजनाओं पर रहेगा. पार्टी संत रविदास की जयंती जैसे आयोजनों के जरिये पिछड़ों और दलितों को अपने पक्ष में गोलबंद करने की कोशिश करेगी.

फरवरी-मार्च में हो सकता है राज्यसभा की 7 सीटों पर चुनाव
चारा घोटाले में लालू प्रसाद के जेल जाने के बाद राजदकीपहली परीक्षा राज्यसभा चुनाव में होगी. बिहार में राज्यसभा की सात सीटों पर फरवरी में चुनाव संभावित है. लालू की गैर-मौजूदगी में प्रतिपक्ष के विधायकों पर सत्तारूढ़ दल की नजर रहेगी, क्योंकि खाली होने वाली सारी सीटें जदयू-भाजपा गठबंधन की हैं. सत्तारूढ़ दलों की कोशिश राजद-कांग्रेस के असंतुष्ट विधायकोंको अपने पाले में लेकर ज्यादा से ज्यादा सीटों पर कब्जा जमाने की होगी, जबकि विपक्ष की ऊर्जा अपने खेमे को अटूट रखकर धमाकेदार उपस्थिति दर्ज कराने में लगेगी.ऐसे में एक-एक वोट के लिए मारामारी तय है. ऐसे में लालू की जमानत के लिए प्रयासरत तेजस्वी यादव की मुश्किलों में इजाफा हो सकता है. बताया जाता है कि लालू कोजमानत मिलने में अगर विलंब हुआ तो राजद के विधायक अंतरात्मा की आवाज और सत्ता पक्ष के वाणी-व्यवहार के आगे अनियंत्रित हो सकते हैं.

ये हैं चुनौती
मुंद्रिका यादव के निधन के बाद राजद विधायकों की संख्या कम हो गयी है. राजद के अभी 79 और कांग्रेस के 27 विधायक हैं. तीन सीटों पर जीत के लिए विपक्ष को कम से कम 105 वोट चाहिए. अभी सिर्फ 106 वोटहैजो जरूरत से एक ज्यादा है. बताया जा रहा है कि अदालतीमुश्किलों में फंसे राजद के दो विधायकों ने भी अगर पाला बदल लिया या वोट के समय अनुपस्थित हो गये तो महागठबंधन की मुश्किलें बढ़ जायेंगी.

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