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लालू के जेल जाने पर मुगालते में हैं कुछ राजनेता और पार्टियां, लेकिन काश ऐसा होता…

पटना : बिहार की सियासत को अपनी विशेष समीकरण की राजनीति से साढ़े चार दशक तक हांकने वाले राजद सुप्रीमो लालू यादव के चारा घोटाला मामले में जेल जाने के बाद कई राजनेता और पार्टियां कुछ अलग तरह के सपने देख रही हैं. खासकर, बिहार में राजद के विरोध की राजनीति करने वाली पार्टियों के […]

पटना : बिहार की सियासत को अपनी विशेष समीकरण की राजनीति से साढ़े चार दशक तक हांकने वाले राजद सुप्रीमो लालू यादव के चारा घोटाला मामले में जेल जाने के बाद कई राजनेता और पार्टियां कुछ अलग तरह के सपने देख रही हैं. खासकर, बिहार में राजद के विरोध की राजनीति करने वाली पार्टियों के नेता, अपने बयान में कुछ ऐसा बोल रहे हैं, जैसे लालू के जेल जाते ही राजद का अंत निश्चित है. लेकिन, राजनीतिक प्रेक्षक कुछ और ही देख रहे हैं. वरिष्ठ पत्रकार प्रमोद दत्त कुछ पीछे की सियासी घटनाओं की चर्चा करते हुए कहते हैं कि वोट बैंक पर मजबूत पकड़े रखने वाले लालू यादव बिहार की राजनीति के माहिर खिलाड़ी हैं. उम्र बढ़ने के बाद भी लालू ने अपनी सक्रियता और राजनीतिक बयानबाजी में कोई कमी नहीं की. लालू की सातवीं जेल-यात्रा से यह कयास लगाये जा रहे हैं कि बिहार की राजनीति से उनकी जड़ें उखड़ जायेगी.एनडीए नेता व समर्थक इसी जोश में बयानबाजी करते नजर आ रहे हैं.लेकिन लालू प्रसाद के राजनीतिक उतार-चढ़ाव को देखते हुए कहा जा सकता है कि यह इतना आसान नहीं जैसा प्रचारित किया जा रहा है.

चारा घोटाले पर विशेष शोध कर चुके प्रमोद दत्त कहते हैं कि लालू ने चारा घोटाले में कई बार जेल यात्रा की लेकिन उनकी राजनीति पर कोई असर नहीं पड़ा. इस दौरान कई चुनाव हुए. 2010 के विधानसभा चुनाव को छोड़ दें, तो कभी उनकी जड़े हिलती नजर नहीं आयी. सत्ता से बेदखल होने के बाद भी लालू को कोई पछाड़ नहीं पाया. लालू ने जेल यात्रा का राजनीतिक लाभ भी लिया और 1996 में चारा घोटाला उजागर होने के बाद संवैधानिक संकट आने पर भले मुख्यमंत्री पद छोड़ा लेकिन राबड़ी को ताज देकर सुपर मुख्यमंत्री बन गये और जेल से ही सत्ता को संभाला. 2000 के विधानसभा चुनाव में राजद बड़ी पार्टी बनकर उभरी, जबकि उसके पहले जेल गये थे. इस बार सजा होने के बाद राजद में टूट और लालू के फिनिश होने को लेकर तमाम तरह की चर्चाएं हैं, लेकिन इनका अभी कोई मतलब नहीं दिख रहा है. राजनीतिक जानकारों की मानें तो चारा घोटाला में आये इस फैसले के बाद लालू यादव को समाप्त मान लेना जल्दबाजी ही नहीं बल्कि बड़ी भूल होगी.

पहले जब भी लालू जेल गये, तो उनके लिए परिवार में राजनीति को धार देने वाली सिर्फ राबड़ी देवी और उनके समर्थक थे, लेकिन अब तेजस्वी यादव और तेज प्रताप भी राजनीति में सक्रिय हैं. सोशल मीडिया हो, या युवाओं के फोरम पर दोनों भाईयों को मिल रहा समर्थन. यह दर्शाता है कि लालू अब अकेले नहीं है. हाल में हुई राजद की बैठक के बाद यह देखा गया कि पार्टी के पुराने नेता भी तेजस्वी यादव के नेतृत्व में नारे लगा रहे हैं. तेजस्वी यादव लगातार नीतीश कुमार और बीजेपी नेता सुशील मोदी से ट्वीटर और बयानों के जरिये लोहा ले रहे हैं. जानकार कहते हैं कि तेजस्वी यादव ने तेज प्रताप को जदयू और भाजपा के छोटे नेताओं को जवाब देने के लिए रखा है और स्वयं राष्ट्रीय स्तर के नेताओं पर टिप्पणी करते हैं.

कानूनीजानकारऔरराजनीतिकपार्टीसेजुड़े अधिवक्ता कहते हैं कि पार्टी संगठन को पूरा समय देने वाले तेजस्वी काफी गंभीरता से लालू की राजनीति को आगे बढ़ाते हुए दिख रहे हैं. साढ़े तीन साल की सजा मिलने के बाद लालू को जमानत मिलना भी तय है और हाईकोर्ट से पहले की तरह उन्हें जमानत निश्चित तौर पर मिल जायेगी. ऐसे में तेजस्वी की राजनीति को मजबूत करने के लिए लालू के पास अभी भी पर्याप्त समय है. तेजस्वी यादव ने राहुल गांधी के साथ मुलाकात कर, सियासी हलकों में यह संदेश भी दे दिया है कि वह आने वाले दिनों में कांग्रेस को साथ लेकर अपनी राजनीति करेंगे. इधर, बिहार कांग्रेस के नेता साफ कह चुके हैं कि लालू जेल में रहें या बाहर उनके साथ ही पार्टी रहेगी.

तेजस्वी की संगति में तेज प्रताप पर भी असर पड़ रहा है, तेज प्रताप हाल के दिनों में ज्यादा सक्रिय हुए हैं.सार्वजनिक मंच पर शंख बजाकर लोगों को आकर्षित करना. विवादास्पद बयान देना. यहां तक विधानसभा परिसर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ बयान देना. लगातार मीडिया की सुर्खियों में बने रहना. तेज प्रताप तेजस्वी से पहले अपनी राजनीति को बिहार के सियासी फ्रंट पर रखते नजर आ रहे हैं. माना जा रहा है कि तेज प्रताप यादव भी उसी देशज अंदाज में खुद को अपने समर्थकों के सामने पेश कर रहे हैं और यही कारण है कि जिस तबके में लालू प्रसाद यादव की लोकप्रियता उफान पर थी उसी तबके में तेज प्रताप यादव ने अपनी पैठ बनानी शुरू कर दी कर दी है.

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