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अधूरी लैब व बिन ऑफिस चल रही खाद्य सुरक्षा की छापेमारी
10 अभिहित पदाधिकारी (डीओ) को वेतन फूड इंस्पेक्टर का दिया जाता है निर्भीक हैं मिलावट करनेवाले पटना : हर डीओ के पास तीन प्रमंडलोें का भार है, लेकिन इनके पास छापेमारी के लिए न, तो गाड़ी है और ना जांच के लिए लैब. पहले इनको टीए व डीए भी मिलता था, लेकिन कई माह से […]
10 अभिहित पदाधिकारी (डीओ) को वेतन फूड इंस्पेक्टर का दिया जाता है
निर्भीक हैं मिलावट करनेवाले
पटना : हर डीओ के पास तीन प्रमंडलोें का भार है, लेकिन इनके पास छापेमारी के लिए न, तो गाड़ी है और ना जांच के लिए लैब. पहले इनको टीए व डीए भी मिलता था, लेकिन कई माह से इसे भी बंद कर दिया गया है. इस कारण छापेमारी भी लगभग बंद रहती है. हालात ऐसे हैं कि पद सृजन करने के बाद सरकार की ओर से बिहार लोक सेवा आयोग को भेजा गया है, लेकिन अभी तक बहाली के लिए आवेदन नहीं मांगा गया है.
स्वास्थ्य विभाग की यह शाखा खाद्य सुरक्षा प्राधिकार, जिसके ऊपर राज्य के लोगों तक शुद्ध खाद्य पदार्थ पहुंचाने की पूरी जिम्मेवारी है, जो कि खुद अपनी सुरक्षा तक नहीं कर सकता है. क्योंकि बिहार में दस अभिहित पदाधिकारी (डीओ) हैं, जिनका पद बड़ा हैं, लेकिन इनको भी वेतन फूड इंस्पेक्टर का दिया जाता है. पुलिस के जवान भी डंडेवाले मिलते हैं. इस कारण आज तक मिलावट करनेवाले बड़े कारोबारी आराम से मिलावट कर पैसा कमा रहे हैं.
विभागों की गलियों में खो जाती है बहाली की फाइल
जानकारी के मुताबिक पद सृजन को लेकर वर्षों से काम किया जा रहा है, लेकिन विभागों के चक्कर में फाइल इधर-से-उधर भटक रही है. इसी वजह से अभी फाइल कहां है, इसकी जानकारी किसी को नहीं है. जानकारी के मुताबिक इसमें 615 पदों का सृजन होना था और इसके लिए अलग से अपना भवन भी बनाया जाना था, लेकिन काम फाइलों में ही सिमट कर रह गया है. अब 105 पदों पर बहाली की प्रक्रिया हो रही है, जिसका अभी तक कोई पता नहीं है.
यह है नियम
खाद्य सुरक्षा प्राधिकार एक्ट के मुताबिक हर जिले में एक डीओ और एफएसओ को रखना है, जो ब्लॉक स्तर पर काम कर सकें, लेकिन एक्ट को दरकिनार कर इस शाखा को बस नाम का चलाया जा रहा है. ऐसे में मिलावट का बाजार बिहार में बढ़ता जा रहा है. इन मिलावटी कारोबारियों को पकड़ने वाला कोई नहीं है. सरकार की यह शाखा बस दिखावे के लिए चल रही है, जिससे लोगों को कोई फायदा नहीं होने वाला है.
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