पुष्यमित्र
पटना : सिखों के लिए पटना साहिब का अपना ही महत्व है. इसलिए नहीं कि यहां उनके दसवें गुरु गोविंद सिंह का जन्म हुआ और बचपन गुजरा, जो गुुरु नानक देव के बाद सबसे महत्वपूर्ण गुरु माने गये. बल्कि इसलिए भी कि अपनी जवानी के दिनों में नानक देव पटना से होकर गुजरे और उन्होंने यहां तीन महत्वपूर्ण गुरुद्वारों की स्थापना की. उस वक्त नानक देव 37 साल के थे. उन्होंने यहां आठ महीने से अधिक प्रवास किया. उनका पटना में प्रवास करना और शिष्यों को बनाना ही वह आधार था कि गुरुतेग बहादुर जब पटना से होकर असम की यात्रा पर निकले तो उन्होंने अपने परिवार को पटना में छोड़ दिया. उसी जगह जहां गुरु नानक के मुरीद पहले से मौजूद थे. लिहाजा यहीं गुरु गोबिंद सिंह का जन्म हुआ और उन्होंने बाल लीलाएं की. कहीं खिचड़ी तो कहीं छोले खाये. किसी मंदिर में घुस कर प्रसाद खाया. फिलहाल इस आलेख में गुरु गोबिंद सिंह की नहीं, बल्कि गुरु नानक देव की बात करूंगा.
पटना सिटी से पहले एक जगह है, गाय घाट. जब भी यहां से गुजरता तो सोचता कि जरूर यहां गायें गंगा नदी में पानी पीने आती होंगी या नावों से उतरती होंगी इसलिए इसका नाम गाय घाट पड़ा होगा. आज गाय घाट गुरुद्वारा पहुंचा तो इस नाम के पीछे अलग ही किस्सा सुनने को मिला. गुरु नानक सिख धर्म के प्रसार के लिये यहां पहले पहल आये थे. यहां जेता मल नाम के व्यापारी रहा करते थे जो काफी अशक्त थे. नानक जी महाराज उन्हीं के घर ठहरे थे. उन्होंने नानक जी से कहा कि बाबाजी मेरी बड़ी इच्छा रोज गंगा स्नान की रहती है, मगर अशक्त होने की वजह से जा नहीं पाता. इस पर नानक जी महाराज ने कहा, तुम्हारा गंगा स्नान यहीं हो जायेगा. इसके बाद से रोज एक गाय गंगा नदी से मुंह में पानी भर कर लाती और जेता मल के सर पर डाल देती. सिख मान्यताओं के मुताबिक गाय घाट इसी वजह से नाम पड़ा. पटना साहिब के सबसे पुराने गुरुद्वारे गाय घाट गुरुद्वारा में आज भी जेता मल की यह तस्वीर लगी है. वे गाय के मुंह से गिर रहे गंगा जल से स्नान कर रहे हैं.
अशोक राजपथ मुख्य मार्ग पर स्थित गायघाट गुरुद्वारा पटना ही नहीं बिहार का सबसे प्राचीन गुरुद्वारा है. इस गुरुद्वारे का निर्माण गुरु नानक देव के बिहार आगमन के दौरान हुआ था. वे यहां 1506 ईस्वी में आये थे, इस लिहाज से यह गुरुद्वारा 510 साल पुराना है. यहां आकर उन्होंने दो गुरुद्वारों की स्थापना की. पहला यह, दूसरा गुरुद्वारा संगत सुनार टोली. यहां से वे एक सुनार मुरलीधर के साथ सुनारों के मोहल्ले में आये, जहां इस संगत की स्थापना हुई. उसके बाद वे एक बड़े सुनार सालस राय के घर गये और वहां उन्होंने आठ महीने से अधिक का वक्त गुजारा, वह पहले गुरु नानक धर्मशाला बना, फिर उस धर्मशाला में जब सिख पंथ के दसवें गुरु का जन्म हुआ तो वहां तखत हरमंदिर साहब की स्थापना हुई. इस लिहाज से देखा जाये तो तीनों गुरुद्वारों में गुरु नानक देव के चरण पड़े हैं. इनमें हरमंदिर साहब और गायघाट गुरुद्वारा की हालत तो ठीक-ठाक है. मगर संगत सुनार टोली की स्थिति बहुत बढ़िया नहीं है. यह परिसर सुनारों के मोहल्ले में काफी अंदर है और वहां तक पहुंचने के लिए कोई साइन बोर्ड भी नहीं लगा है. गुरुद्वारा परिसर में एक हिंदू महिला द्रोपदी देवी रहती हैं. वे कहती हैं, गुरुद्वारा का पुराना भवन पूरी तरह जर्जर हो चुका है और बिल्कुल सटे नये भवन में जो 2004 में एक पंजाबी महिला ने दान किया था गुरु्दारा चलता है. वहां दो पुराने बोर्ड लगे हैं जिन पर कुछ विवरण लिखे हैं.
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