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सृजन घोटाला : पटना हाइकोर्ट में जनहित याचिका दायर, निष्पक्ष जांच के लिए सीबीआई जांच कराने की मांग की

पटना : बिहार में हुए बहुचर्चित सृजन घोटाले की सीबीआई जांच के लिए बुधवार को पटना हाइकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गयी है. यह याचिका पटना हाइकोर्ट के अधिवक्ता मणिभूषण प्रताप सेंगर ने दायर किया है. याचिका में बताया गया है कि यह घोटाला एक हजार करोड़ रुपये से ज्यादा का है. साथ […]

पटना : बिहार में हुए बहुचर्चित सृजन घोटाले की सीबीआई जांच के लिए बुधवार को पटना हाइकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गयी है. यह याचिका पटना हाइकोर्ट के अधिवक्ता मणिभूषण प्रताप सेंगर ने दायर किया है. याचिका में बताया गया है कि यह घोटाला एक हजार करोड़ रुपये से ज्यादा का है. साथ ही इसमें सूबे के बड़े-बड़े राजनीतिज्ञों सहित आला अधिकारियों की संलिप्तता की आशंका है. ऐसे में एसआईटी द्वारा निष्पक्ष जांच में शंका प्रतीत होती है. अदालत से मांग की गयी है कि इस कांड में पारदर्शिता बनी रहे और जांच निष्पक्षता के साथ हो, इसके लिए जांच सीबीआई से करायी जाये. याचिका के माध्यम से यह भी मांग की गयी है कि सूबे में संचालित वैसे स्वयंसेवी संगठन, जो वित्तीय लेन-देन का कार्य करते हैं, उनका वर्ष 2015 से 2017 तक के कार्यकलापों तथा उनकी संपत्ति की जांच भी सीबीआई से करायी जाये. साथ ही ऐसी व्यवस्था की जाये, जिससे बिहार में कार्यरत सभी एनजीओ पर सरकार का पूर्णत: नियंत्रण हो सके.

चारा घोटाले से बड़ा घोटाला होने की संभावना

बिहार में सामने आया सृजन घोटाला धीरे-धीरे एक बड़ा घोटाला होते जा रहा है. इसमें अब तक 700 करोड़ अवैध निकासी की बात सामने आ रही है. कहा जा रहा है कि यह आंकड़ा एक हजार करोड़ के पार जायेगा. इस तरह यह घोटाला बिहार में चर्चित चारा घोटाले से बड़ा घोटाला बताया जा रहा है.

अब तक सात लोग हुए गिरफ्तार

पिछले तीन दिनों से आर्थिक अनुसंधान इकाई के 30 अधिकारी मामले की जांच पड़ताल कर रहे हैं और इस मामले में अब तक लगभग सात लोगों को गिरफ्तार किया गया है. इनमें सेवानिवृत्त अनुमंडल अंकेक्षक सतीश चंद्र झा, सृजन महिला विकास सहयोग समिति की प्रबंधक सरिता झा, भागलपुर समाहरणालय का लिपिक प्रेम कुमार, डीआरडीए के नाजिर राकेश यादव, जिला भू-अर्जन कार्यालय का नाजिर राकेश झा, इंडियन बैंक का क्लर्क अजय पांडेय और प्रिंटिंग प्रेस का मालिक वंशीधर झा शामिल है.

क्या है घोटाला

बिहार के भागलपुर जिले में एक एनजीओ सृजन जिला अधिकारी के फर्जी हस्ताक्षर के जरिये सरकारी खजाने से करोड़ों रुपये की फर्जी निकासी की गयी थी. मामला प्रकाश में आते ही अधिकारियों ने जांच पड़ताल करना शुरू कर दिया, तो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने एक टीम तैयार करते हुए जल्द इस मामले का पर्दाफाश करने तथा आरोपितों पर कार्रवाई करने की बात की. जब मामले की जांच शुरू हुई, तो अधिकारियों को पता चला कि यह दो-चार करोड़ का नहीं, बल्कि सैकड़ों करोड़ों का मामला है. जिले के तीन सरकारी बैंक खातों में सरकार फंड भेजती थी, जिसे बैंक कर्मचारी की मिलीभगत से कुछ प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा महिला सहयोग समिति लिमिटेड के खातों में ट्रांसफर कर दिया जाता था.

पिछले 16 वर्षों से चल रहा था सृजन में घोटाले का खेल!

स्वयंसेवी संस्था सृजन की संचालिका मनोरमा देवी एक विधवा महिला थी. इनके पति अवधेश कुमार रांची में वैज्ञानिक थे. उनकी मौत 1991 मे हो गयी थी, जो रांची में लाह अनुसंधान संस्थान में वरीय वैज्ञानिक के रूप में नौकरी करते थे. इसके बाद मनोरमा देवी अपने बच्चे को लेकर भागलपुर चली आयी. वहीं, एक किराये के मकान में रह कर अपना और अपने परिवार का पालन-पोषण करती थी. गरीबी से मजबूर विधवा पहले ठेले पर कपड़ा बेचने का काम शुरू किया, फिर सिलाई और धीरे-धीरे यह काम इतना बढ़ने लगा कि उनमें और भी कई महिलाएं शामिल हो गयी. इसके बाद 1993-94 में मनोरमा देवी ने सृजन नाम की स्वयंसेवी संस्था की स्थापना की. मनोरमा देवी की पहचान इतना मजबूत हो गयी थी कि तमाम बड़े अधिकारी से लेकर राजनेता तक उनके बुलावे पर पहुंच जाते थे. मनोरमा देवी अपने समूह में लगभग 600 महिलाओं का स्वयं सहायता समूह बनाकर उन्हें रोजगार से जोड़ा था.

मनोरमा देवी ने सहयोग समिति चलाने के लिए सरकार के सहयोह से भागलपुर में एक मकान 35 साल तक के लिए लीज पर लिया. 35 साल के लिए मकान लीज पर लेने के बाद सृजन महिला विकास समिति के अकाउंट में सरकार के खजाने से महिलाओं की सहायता के लिए रुपये आने शुरू हो गये. इसके बाद सरकारी अधिकारियों और बैंक कर्मचारियों की मिलीभगत से पैसे की हेराफेरी करना शुरू हो गया. लगभग 500 करोड़ से ज्यादा पैसा समिति के अकाउंट में डाल दिया गया और इसके ब्याज से अधिकारी मालामाल होके चले गये. देखते-देखते यह कार्यक्रम कई सालों तक चला और सृजन महिला विकास समिति के छह अकाउंट में लगभग करोड़ों में रुपये डालने शुरू हो गये. मनोरमा देवी की हेराफेरी के खेल में कई अधिकारियों के साथ-साथ सफेदपोश लोग भी शामिल थे.

अपनी जिंदगी की 75 साल गुजारने के बाद उसकी मौत हो गयी. मनोरमा देवी की मौत के बाद उसके बेटे अमित और उसकी पत्नी प्रिया महिला समिति का कामकाज देखना शुरू कर दिया. जब इस मामले का पर्दाफाश हुआ, दोनों कहीं फरार हो गये. फिलहाल पुलिस उनकी तलाश कर रही है. 1995 से लेकर 2016 तक चले इस घोटाले में हजार करोड़ रुपये की हेराफेरी की बात बतायी जा रही है. विभाग के अधिकारियों द्वारा मामले की जांच पड़ताल की जा रही है और जल्द ही इस मामले में सभी को बेनकाब करने की बात बतायी जा रही है.

Prabhat Khabar Digital Desk
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