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डोरीगंज में पांच किमी तक रेड कार्पेट, हर रोज 50 लाख का कारोबार
डोरीगंज से लौट कर कृष्ण पटना से हाजीपुर होकर करीब 60 किमी दूर सारण जिले के दिघवारा में एनएच-19 के किनारे करीब पांच किमी तक लाल बालू की परत बिछी है जो रेड कार्पेट जैसी दिखती है. वहां से करीब 500 मीटर की दूरी पर सोन नदी बहती है. डोरीगंज के इस इलाके में कई […]
डोरीगंज से लौट कर कृष्ण
पटना से हाजीपुर होकर करीब 60 किमी दूर सारण जिले के दिघवारा में एनएच-19 के किनारे करीब पांच किमी तक लाल बालू की परत बिछी है जो रेड कार्पेट जैसी दिखती है. वहां से करीब 500 मीटर की दूरी पर सोन नदी बहती है.
डोरीगंज के इस इलाके में कई बालू घाट हैं जिनकी बंदोबस्ती हो चुकी है. उससे निकला बालू रेड कार्पेट पर टीले की शक्ल में जमा किया जाता है. वहां से छपरा की तरफ करीब 19 किमी बाद डोरीगंज में बालू ढोने वाले ट्रकों की लंबी लाइन दिखती है, लेकिन कहीं कोई जांच अधिकारी या चेकपोस्ट नहीं दिखता.
कुल मिलाकर इस पूरे इलाके में बालू का अवैध खनन धड़ल्ले से हो रहा है. प्रतिदिन करीब 36 लाख से 50 लाख रुपये तक का कारोबार हो रहा है. डोरीगंज इलाके में बालू ढोने वाले ट्रकों की लाइनों से एनएच-19 पर अक्सर जाम की स्थिति रहती है. वहां बरसात के मौसम में भी सड़क पर धूल का गुबार उड़ता नजर आता है. डोरीगंज बाजार पार करने पर सड़क किनारे ही थाना है, लेकिन पुलिस वाले कहीं चेकपोस्ट लगाये या बालू लदी गाड़ियों में ओवरलोडिंग की जांच करते नहीं दिखते.
गंगा पार कर नाव से आता है बालू, तीन सौ से अधिक नावें तैनात
डोरीगंज से करीब एक किमी की दूरी पर गंगा नदी है. यहां आरा-छपरा पुल हाल ही में शुरू हुआ है. यहां गंगा किनारे कई घाट हैं. इनमें मेला घाट, डोरीगंज घाट, रहरिया घाट, दरियावगंज घाट, खवासपुर घाट, दफ्तरपुर घाट, तिवारी घाट, महुआ घाट पर मुख्य रूप से बालू ढुलायी का कारोबार धड़ल्ले से होता है. यह सभी लाल बालू रायपुर विधगावां पंचायत में पड़ने वाले सोन नदी के इलाके से ढोकर लायी जाती है. इस काम में करीब तीन सौ से अधिक नावें लगी हैं.
प्रतिदिन एक हजार ट्रक जाते हैं राज्य के कई हिस्सों में: विकास कुमार ने बताया कि डोरीगंज की आबादी करीब 20 हजार है. यहां की इकोनॉमी बालू के कारोबार से चलती है. प्रतिदिन करीब एक हजार ट्रक बालू प्रदेश के कई हिस्सों में भेजे जाते हैं. ट्रकों की आवाजाही से एनएच किनारे होटल सहित हर तरह की दुकानें खुल गयी हैं. इन दुकानों में अच्छी-खासी बिक्री होती है.
नावों को मिलता है बालू ढुलाई का किराया: स्थानीय मल्लाह सुबोध (परिवर्तित नाम) ने बताया कि बड़ी नाव में करीब पांच से छह ट्रक बालू आता है. इसमें करीब 25 नाविकों को रोजगार मिलता है. बालू ढुलाई के लिए ऐसी नावों को करीब 2200 रुपये मिलते हैं. वहीं छोटी नाव में करीब ढाई से तीन ट्रक बालू की ढुलाई होती है. इसके लिए इसे करीब 1200 रुपये किराया मिलता है. इसमें करीब 12 नाविकों को रोजगार मिलता है.
बालू की खनन में शामिल राकेश (परिवर्तित नाम) ने कहा कि नदी से बालू निकालते वक्त या नाव में बालू भरते वक्त घाट से किसी तरह की रसीद नहीं काटी जाती. सबकुछ मौखिक होता है. प्रशासन का कोई अधिकारी भी चेकिंग के लिए नहीं रहते. इससे वैध तौर पर इस बात का कोई लेखा-जोखा नहीं रखा जाता है कि कितना बालू निकाला गया. कितना बेचा गया. ऐसा जानबूझकर किया जाता है जिससे कि घाट की बंदोबस्ती लेने वाली कंपनी को फायदा हो सके. इससे स्पष्ट है कि बंदोबस्ती की नियत मात्रा से ज्यादा बालू का खनन हो रहा है. अवैध खनन से निकाले गये बालू प्रतिदिन करीब 250 नावों में भरकर सोन नदी के इलाके से डोरीगंज किनारे गंगा घाटों पर आते हैं.वहां से ट्रकों से ढुलायी होती है.
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