बब्लू कुमार/नवादा नगर/बिहार: नवादा जिले का वह पुराना रेलवे स्टेशन, जिसने 145 वर्षों तक यात्रियों के आने-जाने, खुशियों–गमों और अनगिनत आवाजाही की कहानियां अपने आंगन में समेटे रखीं, अब सिर्फ यादों की पोटली बनकर रह गया है.
आकर्षण का केंद्र था स्टेशन
साल 1879 में अंग्रेजों के बनाए गए यह स्टेशन अपनी खूबसूरत डिजाइन, मेहराबदार खिड़कियों और बारीक नक्काशी से आकर्षण का केंद्र बन गया था. समय भले आगे बढ़ता रहा, तकनीक बदलती रही, ट्रेनें बदलीं, प्लेटफॉर्म बदले, लेकिन इस स्टेशन की खासियत और आकर्षण हमेशा वैसा ही बना रहा. पीढ़ियां बदल गयीं, मगर स्टेशन का सौंदर्य और अपनापन लोगों के दिल में उसी तरह धड़कता रहा.
धाराशायी हुई इमारत
अक्टूबर-नवंबर 2025 में नए और आधुनिक रेलवे स्टेशन के बनने के बाद पुराने स्टेशन को तोड़ने का निर्णय लिया गया. देखते ही देखते डेढ़ सदी का इतिहास बुलडोजर की आवाज में दब सा गया. पुराने प्लेटफॉर्म की दीवारें जब गिरीं, तो सिर्फ ईंटें नहीं टूटीं, नवादा की भावनाएं भी बिखरती नजर आईं. शहरवासियों का कहना है कि वह स्टेशन सिर्फ एक ढांचा नहीं था, बल्कि नवादा की पहचान, उसकी विरासत और जुड़ाव की डोर था.
पुराने स्टेशन से था भावनात्मक लगाव
80 वर्षीय बुजुर्ग सियाराम सिंह कहते हैं कि पुराने स्टेशन की जो बात थी, वह नये स्टेशन में नहीं है. पुरानी इमारत में यादों की खुशबू थी, अपनापन था, पुराने पंखों की आवाज में भी सुकून था. वहीं, दूसरी ओर नयी स्टेशन आधुनिक जरूर है, पर लगभग एक वर्ष बीत जाने के बाद भी कई मूलभूत सुविधाएं पूरी तरह दुरुस्त नहीं हो पायी हैं. बैठने की पर्याप्त व्यवस्था, स्वच्छता, टिकट काउंटर की सुगमता और यात्रियों के आराम से जुड़ी कई व्यवस्थाएं अब भी संतोषजनक नहीं हैं.
शहर के बुजुर्ग बताते हैं कि कभी यह स्टेशन सुबह-शाम लोगों की धड़कन बना रहता था. यात्री ट्रेन के साथ-साथ यहां की छत, बरामदे और दीवारों से भी रिश्ता जोड़ लेते थे. उस दौर में यह स्टेशन सिर्फ सफर की शुरुआत नहीं, बल्कि भावनाओं का पड़ाव हुआ करता था.
प्रकाश है पर खालीपन!
आज नई इमारत खड़ी है, चमकती लाइटें हैं, बड़े बोर्ड हैं, लेकिन लोगों के मन में एक खालीपन है, जैसे इतिहास अचानक उनसे छिन गया हो. नवादा के लिए यह सिर्फ संरचना परिवर्तन नहीं, बल्कि भावनात्मक बदलाव है. उम्मीद यही है कि नया स्टेशन न सिर्फ आधुनिक होगी, बल्कि जनता की उम्मीदों पर भी खरा उतरेगा और प्रशासन पुरानी धरोहर खो चुके लोगों के दिलों पर मरहम भी लगायेगा. फिलहाल पुराने स्टेशन की तस्वीरें, यादें और किस्से ही उसके अस्तित्व का प्रमाण बची हुई कहानी बनकर रह गये हैं.
क्या कहते हैं रेलयात्री
कवि ओंकार निराला ने कहा कि पुराना स्टेशन टूट जाने से हमें बहुत दुख है. बचपन की अनगिनत यादें इसी छत, इसी बरामदे से जुड़ी थीं. नयी इमारत बड़ी है, पर आत्मा नहीं. इसलिए हर सफर शुरू होने से पहले खालीपन लगता है.
शिक्षक सुरेश सिंह बी कहा कि हम सुविधा के खिलाफ नहीं, पर विरासत बची रहती तो बेहतर होता. बूढ़े स्टेशन ने शहर को पहचान दी थी, यात्रियों को छांव दी थी. नयी इमारत में रोशनी है, शौचालय, साफ-सफाई और बैठने की सुविधा समेत अब भी अधूरी है.
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