वारिसलीगंज : मकर संक्रांति में कुछ ही दिन शेष बचा है. बाजार में तिलकुट के साथ-साथ गुड़ व चूड़े की दुकानें सज गयी है. दुकानों से लेकर फुटपाथ तक हर जगह ऐसी सामग्री दिख रही है. मकर संक्रांति को लेकर खरीदी जाने वाली तिलकुट, मस्का, चूड़ा व गुड़ में स्थानीयता का असर दिख रहा है. बाहरी चूड़ा की अपेक्षा स्थानीय चूड़े की मांग ज्यादा है. बाजार में कई क्वालिटी के तिलकुट मौजूद है. इसमें चीनी का तिलकुट, गुड़ का तिलकुट, मावा का तिलकुट व तिलकदम धड़ल्ले से बिक रहे हैं. परंतु सबसे ज्यादा मांग मावा तिलकुट व तिलकदम का है.
धार्मिक व पौराणिक महत्व :पंडित मारकंडे मिश्र बताते हैं कि मकर संक्रांति पर चूड़ा, गुड़, तिलकुट व मस्का का सेवन करने का धार्मिक व पौराणिक महत्व है. तिल ठंड को दूर भगाने वाला होता है.
मौसम में बदलाव के बाद तिल का सेवन जरूरी माना जाता है. यह स्वास्थ्य वर्द्धक भी होता है. पौराणिक ग्रंथों में भी इसका वर्णन है कि तिल देवताओं का प्रिय वस्तु है. विष्णु पूजन में इसका उपयोग होता हैं. ऐसी मान्यता है कि नयी फसल होने के बाद किसान सुपाच्य भोजन चूड़ा-दही के साथ तिलकुट का सेवन कर जश्न मनाते हैं.
दही-चूड़ा के साथ खिचड़ी: मकर संक्रांति के दिन लोग सुबह में दही-चूड़ा गुड़, तिलकुट, मस्का व शाम में खिचड़ी बनाकर खाते है. बताया जाता है कि कुर्थी का दाल पेट के अंदर के विकारों को दूर करता है.
वहीं पथरी रोग वायु विकार इससे पूरी तरह नष्ट हो जाता है. पहले मकर संक्रांति व उसके पहले से ही जमकर पतंगबाजी होती थी. यह प्रथा अब न के बराबर देखने को मिलती है. अब इक्का-दूक्का लोग ही पतंगबाजी का मजा लेते है. तिलकुट वारिसलीगंज की पहचान है. लोग अपने सगे-संबंधियों के यहां प्रेम से चूड़ा-तिलकुट भेजते है. खास कर बाहर रहने वाले रिश्तेदारों व जान-पहचान वालों को सौगात के रूप में भेजा जाता है.