माता सीता की निर्वासित स्थली उपेक्षित सीतामढ़ी को विकसित करने का नहीं हो रहा प्रयासअगहन पूर्णिमा से शुरू होता 15 दिवसीय मेलासीतामढ़ी पर्यटन स्थल को बढ़ावा देने की है जरूरतफोटो-7प्रतिनिधि, नवादा (नगर)माता सीता की निर्वासित स्थली के रूप में प्रसिद्ध जिले का सीतामढ़ी उपेक्षा का दंश झेल रहा है. प्राचीन काल से सीतामढ़ी में मान्यता के साथ पूजा अर्चना होते आ रही है. ग्रेनाइट के बड़े पत्थर से निर्मित गुफा मंदिर यहां आकर्षण का केंद्र है. यह स्थान सरकारी उदासीनता के कारण पर्यटन स्थलों में अपना स्थान नहीं बना पाया है. वर्ष में अगहन (अग्रहायण) माह की पूर्णिमा को मेला अवश्य लगता है, लेकिन जितनी प्रसिद्धि इस पौराणिक स्थल को मिलनी चाहिए उतना महत्व अभी तक नहीं मिल पाया है. किवदंतियों के अनुसार, भगवान श्रीराम ने जनता की मांग पर माता सीता को जब वन में छोड़ दिये थे, उस समय माता सीता की शरण स्थली के रूप में सीतामढ़ी का क्षेत्र उपयोग में लाया गया था. ऋषि वाल्मीकि के आश्रम के रूप में गुफा मंदिर के अवशेष आज भी दिखायी देते हैं. जिले के प्रसिद्ध पर्यटन स्थलों में से एक सीतामढ़ी का इतिहास काफी पुराना है. कई साहित्यिक दस्तावेजों में भी इसका उल्लेख प्रमुखता से मिलता है. ऐतिहासिक साक्ष्य के रूप में कई ऐसे ग्रंथ मौजूद है, जो सीतामढ़ी की पौराणिकता की पुष्टि करते हैं. राजगीर व सोनपुर मेला की तरह जिले के सीतामढ़ी में भी सांस्कृतिक चेतना से जुड़े सीतामढ़ी महोत्सव का आयोजन करने की मांग अब जोर पकड़ रही है. जिला प्रशासन की ओर से वैसे तो प्रतिवर्ष मेले के नाम पर टेंडर निकाला जाता है. इसमें प्रशासन को चार से पांच लाख रुपये की आमदनी भी होती है. लेकिन, स्थानीय क्षेत्र के विकास के लिए इसका कोई लाभ होता नहीं दिखता है. ठेका के नाम पर चंद दबंग व असामाजिक तत्व के लोग मेला में लगने वाले दुकानदारों से मनमाना वसूली करने का काम करते हैं. यही वजह है कि जिले का यह प्रसिद्ध स्थल अन्य मेलों की तरह अपनी पहचान अब तक नहीं बना पाया है. कई साहित्यिक दस्तावेज मौजूदमेसकौर प्रखंड स्थित सीतामढ़ी पर्यटन स्थल की पौराणिकता को प्रमाणित करने के लिए कई ऐतिहासिक पुस्तकें उपलब्ध है. 1811 में छपी जर्नल ऑफ फ्रांसिस हैम्लिटन बुकानन में सीतामढ़ी का उल्लेख बड़े ही सुंदर ढंग से आया है. जीए ग्रियेशन के लिखे नोट्स ऑफ गया डिस्ट्रिक्स, एक्यूरियम रिमेंस इन बिहार में भी सीतामढ़ी पर्यटन स्थल का जिक्र आता है. इसमें तत्कालीन मंदिर के स्वरूप व स्थानीय लोगों का इस स्थल से लगाव का अध्ययन करने का मौका मिलता है. अंग्रेजों के समय में तैयार डिस्ट्रिक्स गजेटियर गया में भी काफी कुछ यहां के बारे में जानने को मिलता है. प्रसिद्ध साहित्यकार अनिल विभाकर जी का कानपुर से प्रकाशित रिसर्च अभ्यंतर में छपा आलेख भी सीतामढ़ी में माता सीता के निर्वासन से संबंधित साक्ष्यों व अन्य प्रमाणों को विस्तार से दर्शाया गया है. जिले के पहले डीएम नरेंद्र पाल द्वारा लिखी पुस्तक नवादा री डिस्कवर्ड में भी जिले के सबसे प्रमुख पर्यटन स्थल में सीतामढ़ी का विस्तार से उल्लेख हुआ है. बिहार धार्मिक न्यास बोर्ड के अध्यक्ष आचार्य किशोर कुणाल ने भी सीतामढ़ी का कई बार मुआइना किया है. इसे भगवान श्रीराम के कालखंड से जोड़ा है. उनके द्वारा पटना के महावीर मंदिर से प्रकाशित धर्मायण पुस्तक में चिह्नित श्रीरामपरिपथ में नवादा जिले के सीतामढ़ी को शामिल किया गया है. उक्त सभी साहित्यिक साक्ष्य सीतामढ़ी पौराणिकता व ऐतिहासिक महत्व को दरसाता है. हालांकि, देश में चार ऐसे स्थल हैं, जिन्हें माता सीता के निर्वासन स्थली के रूप में माना जाता है. लेकिन, इन सभी में मगध के नवादा जिला स्थित सीतामढ़ी का स्थल सबसे प्रमाणिक दिखता है. पंजाब के राम तीर्थ, मध्यप्रदेश के करीला व कानपुर के बिठुर में भी सीता निर्वासित स्थली की मान्यता है. लेकिन, वहां इस प्रकार के साहित्यिक साक्ष्य नहीं है. पूर्णिमा से लगता है मेलानवादा-गया पथ पर मंझवे से लगभग आठ किलोमीटर दक्षिण में स्थित सीतामढ़ी में प्रतिवर्ष अगहन पूर्णिमा को मेला लगता है. वर्षों से लोग यहां श्रद्धा के साथ पूजा अर्चना करने आते हैं. सीतामढ़ी के पास ही लखौरा गांव है. साहित्यिक रूप से इसे लखोया का अपभ्रंस माना जा रहा है. ऋषि वाल्मीकि के लिखे रामायण के उत्तर कांड में लव खोया का भौगोलिक प्रमाणिक साक्ष्य इसे माना जा रहा है. जिला प्रशासन मेला संचालन के नाम पर प्रतिवर्ष ठेका करती है. लेकिन, इसका कोई विशेष लाभ स्थानीय स्थल विकसित करने में नहीं हो रहा है. सरकार को चार से पांच लाख रुपये की आमदनी ठेका के माध्यम से होता है. पिछले वर्ष ही लगभग साढ़े चार लाख रुपये में यहां का ठेका हुआ था. कभी काष्ठ निर्मित सामग्रियों बेंच, टेबुल, चौकी, कुरसी, हल आदि का बड़ा मेला यहां लगता था. परंतु, प्रशासनिक उपेक्षा के कारण यह मेला में धीरे-धीरे अब कमजोर पड़ता जा रहा है. सीतामढ़ी को राष्ट्रीय व राज्य स्तर पर प्रभावी रूप से स्थापित करने के लिए सामूहिक कार्य करने की जरूरत है. सीतामढ़ी महोत्सव शुरू करने की हो रही मांगराजगीर व सोनपुर मेला की तरह सीतामढ़ी में भी प्रशासन द्वारा बड़े पैमाने पर पहल करते हुए सीतामढ़ी महोत्सव की शुरुआत करने की मांग जोर पकड़ रही है. सांस्कृतिक चेतना से जुड़े कार्यक्रम तीन से चार दिनों का कराया जाये. इसमें किसी बड़े कलाकार को लाने की पहल करने चाहिए, ताकि मेला का स्वरूप बड़ा हो सके. कला प्रेमी उमाकांत बरूआ, राष्ट्रपति पुरस्कार विजेता व प्रोजेक्ट कन्या इंटर विद्यालय के प्राचार्य डॉ मिथिलेश कुमार सिन्हा आदि ने डीएम मनोज कुमार से मिल कर सीतामढ़ी महोत्सव को बड़ा रूप देने का आग्रह किया है. जिला प्रशासन ने भी मेले को बड़े महोत्सव में बदलने का आश्वासन दिया है. देखना यह होगा कि यह कितना सफल हो पाता है.कई पंथों के मंदिर स्थापितसीतामढ़ी के मुख्य मंदिर के अलावा कई जाति व पंथों के मंदिर भी यहां स्थापित हो रहे हैं. रजवार समाज, चंद्रवंशी समाज, धानू समाज, रविदास समाज आदि से जुड़े उनके महापुरुषों के मंदिर भी काफी संख्या में यहां स्थापित किये गये हैं. प्रशासनिक उदासीनता के बावजूद स्थानीय लोगों के द्वारा यहां छोटे-मोटे निर्माण कराये जाते हैं. दो वर्षों से टूटा है मुख्य द्वारसीतामढ़ी में प्रवेश के लिए नवादा-गया रोड पर मंझवे से जानेवाले सड़क के आगे सीतामढ़ी प्रवेश द्वार बनवाया गया था. तत्कालीन डीएम आरबी महतो ने इसे बनवाया था. लेकिन, पिछले दो वर्ष पहले अज्ञात वाहन से धक्का लगने के कारण यह द्वार टूट गया है. आज तक इसका निर्माण नहीं हो पाया है. जो यहां के प्रशासिनक उदासिनता को दर्शाता है.
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माता सीता की नर्विासित स्थली उपेक्षित
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