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नक्सलियाें की तलाश में चला ऑपरेशन, हाथ रहे खाली

सिरदला : बुधवार को सिरदला प्रखंड के नक्सलग्रस्त गांवों से जंगल में नक्सलियों की टोह में कॉम्बिंग ऑपरेशन चलाया गया. झारखंड के सीमा पर स्थित क्षेत्र व गया जिले के फतेहपुर थाने से सटे गांव जमुनिया, मोहनरिया, रामरायचक, खटांगी, मढ़ी, पोखरियाकॉल, कलोंदा, जमुनिया, भीतिया, बुढ़ियासाख, ढेलहवा में नक्सलियों के खोज में सर्च ऑपरेशन चलाया गया. […]

सिरदला : बुधवार को सिरदला प्रखंड के नक्सलग्रस्त गांवों से जंगल में नक्सलियों की टोह में कॉम्बिंग ऑपरेशन चलाया गया. झारखंड के सीमा पर स्थित क्षेत्र व गया जिले के फतेहपुर थाने से सटे गांव जमुनिया, मोहनरिया, रामरायचक, खटांगी, मढ़ी, पोखरियाकॉल, कलोंदा, जमुनिया, भीतिया, बुढ़ियासाख, ढेलहवा में नक्सलियों के खोज में सर्च ऑपरेशन चलाया गया. एसएसबी के इंस्पेक्टर लोकेश कुमार व सिरदला थानाध्यक्ष राजकुमार के नेतृत्व में कॉन्बिंग ऑपरेशन चलाया गया.

नक्सलियों का कहीं कोई सुराग नहीं मिला. लोकेश कुमार ने बताया कि सिरदला के जंगलों में नक्सलियों का मूवमेंट होने की सूचना मिली थी. इसको लेकर बुधवार की देर रात नक्सलियों के विरुद्ध सर्च अभियान चलाया गया. गौरतलब है कf कुछ दिनों पूर्व ही नक्सलियों का जत्था सिरदला थानाक्षेत्र के मढ़ी, लवनी, भीतिया, बहुआरा, केवाल व कोसुम्भातरी में होने की सूचना के बाद अभियान एएसपी कुमार आलोक के नेतृत्व में कोबरा की टीम सहित एसएसबी, एसटीएफ व स्वाट के सैकड़ों जवानों को लेकर विगत दो सप्ताह में करीब पांच से छह सर्च ऑपरेशन चलाया गया है. सूत्रों की मानें, तो सिरदला के जंगलों में करीब 20 की संख्या में हथियार बंद नक्सलियों का जत्था देखा गया है. लेकिन, जंगलों में घूमने वाला जत्था किस संगठन का है यह बताना मुश्किल है.

सूत्रों के अनुसार नक्सलियों का दो संगठन इस क्षेत्र में सक्रिय है. एक जत्था माओवादियों का तो दूसरा जत्था टीपीसी का बताया जाता है. उनके अनुसार हथियार बंद दस्ता सिरदला के जंगल के सटे गांव में अक्सर आते है. नक्सली संगठन को मजबूत बनाने के लिए ग्रामीणों को संगठन में शामिल करने का प्रयास करते है. गौरतलब है की 14 मई 2008 को पुलिस और माओवादियों की मुठभेड़ में संगठन को तो काफी नुकसान हुआ था.जिस के बाद कुछ वर्षों के लिए इस क्षेत्र से माओवादी लगभग पलायन ही कर गये थे.

अपना खोया हुआ जनाधार पुनः पाने के लिए माओवादी संगठन इन क्षेत्रों में कुछ वर्षों से सक्रिय हुए ही थे की आठ मार्च 2017 को गया जिला के कोबरा बटालियन और नक्सलियों के बीच हुई मुठभेड़ में माओवादी संगठन ने अपने चार तेज तरार फौजदार को खो दिया.माओवादियों के पकड़ ढीली होते ही दूसरे नक्सली संगठन भी इन क्षेत्रों में हाल के दिनों में काफी सक्रिय हुआ है. इसमें टीपीसी का नाम प्रमुखता से लिया जाता रहा है.

सूत्रों की मानें, तो जब जब माओवादियों की पकड़ इन क्षेत्रों में कमजोर हुई है तब तब टीपीसी अपना कुनबा बढ़ाने में सफल हुआ है.माओवादी संगठन वालों का हमेशा आरोप रहा है की टीपीसी पुलिस संरक्षित नक्सली संगठन है. पर, दोनों ही संगठन समाज के लिए नुकसानदेह नहीं हैं, तो कम से कम फायदेमंद भी नहीं हो सकते है. दोनों संगठन व पुलिस की आपसी रंजिश में नुकसान के अलावा कुछ भी नहीं है. दोनों ही सूरत में किसी मां के आंचल से बेटा,किसी का भाई, किसी बच्चे के सिर से पिता का साया या फिर किसी महिला का मांग उजड़ता है.
सबसे विकट परिस्थिति जंगल के किनारे बसे हुए गांवों के ग्रामीणों के समक्ष होती है.वैसे ही एक ग्रामीण ने बताया कि साहब कोई किसी को वेलकम नहीं करता है. फिर भी जान का भय है जो वेलकम करना पड़ता है.फिर दूसरा आता है, तो उसके भी खिदमत में हाजिर होना पड़ता है.और अंत में तीसरा पुलिस पहुंचती है, तो वो भी पूछताछ के नाम पर फटा हुआ ढोल की तरह बजा के चली जाती है.

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