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सैलानियों को लुभाता है नालंदा का पर्यटन स्थल

नालंदा : प्रदेश में सबसे अधिक विविधता वाला पर्यटन स्थल नालंदा में है. यहां दुनिया का पहला आवासीय विश्वविद्यालय नालंदा महाविहार का भग्नावशेष भी है तो चीन की दीवार से भी पुरानी साइक्लोपिनियन वाल. विश्व की सबसे पुरानी पहाड़ी राजगीर में है. प्राकृतिक सौंदर्य से भरापूरा जंगल, घाटी और वादियां भी हैं. जैन धर्म के […]

नालंदा : प्रदेश में सबसे अधिक विविधता वाला पर्यटन स्थल नालंदा में है. यहां दुनिया का पहला आवासीय विश्वविद्यालय नालंदा महाविहार का भग्नावशेष भी है तो चीन की दीवार से भी पुरानी साइक्लोपिनियन वाल. विश्व की सबसे पुरानी पहाड़ी राजगीर में है. प्राकृतिक सौंदर्य से भरापूरा जंगल, घाटी और वादियां भी हैं.

जैन धर्म के 20वें तीर्थंकर मुनीसुव्रत नाथ की जन्मभूमि के साथ जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर महावीर स्वामी की निर्वाण भूमि पावापुरी भी है. नालंदा भगवान बुद्ध के प्रिय शिष्य सारिपुत्र और महामोग्लान की जन्मभूमि तो है ही, कुंडलपुर गौतम गणधरों की जन्मभूमि के लिए भी जैन जगत में प्रसिद्ध है.
अब तो भगवान महावीर की जन्मभूमि भी कुंडलपुर ही बताई जा रही है. राजगीर, नालंदा, पावापुरी, बड़गांव, कुंडलपुर, घोसरावां जैसे ऐतिहासिक महत्व वाले स्थल भी नालंदा में ही हैं. देश का पहला आकाशी रज्जू मार्ग के अलावे राजगीर के रत्नागिरी हिल की चोटी पर बना विश्व शांति स्तूप देशी-विदेशी सैलानियों के आकर्षण का केंद्र है. गर्म जल के कुंड, झरने, पांडु, पोखर, पार्क राजगीर के पर्यटकीय स्थलों में चार चांद लगा रहे हैं.
इको टूरिज्म सेंटर घोड़ाकटोरा दुनिया के सैलानियों को न केवल आकर्षित कर रहा है, बल्कि हजारों लोगों को रोजगार का अवसर भी उपलब्ध करा रहा है. निर्माणाधीन जू सफारी और गुरुद्वारा भी आने वाले दिनों में सैलानियों के आकर्षण का केंद्र बनेगा. इससे इंकार नहीं किया जा सकता है. राजगीर की पंच पहाड़ियां ऐतिहासिक घटनाओं की साक्षी हैं.
विपुलगिरी के शिखर से भगवान महावीर ने पहला उपदेश दिया था, वहीं वैभारगिरी के सप्तपर्णी गुफा में बौद्धों की पहली संगीति हुई थी. इसी पहाड़ी पर मगध सम्राट जरासंध द्वारा स्थापित भगवान सिद्धनाथ मंदिर का भग्नावशेष है. गृद्धकूट पहाड़ी, जहां भगवान बुद्ध उपदेश देते थे. वह बौद्ध धर्मावलंबियों का पावन तीर्थस्थल बन गया है. वेणुवन सैलानियों और बौद्ध धर्मावलंबियों को आकर्षित करने में किसी से पीछे नहीं है.
देश के 12 सूर्यपीठों में एक बड़गांव का अपना धार्मिक महत्व है. यहां साल में दो बार राजकीय छठ मेले का आयोजन किया जाता है, जिसमें कई राज्यों की छठव्रती लाखों की संख्या में आकर छठ पूजा और अर्घ दान करती हैं. तेल्हाड़ा का प्राचीन तिलाधक विश्वविद्यालय हो या राजगीर का जरासंध का अखाड़ा, सोनभंडार हो या मनियार मठ, रथचक्र का निशान हो या जीवक आम्रवन आदि दुर्लभ विरासत में शामिल हैं.
जरादेवी मंदिर की अलग ख्याति है. जरादेवी के बारे में कहा जाता है कि मगध सम्राट जरासंध का जन्म मांस के दो लोथड़े के रूप में हुआ था. उन दोनों लोथोड़े को जरादेवी के द्वारा जोड़ा गया था. इसीलिए उनका नाम जरासंध पड़ा था. बाद में वही जरासंध मगध साम्राज्य का प्रतापी राजा बना. राजगीर के जंगल में हजारों तरह के दुर्लभ और बहुमूल्य औषधीय पौधे व जड़ी बूटियां मौजूद हैं.
Prabhat Khabar Digital Desk
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