बिहारशरीफ : जिले के मछलीप्रेमियों को अब आंध्रा व अन्य प्रदेशों की मछली खाने से जल्द ही निजात मिलेगी. लोकल मछली उत्पादन में वृद्धि के कारण अब यहां के लोगों की थाली में ताजी मछली खाने को मिल सकेगी.
जिले में प्रतिदिन दो टन छोटी व बड़ी मछलियों की बिक्री की जाती है. रोहू, कतला समेत अन्य मछलियों की बिक्री की जा रही है. आंध्रा से 25 दिनों पर जिलों के बाजारों में बिक्री के लिए 13 टन मछलियां आती हैं. जिले में 27 सौ 40 हेक्टेयर जल क्षेत्र में मछली का पालन किया जाता है. सामान्य उत्पादन 7.46 टन प्रति हेक्टेयर होता है.
मछली का व्यवसाय कर बन रहे स्वावलंबी
मछली का उत्पादन कर इससे जुड़े व्यवसायी स्वावलंबी बन रहे हैं. लोकल मछली की जिले में अच्छी-खासी डिमांड रहने से मत्स्यपालकों को अच्छी आमदनी हो रही है. इसकी मुख्य वजह यह है कि एक तो लोकल मछली और ताजी मछली लोगों को आसानी से मिल जाती है. तालाब से लेकर मंडी तक लोकल मछलियों की खरीदारी हो जाती है.
यह व्यवसाय पूरी तरह से नकद है. मछली का उत्पादन जिले में बड़े पैमाने पर मत्स्यपालकों द्वारा किया जा रहा है. जिला मत्स्य विभाग भी मछली उत्पादन को बढ़ावा देने में लगा है. मत्स्यपालकों को मछलीपालन करने के लिए तालाब निर्माण से लेकर बीज भी उपलब्ध कराने में लगा है. मछली पालन के लिए तालाब निर्माण पर सब्सिडी भी मत्स्यपालकों को दी जा रही है. इतना ही नहीं, तालाब में पानी संचय के लिए बोरिंग निर्माण के लिए भी अनुदान की राशि दी जा रही है, ताकि सालों तालाब में मछली का पालन आसानी से हो सके.
कहते हैं अधिकारी
मत्स्य उत्पादन को बढ़ाने के लिए सरकार की ओर से कई महत्वाकांक्षी योजनाएं चलायी जा रही हैं, जिससे जिले में मत्स्य उत्पादन में काफी वृद्धि हुई है. मत्स्य उत्पादन के क्षेत्र में लोगों में उत्साह है. तालाब निर्माण के लिए सब्सिडी भी लाभुकों को उपलब्ध करायी जा रही है.
उमेश रंजन, जिला मत्स्य पदाधिकारी
बिहारशरीफ प्रभात
