बिहारशरीफ : जिले में वर्ष 2016 में मध्य विद्यालयों के 350 शिक्षकों की प्रोन्नति का मामला आज तक नहीं सुलझ सका है. गुरुवार को पटना हाइकोर्ट के निर्देश पर निगरानी विभाग के डीएसपी द्वारा जिला शिक्षा कार्यालय में प्रोन्नति से संबंधित सभी दस्तावेजों को खंगाला गया.
इस दौरान उन्होंने जिला शिक्षा पदाधिकारी मनोज कुमार तथा जिला कार्यक्रम पदाधिकारी अरिंजय कुमार से भी सवाल-जवाब किया. निगरानी के अधिकारी ने बिहार अराजपत्रित शिक्षक संघ के दोनों गुटों के अध्यक्षों से भी पूछताछ की. अधिकारी न्यायालय के आदेश पर प्रोन्नति में हुई गड़बड़ी की शिकायतों की जांच कर रहे थे.
उन्होंने प्रोन्नति से जुड़े तमाम दस्तावेजों की गंभीरतापूर्वक जांच की. लगभग तीन घंटे चली इस जांच से विभाग के अधिकारी से लेकर कर्मचारी तक पसीना बहाते दिखे. निगरानी अधिकारी द्वारा मांगे जाने पर उनके समक्ष एक-एक दस्तावेज उपलब्ध कराया जाता रहा. अराजपत्रित शिक्षक संघ के जिलाध्यक्ष संजय कुमार सिन्हा तथा गोप गुट की सुनीता कुमारी द्वारा अधिकारी के समक्ष अपना-अपना पक्ष रखा गया.
प्रधानाध्यापकों की तीसरी बार की गयी पोस्टिंग : जिले के मध्य विद्यालयों में वर्ष 2016 में तात्कालिक डीइओ योगेश चंद्र सिंह तथा डीपीओ सुरेंद्र कुमार द्वारा लगभग 350 शिक्षकों की प्रधानाध्यापक के पद पर प्रोन्नति की गयी थी.
प्रोन्नति के बाद मूल समस्या शिक्षकों के पदस्थापना में आयी. विभाग द्वारा लॉटरी सिस्टम से नवप्रोन्नत प्रधानाध्यापकों को विद्यालय आवंटित किया गया. इसी समय मूल विवाद उत्पन्न हुआ. शिक्षकों ने इसे विभागीय नियम के प्रतिकूल बताया.
17 शिक्षक मामले को ले गये न्यायालय : लॉटरी सिस्टम से हुए विद्यालय आवंटन वो विभागीय नियमों के प्रतिकूल बताते हुए जिले के 17 शिक्षक मामले को उच्च न्यायालय पटना में दायर किया था.
इसके बाद से अब तक तीन बार प्रधानाध्यापकों की पोस्टिंग की जा चुकी है. न्यायालय के निर्देश पर शिक्षा विभाग के प्रधान सचिव द्वारा प्रधानाध्यापकों को फिर से पदस्थापित करने का निर्देश दिये जाने पर पोस्टिंग हुई थी. बाद में एक बार फिर शिक्षकों की पोस्टिंग रद्द कर दी गयी. इस प्रकार प्रधानाध्यापकों की तीन बार पोस्टिंग की गयी.
शिक्षक संघ ने दायर किया अवमाननावाद : अराजपत्रित शिक्षक संघ का कहना था कि प्रोन्नति में सबसे पहले डीपीओ को फिर सीआरसी तथा अंत में सामान्य स्कूलों को भरना था. विभाग द्वारा प्रोन्नति में इसका पालन नहीं किया गया. नाराज शिक्षक संघ ने एक बार फिर न्यायालय में अवमाननावाद दायर कर दिया. अंतत: न्यायालय द्वारा पूरे मामले की छानबीन का जिम्मा निगरानी विभाग को दे दिया गया. अब शिक्षकों की प्रोन्नति तथा विद्यालय आवंटन का मामला निगरानी जांच की रिपोर्ट पर निर्भर करता है.
124 शिक्षकों ने नये पदस्थापन में भी भाग लिया : मामला न्यायालय में पहुंचने के बाद से नव प्रोन्नत 341 प्रधानाध्यापकों में से लगभग 220 शिक्षकों ने न्यायालय को लिखित रूप में दिया कि वे अपने पदस्थापन से संतुष्ट हैं तथा मामले को यथास्थिति रखा जाये. निगरानी के अधिकारी ने दस्तावेजों के निरीक्षण के दौरान यह पाया कि इनमें से 124 शिक्षक नये पदस्थापन में भी शामिल हुए.
शिक्षक संघों के अध्यक्षों से यह पूछा गया कि किस परिस्थिति में यह विरोधाभास उत्पन्न हुआ. संघ के अध्यक्ष ने बताया कि ये शिक्षक यह सोच कर शामिल हुए कि पोस्टिंग कहीं हो, उन्हें बस काम करने से जरूरत है. अब सारा मामला निगरानी जांच की रिपोर्ट पर तथा न्यायालय के निर्णय पर निर्भर है.