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बिहारशरीफ : बेहतर सांसद के रूप में नालंदा में याद आयेंगे जॉर्ज

बिहारशरीफ : नालंदावासी जाॅर्ज फर्नांडिस को एक बेहतर एवं कुशल सांसद के रूप में हमेशा याद रखेंगे. नालंदा को मिनी मुंबई बनाने का जॉर्ज साहब का सपना साकार हुआ. रक्षा मंत्री रहते हुए भी जॉर्ज साहब यहां के लोगों से बेझिझक मिलते थे. सादा जीवन एवं उच्च विचार के कारण जॉर्ज साहब नालंदावासियों के दिलों […]

बिहारशरीफ : नालंदावासी जाॅर्ज फर्नांडिस को एक बेहतर एवं कुशल सांसद के रूप में हमेशा याद रखेंगे. नालंदा को मिनी मुंबई बनाने का जॉर्ज साहब का सपना साकार हुआ. रक्षा मंत्री रहते हुए भी जॉर्ज साहब यहां के लोगों से बेझिझक मिलते थे. सादा जीवन एवं उच्च विचार के कारण जॉर्ज साहब नालंदावासियों के दिलों में आज भी रचे बसे हैं.

वे काफी मिलनसार थे. उनसे कोई भी कार्यकर्ता या नालंदावासी बेझिझक मिल लेते थे. किसी गरीब एवं जरूरतमंद को जॉर्ज साहब मदद करने में सदैव आगे रहे थें. बगैर सिक्यूरिटी के ही जॉर्ज साहब नालंदा का दौरा करते थें. यहां के जरूरतमंद लोगों को दिल्ली में भी जॉर्ज साहब यथासंभव मदद करने में कभी पीछे नहीं रहें. इन सभी गुणों से जार्ज साहब को यहां के लोग सदियों तक भूला नहीं पायेंगे. जार्ज साहब ने नालंदा को वर्ष 1999 में केंद्र की राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार में रक्षा मंत्री रहते देश के दूसरे सबसे बड़े अत्याधुनिक राजगीर आयुध कारखाना का तोहफा दिया था.

तत्पश्चात, जार्ज साहब ने नालंदा वासियों को नालंदा सैनिक स्कूल, झारखंड- बिहार का इकलौता केंद्रीय बीड़ी श्रमिक अस्पताल एवं हरनौत रेल कोच कारखाने का भी तोहफा दिया. इसके अलावा सड़क, पुल पुलिया समेत कई कल्याणकारी योजनाओं से नालंदा वासियों को लाभांवित करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी. इसलिए नालंदा वासियों के मन मष्तिक एवं दिलों में आज भी जार्ज साहब की स्मृतियां बसी हैं.

राजगीर आयुध कारखाना :

जाॅर्ज साहब केंद्र की राजग सरकार में रक्षा मंत्री रहते हुए राजगीर में अत्याधुनिक आयुध कारखाने की नींव रखी थी. देश का दूसरा सबसे बड़ा अत्याधुनिक यह कारखाना 3300 एकड़ में बना है. इस कारखाने के बन जाने से सैकड़ों लोगों को रोजगार भी मिला है. जॉर्ज साहब ने नालंदा वासियों को सबसे पहले इसी आयुध कारखाना का बड़ा तोहफा दिया था.

नालंदा सैनिक स्कूल : जॉर्ज साहब ने दूसरे बड़े तोहफे के रूप में नालंदा वासियों को देश का 25 वां सैनिक स्कूल दिया है. 12 अक्तूबर, 2003 को नालंदा सैनिक स्कूल की स्थापना हुई थी. इस सैनिक स्कूल में देश के कोने- कोने से छात्र पढ़ाई कर अपना भविष्य गढ़ रहे हैं. यहां सैनिक स्कूल खुल जाने से दर्जनों लोगों को रोजगार भी मिला है. इस स्कूल से जिले के दर्जनों छात्र आज देश विदेश में जॉब कर रहे हैं.

केंद्रीय बीड़ी श्रमिक अस्पताल नालंदा से दूसरी बार

सांसद बनने के बाद जॉर्ज साहब ने नालंदा वासियों को केंद्रीय बीड़ी श्रमिक अस्पताल का तोहफा दिया था. जार्ज साहब ने खुद 12 जनवरी 2004 को इस अस्पताल की नींव रखीं थीं. 30 शैय्या वाले इस केंद्रीय अस्पताल के निर्माण पर 12 करोड़ रुपये खर्च किये गये थे. बिहार झारखंड का यह इकलौता केंद्रीय बीड़ी श्रमिक अस्पताल है. इस अस्पताल से आज नालंदा समेत पड़ोसी जिले नवादा व शेखपुरा के भी सैकड़ों बीड़ी श्रमिक लाभान्वित हो रहे हैं.

हरनौत रेल कोच फैक्टरी

जाॅर्ज साहब ने नालंदा के हरनौत में वर्ष 2003 में अत्याधुनिक रेल कोच

फैक्टरी की नींव रखी थी. इस मद में 100 करोड़ रुपये तब खर्च हुए थे. इस रेल फैक्टरी में आज उत्पादन भी हो रहा है. सैकड़ों लोगों की परवरिश इस फैक्टरी से हो रही है. रेल कोच फैक्टरी से हरनौत का विकास भी हुआ है. यहां स्थापित फैक्टरी जार्ज साहब की ही देन है.

समाजवादियों के आइकॉन थे शिवानंद

जाॅर्ज फर्नांडीस युवा समाजवादियों के आइकॉन थे. मुंबई बंद के बाद वे समाजवादियों के हीरो बनकर उभरे. जार्ज साहब के निधन से देश में समाजवाद की एक बड़े चेहरे का अंत हो गया. बिहार से उनका गहरा नाता रहा. नालंदा व मुजफ्फरपुर से वे सांसद रहे. वे मेरे भी उनके काफी करीब थे. संसद में वे हमेशा हिंदी में बोलते थे. वे मुंबई के बड़े और मजबूत तथा प्रभावशाली ट्रेड यूनियन लीडर थे. 1964-65 में उनके आहवान पर मुंबई में लोकल ट्रेन, बस आदि की हड़ताल हुई. पहली बार मुंबई बंद हुई थी. बंद इतना सफल था कि वे राष्ट्रीय पटल पर छा गये. बिहार समाजवादियों की भूमि रही है. 1967 में उन्होंने मुंबई में कांग्रेस के बड़े नेता एसके पाटिल को चुनाव में हरा कर लोस में पहुंचे.

सादगी से जीते थे जॉर्ज साहब : मोदी

जॉर्ज फर्नांडीस संघर्ष, सादगी और अध्ययनशीलता के प्रतीक थे. साधारण वेश–भूषा, सादगीपूर्ण रहन–सहन और रक्षा मंत्री के पद पर रहते हुए भी प्लेन के बिजनेस क्लास की जगह इकोनॉमी क्लास में यात्र करने में उन्हें कोई संकोच नहीं था. एक बार उनसे हवाई जहाज में मेरी मुलाकात हुई. तब वे रक्षामंत्री थे, प्लेन के इकोनॉमी क्लास की सबसे पिछली सीट पर 7–8 फाइलों के साथ बैठक कर उसका निष्पादन कर रहे थे.

उनकी अध्ययनशीलता का नमूना उनके कमरे को देख कर मिला. जहां वे सोते थे उसके चारों तरफ किताबों का अंबार लगा रहता था. उनके कमरे की अलमीरा, चौकी सभी पर किताबों का ढेर होता था. उनकी अध्ययनशीलता का असर उनके तथ्यों व तर्कों से परिपूर्ण भाषणों में देखने को मिलता था. छात्र जीवन में ही उनके दर्जन से अधिक हिन्दी व अंग्रेजी में दिये ओजपूर्ण व तथ्यों से परिपूर्ण भाषण सुनने का मौका मिला.

उनके तर्कों को काटना मुश्किल : वशिष्ठ

समाजवादी नेता जॉर्ज फर्नांडीस एक बेजोड़ वक्ता थे, संसद में जॉर्ज के तर्कों और साक्ष्यों को आमतौर पर काटना मुश्किल होता था. उनमें गजब की सांगठनिक क्षमता थी. संगठन और केंद्रीय मंत्री की भूमिका के दौरान उन्होंने अमिट छाप छोड़ी. जॉर्ज फर्नांडिस के पास बेजोड़ जानकारी होती थी. उनके साथ लंबे समय तक काम करने का अवसर मिला. उन्होंने रक्षा मंत्री और रेल मंत्री रहने के दौरान कई नये कामों की शुरुआत की. इसका मकसद जन कल्याण करना था. उन्होंने मजदूरों का भी नेतृत्व किया. मुंबई में उन्होंने बॉम्बे कामगार यूनियन और टैक्सी चालकों सहित अन्य यूनियनों का नेतृत्व किया. उनके निधन से हर वर्ग के लोग मर्माहत हैं.

व्यक्तिगत रूप से मर्माहत : विजय

पूर्व रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडिस के निधन पर शोक व्यक्त करते हुए बिहार विधानसभा के अध्यक्ष विजय कुमार चौधरी ने कहा कि उनके निधन से वे व्यक्तिगत रूप से मर्माहत हैं. स्व फर्नांडिस भारतीय राजनीति जगत में एक प्रख्यात समाजवादी व श्रमिक नेता के रूप में तथा अपनी सादगी के लिए हमेशा याद किये जायेंगे. उनके निधन से भारतीय राजनीतिक जगत को अपूरणीय क्षति हुई है. इसकी भरपायी निकट भविष्य में संभव नहीं है.

इकोनॉमी क्लास में चलते थे : यशवंत

जाॅर्ज साहब के जाने से बहुत दु:ख है. उनसे मेरी बहुत मधुर यादें जुड़ी है. अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में हम लोग साथ-साथ मंत्री रहे थे. वो केंद्रीय मंत्री होते हुए भी विमान में बिजनेस क्लास की वजाय इकोनोमी क्लास में सफर करते थे. उन्होंने मुझे भी इकोनोमी क्लास में चलने को प्रेरित किया. सरल और सहज रहने वाले जाॅर्ज साहब रात में जिस कुर्ते को पहन सोते थे, अगले दिन वह उसी कुरते को पहने होते थे. ऐसा उनका सादगी भरा जीवन थे. अपने लंबे राजनीतिक जीवन में कुछ ही दिन वो मंत्री रहे थे. बाकी के दिन संघर्ष भरा ही रहा. चुनावों में उन्होंने बड़ों-बड़ों को परास्त किया,खुद भी पराजित हुए लेकिन, कभी हिम्मत नहीं हारे. अंत में वो बीमारी से लड़ते रहे.

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