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अंग्रेज थानेदार को जिंदा जलाने वाले जुब्बा सहनी का गांव आज भी बदहाल

अंग्रेज थानेदार को जिंदा जलाने वाले जुब्बा सहनी का गांव आज भी बदहाल

शहादत दिवस:: वालर को मैने मारा ” की सिंहगर्जना करने वाले अमर शहीद जुब्बा सहनी का शहादत दिवस आज

:: 54 साथियों को फांसी के फंदे से बचाकर खुद दे दी थी जान, गांव में अब भी सरकारी हिंदी स्कूल नहीं

संतोष कुमार गुप्ता, मीनापुर

11 मार्च 1944 को भागलपुर सेंट्रल जेल में “वालर को मैने मारा ” की सिंह गर्जना कर फांसी के फंदे को चुमने वाले मीनापुर प्रखंड के चैनपुर गांव के अमर शहीद जुब्बा सहनी का मंगलवार को शहादत

दिवस है. लंबे समय बाद इनके पैतृक गांव चैनपुर व पड़ोसी गांव धारपुर में भव्य तरीके से इनकी शहादत दिवस मनाने की तैयारी पूरी कर ली गई है. शहादत दिवस समारोह में कई दिग्गज लोगों के पहुंचने की संभावना है. फिर से बड़ी घोषणाएं होने की संभावना है लेकिन उसके बाद भी गांव विकास की राह देख रहा है. बताते चलें कि 16 अगस्त 1942 का दिन भारत ही नहीं बल्कि लंदन के भी सुर्खियों में था. उस दिन दोपहर का सूरज ढलान पर था. फिंजा में खामोशी थी. इसको चिरते हुए आजादी के दीवानों की टोली मीनापुर थाने पर पहुंच गयी. अंग्रेजों के ताबड़तोड़ गोली से चैनपुर गांव के रणबांकुर वांगुर सहनी शहीद हो गये. इसी के प्रतिशोध में मीनापुर के चैनपुर गांव के देशभक्त जुब्बा सहनी ने अंग्रेज थानेदार लुइस वालर की चिता मीनापुर थाना परिसर में ही सजा दी थी. लुईस वालर को मीनापुर थाने में जिंदा जला दिया गया. इसके बाद यूनियन जैक को उतार कर तिरंगा फहरा दिया गया. 11 मार्च 1944 को भागलपुर सेंट्रल जेल में “वालर को मैने मारा ” की सिंह गर्जना करने वाले मीनापुर प्रखंड के चैनपुर गांव के जुब्बा सहनी हर किसी की जुबान पर हैं. जुब्बा ने अंग्रेज थानेदार लुइस वालर को जिंदा जलाने का सारा इल्जाम अपने उपर लेकर 54 साथियों को फांसी के फंदे से बचा लिया था. मामले की सुनवाई कर रही एएन बनर्जी की अदालत में जुब्बा ने सारा इल्जाम अपने उपर लेकर फांसी के फंदे को कबूल किया.

गांव में कोई सरकारी स्कूल नहीं

सन् 1906 में चैनपुर के पांचू सहनी के घर में पैदा लेने वाले जुब्बा का गांव आज भी बदहाल है. गांव में आज भी एक भी सरकारी हिंदी स्कूल नहीं है. ग्रामीण राजकुमार सहनी बताते हैं कि अमर शहीद के गांव के बच्चे दूसरे गांवों में पढ़ने जाते हैं. हालांकि स्कूल के लिए राज्यपाल के नाम जमीन दान में दी जा चुकी है. ग्रामीण हामिद रेजा टुन्ना बताते हैं कि चैनपुर को राजस्व ग्राम का दर्जा प्राप्त नहीं

है. आदर्श गांव की परिकल्पना कागज में दम तोड़ रही है. गांव में स्वास्थ्य उपकेंद्र भी नहीं है. ग्रामीणों की मानें तो उर्दू स्कूल में जाने के लिए सरकारी रास्ता भी नहीं है. शहादत दिवस समारोह की तैयारी में जोर शोर से जुटे पूर्व मुखिया अजय सहनी बताते हैं कि चैनपुर को मीनापुर थाना से अलग कर प्रशासन ने शहीद के गांव के साथ क्रुर मजाक किया है. उन्होंने कहा कि संसद में जुब्बा सहनी का तैलचित्र लगे. चैनपुर गांव में जुब्बा सहनी के नाम पर स्मृति भवन बनें. चैनपुर का नाम जुब्बा सहनी ग्राम घोषित हो. वहीं कई मंचों पर सम्मानित हो चुके सहनी के परिवार का बुरा हाल है. पिता बिकाउ सहनी वर्षों पूर्व आर्थिक तंगी से आत्महत्या कर चुके हैं. चुनाव के वक्त उनके नाम पर बड़े बड़े वायदे होते हैं. चैनपुर को हुसैनीवाला की तर्ज पर विकसित करने की बात होती है. किंतु आज भी चैनपुर गांव पर्यटक स्थल बनने के लिए टकटकी लगाये हुए है. वर्ष-2003 में तत्कालीन डीएम अमृतलाल मीणा ने गांव को राजस्व गांव बनाने की घोषणा की थी. किंतु अब भी वह फाइल की शोभा बढा रहा है.

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