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योजनाओं के लिए भू-अर्जन की जगह सतत लीज पर जमीन लेगा प्रशासन
कुणाल मुजफ्फरपुर : मुजफ्फरपुर सहित तिरहुत प्रमंडल के छह जिलों में सरकार की नयी परियोजनाओं को पूरा करने के लिए भूमि का अजर्न नहीं होगा, बल्कि प्रशासन सतत लीज पर जमीन लेगा. भू-अजर्न उन्हीं परियोजनाओं के लिए होगी, जिसके लिए संबंधित विभाग मांग करेगा. प्रमंडलीय आयुक्त अतुल प्रसाद ने इस संबंध में सभी छह जिलों […]
कुणाल
मुजफ्फरपुर : मुजफ्फरपुर सहित तिरहुत प्रमंडल के छह जिलों में सरकार की नयी परियोजनाओं को पूरा करने के लिए भूमि का अजर्न नहीं होगा, बल्कि प्रशासन सतत लीज पर जमीन लेगा. भू-अजर्न उन्हीं परियोजनाओं के लिए होगी, जिसके लिए संबंधित विभाग मांग करेगा. प्रमंडलीय आयुक्त अतुल प्रसाद ने इस संबंध में सभी छह जिलों के भू-अजर्न पदाधिकारियों को निर्देश जारी किया है. इससे भू-स्वामियों को बिना घाटा हुए सरकारी खर्च में कटौती होगी. वहीं, परियोजनाएं भी जल्दी पूरी हो सकेगी.
सतत लीज नीति 2013 में जीतन राम मांझी सरकार ने लागू की थी. इसके तहज शैक्षणिक संस्थान, सड़क, बिजली परियोजनाओं, संपर्क पथ, स्टेडियम, बांध व नहर आदि के निर्माण के लिए जमीन लीज पर ली जा सकती है.
सामान्य नियमों से भू-अजर्न के तर्ज पर सतत लीज नीति में भू-स्वामियों को जमीन की सरकारी मूल्य (एमवीआर) का चार गुना व शहरी क्षेत्र में सरकारी मूल्य की दोगुनी राशि मिलेगी. यही नहीं भू-स्वामी उस जमीन का मालिक भी बना रहेगा. हालांकि वह उसे बेच नहीं सकेगा.
खर्च में कटौती, समय की भी बचत
सरकारी प्रावधानों के अनुसार, भूमि अधिग्रहण से पूर्व सामाजिक प्रभाव का आंकलन (एसआइए) करना अनिवार्य होता है. सूबे में इसके लिए एएन सिन्हा इंस्टीट्यूट पटना को जिम्मेदारी सौंपी गयी है. इसमें काफी वक्त भी लगता है. वहीं प्रशासन को इसके लिए संस्था को अलग से राशि का भी भुगतान करना होता है. सतत लीज नीति में सामाजिक प्रभाव के आंकलन की कोई अनिवार्यता नहीं रहती.
अरजेंसी क्लाउज : डीएम की अनुशंसा, आयुक्त की मंजूरी जरूरी
प्रमंडलीय आयुक्त ने भू-अजर्न के लिए अरजेंसी क्लाउज लगाने की प्रक्रिया में भी बदलाव कर दिया है.अब अरजेंसी क्लाउज लगाने से पूर्व भू-अजर्न विभाग को इसका कारण बताना होगा. फिर उसकी अनुशंसा संबंधित जिलाधिकारी से करानी होगी. फिर वह प्रस्ताव प्रमंडलीय आयुक्त को भेजना होगा. आयुक्त की मंजूरी के बाद ही अधियाची विभाग को अरजेंसी क्लाउज के तहत भू-अजर्न का प्रस्ताव भेजा जायेगा. फिलहाल संबंधित विभाग से मिले प्रस्ताव को ही भू-अजर्न विभाग अधियाची विभाग को अग्रसारित कर देता है. आयुक्त का मानना है कि सामान्यत: अरजेंसी क्लाउज के बाद भी कार्य प्रारंभ करने में अनावशय़क देरी होती है, जिससे इसकी उपयोगिता खत्म हो जाती है.
मंजूरी के बावजूद लगी रोक
गंगा नदी पर सिक्स लेन पुल निर्माण के लिए वैशाली के 18 गांवों में 273.735 एकड़ जमीन का भू-अजर्न होना है. इसके लिए विभाग से अरजेंसी क्लाउज लगाने की मंजूरी मिल चुकी है. लेकिन प्रमंडलीय आयुक्त अतुल प्रसाद ने फिलहाल इसमें अरजेंसी क्लाउज लगाने पर रोक लगा दी है. उनका कहना है कि क्षेत्र के लोगों ने भू-अजर्न के लिए सहमति दे दी है.
खुद वैशाली के भू-अजर्न पदाधिकारी ने भी इस संबंध में प्रतिवेदन दे दिया है. ऐसे में इसमें अरजेंसी क्लाउज लगाने की जरूरत नहीं. यदि किसी ंिबदु पर इसकी जरूरत पड़ती है तो इसके लिए कारण बताते हुए डीएम की अनुशंसा से प्रस्ताव भेजा जाये. यदि कारण सही होगा, तो इसके लिए अनुमति प्रदान की जायेगी. यह नियम उन परियोजनाओं में भी लागू होगा, जिसमें अरजेंसी क्लाउज की मंजूरी मिल चुकी है, पर यह लागू नहीं हुआ है.यहां होगा लागू. मुजफ्फरपुर, वैशाली, सीतामढ़ी, शिवहर, पूर्वी चंपारण व पश्चिमी चंपारण.
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