बहन के परपोते सुब्रतो आज आयेंगे मुजफ्फरपुर
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फांसी स्थल पर पौधा लगायेंगे शहीद खुदीराम के रिश्तेदार
बहन के परपोते सुब्रतो आज आयेंगे मुजफ्फरपुर मुजफ्फरपुर :शहीद खुदीराम बोस के 112वें शहादत दिवस पर शहर में पहली बार मिदनापुर से उनके रिश्तेदार सुब्रतो राय (बहन के परपोते) परिवार और कुछ अन्य लोगों के साथ मुजफ्फरपुर आ रहे हैं. खुदीराम बोस को 11 अगस्त, 1908 को फांसी दी गयी थी. मिदनापुर के लेखक अरिंदम […]
मुजफ्फरपुर :शहीद खुदीराम बोस के 112वें शहादत दिवस पर शहर में पहली बार मिदनापुर से उनके रिश्तेदार सुब्रतो राय (बहन के परपोते) परिवार और कुछ अन्य लोगों के साथ मुजफ्फरपुर आ रहे हैं. खुदीराम बोस को 11 अगस्त, 1908 को फांसी दी गयी थी.
मिदनापुर के लेखक अरिंदम भौमिक की पहल पर शहीद खुदीराम के रिश्तेदार सुब्रतो राय अपनी पत्नी ममता राय के साथ आ रहे हैं. वह यहां 11 अगस्त की सुबह जेल के अंदर शहीद के सेल व फांसी स्थल पर श्रद्धांजलि देंगे. इसके बाद फांसी स्थल व सोड़ा गोदाम चौक के पास शहीद की चिता स्थल पर पौधरोपण करेंगे.
सुब्रतो राय शहीद खुदीराम की बहन अपरूपा देवी के छोटे बेटे भीमाचरण राय के पुत्र हैं. मिदनापुर में जिला जज के यहां बड़ा बाबू पद से सेवानिवृत्त हैं. सुब्रतो सहित अन्य लोगों को साथ ला रहे लेखक अरिंदम भौमिक ने बताया कि खुदीराम बोस पर रिसर्च के दौरान उन्हें पता चला कि सुब्रतो राय शहीद के खानदान से हैं.
उनसे मिल कर मुजफ्फरपुर चलने को कहा, तो वह तैयार हो गये. भौमिक ने बताया कि खुदीराम बोस ने फांसी से पहले अमृतलाल को पत्र भेजकर चार इच्छाएं बतायी थीं, जिसमें मिदनापुर को देखना, दीदी अपरूपा देवी व भांजा ललित से मिलना, भांजी शिवरानी की शादी की जानकारी व काली मां का चरणामृत पीने की इच्छा जतायी थी.
भौमिक ने बताया कि वह पिछले वर्ष दीदी का फोटो व काली मंदिर का चरणामृत लेकर गये थे, जिसे फांसी स्थल पर समर्पित किया गया. अरिंदम ने बताया कि मुजफ्फरपुर में दो अप्रैल, 1949 को खुदीराम बोस प्रतिमा स्थल का शिलान्यास किया गया था. खुदीराम बोस की दीदी अपरूपा देवी को वहां जाने की इच्छा थी, लेकिन बीमारी की वजह से वह वहां नहीं जा पायीं.
हालांकि, उनके बेटे ललितमोहन और भीमाचरण गये थे. अरिंदम ने बताया कि इस बार मिदनापुर से सात लोग आ रहे हैं, जिनमें दीपांकर घोष, झरना आचार्या, कौशिक प्रसाद कंच और करिश्मा गोपाल चक्रवर्ती शामिल हैं. उधर, झारग्राम (मिदनापुर) से प्रकाश हलधर भी 10 लाेगों के साथ मुजफ्फरपुर पहुंच रहे हैं. वह वर्ष 1995 से हर वर्ष 11 अगस्त को यहां आकर शहीद को श्रद्धांजलि देते हैं.
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