मुजफ्फरपुर: एइएस से पीड़ित होने वाले अधिकांश बच्चों का मानसिक स्थिति सामान्य बच्चों से कमजोर थी. चार वर्ष से अधिक उम्र के बच्चे जिन्होंने पढ़ना शुरू किया था, उन्हें पाठ याद करने में परेशानी होती थी. ऐसा उनके अभिभावकों का कहना है.
हालांकि, कम उम्र होने के कारण माता-पिता उनकी पढ़ाई पर ध्यान नहीं देते थे, लेकिन बच्चों का मन भी पढ़ने में नहीं लगता था. उसे जबरदस्ती स्कूल या आंगनबाड़ी केंद्र भेजना पड़ता था. माता-पिता का कहना था कि बच्चे घर व बाग बगीचे में खेलना ज्यादा पसंद करते थे. स्कूल जाने की ज्यादा जिद पर बच्चे रोने लगता था. यहां एइएस से पीड़ित तीन बच्चों के अभिभावकों से बात कर बच्चों की मानसिक स्थिति की पड़ताल की गयी. अभिभावकों का कहना था कि उनके बच्चे पढ़ने में कमजोर हैं. यहां हम उनके माता-पिता से बातचीत को उन्हीं के शब्दों में रख रहे हैं.
दो साल में बिंदु ने कुछ नहीं सीखा
चकिया निवासी कमल राम की छह वर्षीय पुत्री बिंदु गांव के ही आंगनबाड़ी केंद्र जाती है, लेकिन उसका भी मन पढ़ाई में नहीं लगता. पिता कमल कहते हैं कि दो वर्ष पहले से आंगनबाड़ी केंद्र भेज रहे हैं, लेकिन अभी तक कुछ भी नहीं सीखी है. दिन भर खेलने में ही लगी रहती है. हम घर पर रहते हैं तब उसे आंगनबाड़ी केंद्र भेजते हैं. मां जब पढ़ने के लिए कहती है, तो रोने लगती है. अभी बच्ची है, इसलिए यह नहीं पता कि इसका दिमाग ठीक है कि नहीं, लेकिन पढ़ना नहीं चाहती है.
जल्दी समझती नहीं चाहत
मुरादपुर दुल्ल निवासी सुरेश साह की साढ़े पांच वर्षीय पुत्री चाहत कुमारी पांच दिनों के इलाज के बाद अब पहले से ठीक है. उसे आठ जून को यहां भरती कराया गया था. शुक्रवार को वह स्वयं उठ कर बैठने लगी. उसने बिस्कुट व पावरोटी भी खायी, लेकिन बुखार होने के कारण डॉक्टर ने उसकी छुट्टी नहीं की. सुरेश साह ने कहा कि वह आंगनबाड़ी केंद्र में पढ़ती थी. पढ़ने में ऐसे तो कोई दिक्कत नहीं थी, लेकिन वह जल्दी समझती नहीं थी. उसे बार-बार समझाना पड़ता था. उसे हम लोग जबरदस्ती आंगनबाड़ी केंद्र भेजते थे.
मोटे दिमाग का है सोनू
श्यामपुर बोचहां के मुकेश सहनी का सात वर्षीय पुत्र सोनू भी यहीं भरती है. सोनू गांव के प्राथमिक विद्यालय में कक्षा दो में पढ़ता था. पिता मुकेश कहते हैं कि सोनू मोटे दिमाग का है. जल्दी बात नहीं समझता. दिन भर बगीचे में घूमता रहता था. स्कूल भी जाना नहीं चाहता था. कोई काम कहते तो वह ठीक से नहीं करता, लेकिन बोलने में कोई परेशानी नहीं है. दिन भर इधर-उधर घूमता रहता है. मन होता है तो स्कूल जाता है. डांटने का भी कोई असर नहीं होता. हम तो दिन में काम पर चले जाते हैं. मां कोई बात कहती है तो नहीं मानता.