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जो व्यक्ति तप की महिमा को समझ लेते, वह भवसागर से तर जाते

धर्म से जुड़े रहेंगे तो परिस्थितियों में कभी भी आत्म बल नहीं गिरेगा.

मुंगेर ————————- दिगंबर जैन धर्मावलंबियों द्वारा आत्म शुद्धि का महान पर्व प्रयुषण महापर्वराज (दशलक्षण पर्व ) को लेकर 7वें दिन जैन धर्मशाला में उत्सवी माहौल बना रहा. सुबह से ही धर्मशाला स्थित मंदिर में पूजा-अर्चना, प्रार्थना का दौर चलता रहा. जिसमें बड़ी संख्या में जैन धर्मावलंबियों ने भाग लिया. निर्मल जैन ने कहा कि जीवन में जो व्यक्ति तप की महिमा को समझ लेता है वह इस भवसागर से तर जाता है. हमें अपने कर्मों की निर्जरा करनी है. पूर्व जन्म के पाप-पुण्य का लेखा-जोखा इस जन्म में आता है और जो वर्तमान में हम करेंगे वो आगे आयेगा. जैन धर्म में तप का विशेष महत्व बताया गया है. उन्होंने कहा कि जीवन में सुख और दुख दोनों आते हैं. हमें दोनो ही अवस्था में प्रसन्नता व्यक्त करने का प्रयास करना चाहिए. दोनों ही परिस्थिति में मनोबल बनाए रखना और संयम के साथ उसका मुकाबला करना चाहिए. धर्म से जुड़े रहेंगे तो परिस्थितियों में कभी भी आत्म बल नहीं गिरेगा. उन्होंने कहा कि सुख व्यक्ति के अहंकार की परीक्षा लेता है. जबकि दुःख व्यक्ति के धैर्य की परीक्षा लेता है. दोनों परीक्षाओं में उत्तीर्ण होना व्यक्ति का जीवन लक्ष्य होना चाहिए.

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