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शहरवासियों की नहीं बुझी प्यास, न ही अतिक्रमण से मिली निजात

शहरवासियों की नहीं बुझी प्यास, न ही अतिक्रमण से मिली निजात

राणा गौरी शंकर, मुंगेर.

“कहां तो तय था चरागां, हर घर के लिये, कहां चराग मयस्सर नहीं, शहर के लिये” मशहूर शायर दुष्यंत कुमार की यह पंक्ति आज मुंगेर शहर की हकीकत बयान कर रही है. वर्ष 2025 विदा होने को है, लेकिन नया साल आने से पहले ही मुंगेरवासियों के हिस्से निराशा, अव्यवस्था व अधूरी योजनाएं आ चुकी हैं. मूलभूत सुविधाओं के नाम पर शहर आज भी प्यासा है, सड़कों पर अतिक्रमण का बोलबाला है, सफाई व्यवस्था बदहाल है व विकास की योजनाएं निगम की फाइलों में दम तोड़ रही हैं. करोड़ों रुपये खर्च होने के बावजूद शहरवासियों को न तो शुद्ध पेयजल मिल सका, न गंदगी से निजात और न ही व्यवसायिक विकास की कोई ठोस तस्वीर उभर पायी.

आधे शहर तक नहीं पहुंच सका शुद्ध पेयजल

‘जल ही जीवन है’ का नारा भले ही दीवारों पर लिखा हो, लेकिन मुंगेर के लोगों के जीवन में यह आज भी एक सपना ही बना हुआ है. आजादी के 78 वर्षों बाद भी शहर के सभी 45 वार्डों में शुद्ध पेयजल की नियमित आपूर्ति नहीं हो पा रही है. सरकार की महत्वाकांक्षी अमृत योजना के तहत 198.73 करोड़ रुपये की लागत से जलापूर्ति योजना शुरू की गई थी, जिसके अंतर्गत नगर निगम क्षेत्र के 39,921 घरों तक पानी पहुंचाने का लक्ष्य था.

हकीकत यह है कि आज भी दर्जनभर मोहल्लों में नल से एक बूंद पानी नहीं निकलता. तीन वर्ष पहले लगाये गये कनेक्शन लोगों के लिए केवल दिखावटी साबित हो रहे हैं. वार्ड नंबर 42 महद्दीपुर के कुणाल कुमार, बसंत सिंह व विजय शंकर बताते हैं कि उनके घरों में नल तो लगा है, लेकिन अब तक पानी नहीं आया. प्रशासनिक स्तर पर प्रमंडलीय आयुक्त व जिलाधिकारी द्वारा बार-बार निर्देश दिए जाने के बावजूद स्थिति जस की तस बनी हुई है. नतीजा-ढ़ाक के तीन पात.

अतिक्रमण ने छीना सड़कों पर चलने का सुकून

मुंगेर शहर में अतिक्रमण अब सिर्फ समस्या नहीं, बल्कि रोजमर्रा की परेशानी बन चुका है. व्यापारिक संगठनों से लेकर सामाजिक और राजनीतिक संगठनों तक ने नगर निगम से शहर को अतिक्रमणमुक्त करने की लगातार मांग की, लेकिन ठोस कार्रवाई आज तक नहीं हो सकी. निगम प्रशासन समय-समय पर अतिक्रमण हटाओ अभियान जरूर चलाता है, मगर ये अभियान कुछ घंटों में ही दम तोड़ देते हैं.

आज हालात यह हैं कि फुटपाथ तो दूर, मुख्य सड़कों पर भी ठेला और दुकानें लगी हैं. पैदल चलना शहरवासियों के लिए जोखिम भरा हो गया है. ऐसा प्रतीत होता है मानो निगम प्रशासन अतिक्रमणकारियों के आगे बेबस नजर आ रहा है, तभी अभियान का असर जमीन पर दिखाई नहीं देता.

न राजा बाजार में मार्केट कांप्लेक्स, न फूड कोर्ट का सपना हुआ साकार

योगनगरी मुंगेर कभी अपनी चौड़ी सड़कों, चौराहों व सुंदर बनावट के लिए जाना जाता था. लेकिन शहर को संवारने की जिम्मेदारी जिनके कंधों पर है, वे योजनाओं को अमलीजामा पहनाने में नाकाम साबित हो रहे हैं. वर्ष 2025 में नगर निगम बोर्ड ने कोतवाली थाना के सामने स्थित जर्जर राजा बाजार मार्केट को तोड़कर वहां आधुनिक मल्टीस्टोरी मार्केट कांप्लेक्स बनाने का निर्णय लिया था.

यह योजना न केवल वर्तमान दुकानदारों के लिए लाभकारी होती, बल्कि नए व्यवसायियों को भी अवसर मिलता. लेकिन चंद लोगों के विरोध के आगे निगम ने चुप्पी साध ली. योजना फाइलों में कैद रह गयी. इसी तरह नगर भवन के पूर्वी हिस्से में फूड कोर्ट बनाने की योजना को भी निगम प्रशासन ने ठंडे बस्ते में डाल दिया, जबकि इसे लेकर व्यवसायिक व सामाजिक संगठनों में खासा उत्साह था.

करोड़ों खर्च, फिर भी गंदगी का अंबार

मुंगेर शहर की सफाई व्यवस्था भी 2025 की सबसे बड़ी विफलताओं में शामिल रही. कूड़ा उठाव, डोर-टू-डोर कचरा संग्रह और सफाई पर नगर निगम हर साल करोड़ों रुपये खर्च कर रहा है, लेकिन शहरवासियों को गंदगी से मुक्ति नहीं मिल पा रही. सुबह हो या शाम, अस्थायी डंपिंग यार्डों पर कचरे का ढेर आम दृश्य बन चुका है. सफाई व्यवस्था आउटसोर्सिंग एजेंसी के हवाले है, लेकिन एजेंसी और निगम प्रबंधन के बीच तालमेल ऐसा है कि व्यवस्था पटरी पर आ ही नहीं पा रही. स्थिति यह है कि छुट्टी और रविवार के दिन शहर में सफाई तक नहीं होती. डोर-टू-डोर कूड़ा संग्रह भी ठप रहता है. पूरा साल गंदगी के बीच गुजर गया.

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