जेआरएस कॉलेज, जमालपुर में अंग्रेजी पीजी विभाग कर रहा दो दिवसीय नेशनल सेमिनार का आयोजन
प्रतिनिधि, मुंगेर.शोध पत्र शोधार्थियों के विचारों को प्रदर्शित करता है. यह देखा जाता है कि शोधार्थियों के शोध पत्र में मौलिकता का अभाव होता है. एक ही तथ्य का कई-कई स्थानों पर दोहराव होता है. इसके साथ ही कहीं पूरा तथ्य ही दूसरे स्थान पर दोबारा शामिल कर दिया जाता है. इससे प्रतीत होता है कि शोधार्थी ने सही तरीके से अध्ययन नहीं किया है तथा किसी अन्य शोध पत्र के अंश को अपने शोध पत्र में शामिल कर लिया है. ऐसा नहीं होना चाहिए. शोध पत्र में मौलिकता तथा यथार्थ का चित्रण किया जाना चाहिए. उक्त बातें तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय के सेवानिवृत प्राध्यापक डाॅ यूके मिश्रा ने शुक्रवार को जेआरएस कॉलेज, जमालपुर में अंग्रेजी पीजी विभाग द्वारा आयोजित दो दिवसीय नेशनल सेमिनार के दौरान कही. मौके पर कुलपति प्रो संजय कुमार, कुलसचिव कर्नल विजय कुमार ठाकुर ने भी संबोधित किया. इसके साथ ही विद्यार्थियों को उनके शिक्षा व शोध से जुड़े कार्यों को बेहतर करने के लिए प्रेरित किया.
वहीं डाॅ यूके मिश्रा ने कहा कि लेखन, चिंतन, शोध प्रश्न, प्रासंगिक साहित्य समीक्षा, शोध पद्धति आदि शोध पत्र का प्रमुख अवयव है. उन्होंने शोध को प्रोन्नति को भी आपस में जोड़ते हुए चर्चा की. इस दौरान उन्होंने शोधार्थियों को शोध से जुड़े अवयवों के बारे में विस्तार से जानकारी दी तथा शोध की मौलिकता पर जोर दिया. वहीं इलाहाबाद विश्वविद्यालय के डाॅ विजय कुमार राय ने सेमिनार के विषय पर तथ्यों की प्रामाणिकता के बारे में बताया. उन्होंने एक शोधार्थी के प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा कि आप अपने शोध कार्य में तकनीक का सहयोग ले सकते हैं, लेकिन वह तथ्य ही प्रामाणिक माने जाएंगे, जो प्रामाणिक जर्नल से संग्रह किये गये हों. उन्होंने अंग्रेजी शोध से जुड़े संगठनों की चर्चा करते हुए कहा कि अंग्रेजी के प्रत्येक शिक्षक तथा शोधार्थी को ऐसे संगठनों की आजीवन सदस्यता लेनी चाहिए, ताकि आप अंग्रेजी साहित्य से जुड़े हर नये शोध पत्र से अवगत हो सकें तथा साहित्य के संवर्धन में जो नवाचार हुए हैं, जो नये-नये तथ्य सामने आये हैं, उनसे अवगत हो सकें.कई शोधार्थियों ने भी रखे अपने विचार
मुंगेर. अंग्रेजी पीजी विभाग की ओर से आयोजित राष्ट्रीय सेमीनार के दूसरे दिन कई शोधार्थियों ने अपने विचार रखे. इस दौरान पीजी विभाग के सहायक प्राध्यापक सह ओएसडी प्रो प्रियरंजन तिवारी ने भी अपने विचार रखे. उन्होंने कहा कि दिव्यांगता अध्ययन साहित्यिक अभ्यावेदन की दुनिया में समय-सम्मानित सैद्धांतिक प्रतिमानों को विघटित और समस्याग्रस्त करने के लिए साहित्यिक ग्रंथों में गहराई से उतरने के लिए एक नये परिप्रेक्ष्य का आविष्कार करता है. दिव्यांगता अध्ययन के आलोक में किसी पाठ की ताज़ा समझ के लिए नयी अंतर्दृष्टि का आयात करते हुए, यह साहित्यिक कार्यों में दिव्यांगता के रूढ़िवादी प्रतिनिधित्व पर सवाल उठाता है. इसका मानना है कि दिव्यांगता प्रदत्त या प्राकृतिक नहीं है़ बल्कि यह लिंग और जाति की तरह एक सामाजिक निर्मिति है. यह दिव्यांगता, हानि और दिव्यांगता की स्थापित धारणाओं को समस्याग्रस्त बनाती है.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है