मुंगेर ——————————— पादुका दर्शन संन्यासपीठ में चल रहे श्री लक्ष्मी-नारायण महायज्ञ के तहत गुरुवार को ऊर्जा व उल्लास से परिपूर्ण रहा. माता लक्ष्मी और भगवान नारायण के पावन मंत्रों ने पूरे वातावरण में एक विशेष उत्साह का प्रवाह किया. श्रद्धालु और योगाश्रम के संन्यासी लक्ष्मी-नारायण की कथा सुनकर भाव भक्ति के सागर में गोता लगाते रहे. बिहार योग विद्यालय के परमाचार्य स्वामी निरंजनानंद सरस्वती ने कहा कि नारायण का जो स्वरूप है, वहीं परमात्मका का भी स्वरूप है. वे नारायण ही हैं जो ब्रह्म का रूप लेकर सृष्टि का निर्माण करते है. उन्होंने कहा कि नारायण का जो तत्व सभी प्राणियों में निवास करते हैं, उसे विष्णु कहते हैं. विष्णु प्राणियों के हृदय में विराजमान रहते हैं. उन्होंने भगवान विष्णु के विभिन्न रूप जल विष्णु, शेष विष्णु, अंतरिक्षक विष्णु के बारे में बताया. यानी संपूर्ण ब्रह्मांड में विष्णु का वास है. विष्णु हमारे प्राणों और मन के व्यवहार के साझी है. वे कर्ता है और हम भोक्ता. उन्होंने बताया कि लक्ष्मी और नारायण दो अलग शक्तियां नहीं है, बल्कि वे अनंतनारायण है. वे महाविष्णु का अर्धनारेश्वर रूप है. लक्ष्मी सौम्यता, संपन्नता और सौंदर्य कि प्रतिमूर्ति है और नारायण क्षमा, दया, सत्य, भक्ति और आनंद कि प्रतिमूर्ति है. यदि हम इन गुणों को अपने जीवन में आत्मसात करते है तो हमारा जीवन ज्योतिर्मय हो उठेगा. हमारा प्रयास ही हमारे जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धी होगी. उन्होंने बताया कि स्वामी सत्यानंद से एक बार किसी ने पूछा कि हम अपने समाज की समस्याओं को दूर करने के लिए क्या कर सकते हैं. तो इसके उत्तर में उन्होंने कहा कि तुम केवल एक ही चीज कर सकते हो और वह है आने वाली पीढ़ियों को सही संस्कार प्रदान करना. ताकि वे सकारात्मक, सहजता और साहस के साथ जीवन में उचित गुणों को साध सकें. उन्होंने कहा कि कल इस महायज्ञ की पूर्णाहूर्ति के पश्चात हम सभी एक संकल्प लेकर प्रस्थान करें कि आने वाली पीढ़ियों को अच्छा बनने और अच्छा करने कि प्रेरणा देने का प्रयास अवश्य करेंगे. उन्होंने अक्षत-प्रसाद के विषय में बताया कि यह प्रसाद मंत्रों द्वारा संपादित हो रहे है और यज्ञ के संकल्प के साथ इसका वितरण होगा. यह अक्षत शारीरिक, मानसिक, भौतिक और लौकिक रूपों में पोषण का कार्य करेंगा. यह अक्षत इस यज्ञ का विशेष उपहार है.
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