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सदर अस्पताल में नर्सों की कमी से बढ़ी परेशानी, पारामेडिकल के भरोसे मरीज

नर्सों की कमी के कारण वार्डों में भर्ती मरीजों की उचित देखभाल नहीं हो पाता

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बदहाली : जरूरत 150 नर्स की, स्वीकृत पद 50, कार्यरत मात्र 39

– सरकार द्वारा प्रतिनियुक्ति रद्द किये जाने के बाद अब रह जायेंगी मात्र 12 परिचारिकाएं

मुंगेर

मुंगेर सदर अस्पताल में चिकित्सकों की कमी से जहां रोगियों का समुचित ईलाज नहीं हो पा रहा, वहीं अब नर्सों की कमी ने परेशानी बढ़ा दी है. अस्पताल में आये दिन कभी चिकित्सक पर तो कभी नर्स पर इलाज में लापरवाही का आरोप लगते रहता है. नर्सों की कमी के कारण वार्डों में भर्ती मरीजों की उचित देखभाल नहीं हो पाता. यहां इलाज की जिम्मेदारी पारा मेडिकल और एएनएम या जीएनएम स्टूडेंट पर है. इसका फायदा उठाकर अस्पताल में दलाल भी पारामेडिकल बनकर काम करते हैं, जो मरीजों को बहलाकर निजी क्लीनिक या निजी अस्पताल ले जाते हैं.

नर्सों की कमी से इलाज में देरी

सदर अस्पताल में 15 से अधिक वार्डों का संचालन होता है. यहां रोगियों के लिए 165 से अधिक बेडों की संख्या है. इसके अतिरिक्त अस्पताल में कई जांच केंद्र और ओपीडी का संचालन होता है. जहां नर्सों की तैनाती प्रतिदिन तीन शिफ्ट में की जाती है. इसके लिये सदर अस्पताल में जहां लगभग 150 नर्सों की जरूरत है. वहीं कुल स्वीकृत पद मात्र 50 है. जबकि इसके विरुद्ध मात्र 39 नर्स ही कार्यरत है. इससे एसएनसीयू और चाइल्ड वार्ड, प्रसव केंद्र, एमसीएच ओटी, पीकू वार्ड, आइसोलेशन वार्ड की जिम्मेदारी एक ही वार्ड में तैनात नर्सों पर होती है. इसके कारण कई बार मरीजों के इलाज में देरी का मामला सामने आता है.

एएनएम व पारामेडिकल स्टूडेंट के भरोसे मरीज

नर्सों की कमी के कारण ही सदर अस्पताल प्रबंधन को अपने लगभग सभी वार्ड पारामेडिकल और एएनएम स्टूडेंट के भरोसे चलाना पड़ता है. हाल यह है कि इमरजेंसी, पुरुष मेडिकल, पुरुष सर्जिकल, महिला वार्ड, परिवार नियोजन वार्ड, आईसीयू जैसे अतिमहत्वपूर्ण वार्डों में जहां एक नर्स नियुक्त होती है. वहीं उनकी जगह 8 से 10 एएनएम और पारामेडिकल स्टूडेंट होते हैं. जो खुद तो वहां ट्रेनिंग लेने आये है, लेकिन अस्पताल में बिना किसी मॉनिटरिंग के ये पारामेडिकल और एएनएम स्टूडेंट मरीजों का इलाज करते हैं.

दलाल उठाते हैं फायदा, कई बार नर्स भी देती बढ़ावा

मुंगेर :

सदर अस्पताल में नर्सों की कमी का सबसे अधिक फायदा दलाल उठाते हैं. जो कई बार निजी स्कूलों के पारामेडिकल या जीएनएम स्टूडेंट बनकर मरीजों को बहलाकर निजी क्लीनिक या निजी अस्पताल ले जाते हैं. हलांकि इससे नर्सों को केवल इतना ही फायदा होता है कि उन्हें अपनी ड्यूटी के दौरान वार्ड में जाकर मरीजों को दवा या इंजेक्शन नहीं देना पड़ता. इसमें सबसे अधिक फर्जी पारामेडिकल स्टूडेंट महिला वार्ड, इमरजेंसी, पुरुष वार्ड में दिखते हैं. इसके लिये इन वार्डों से मरीजों को बहलाकर निजी नर्सिंग होम ले जाना आसान होता है.

सदर अस्पताल में दलालों के कारण बढ़ रहे लामा के मामले

मुंगेर:

ऐसा नहीं है कि फर्जी पारामेडिकल टूडेंट बने दलालों का निशाना केवल महिला, पुरूष, इमरजेंसी और आईसीयू वार्ड होता है. इनका निशाना एसएनसीयू वार्ड, जांच केंद्र, पीकू वार्ड भी होता है. जिसके कारण सदर अस्पताल में लामा के मामले भी लगातार बढ़ते जा रहे हैं. इसमें मरीजों के परिजन दलालों के बहकावे में आकर मरीज को बिना अस्पताल को सूचना दिये ही मरीज को लेकर निजी नर्सिंग होम चले जाते हैं. यह हाल तब है, जब खुद स्वास्थ्य विभाग के अपर मुख्य सचिव प्रत्यय अमृत ने अस्पताल में बाहरी लोगों के कार्य पर एक साल पहले ही रोक लगा दी है.

कहते हैं सिविल सर्जन

सिविल सर्जन डा. विनोद कुमार सिन्हा ने बताया कि नर्सों के स्वीकृत पद पूर्व से ही सदर अस्पताल में है. कमी की जानकारी विभाग को कई बार दी गयी है. वहीं सदर अस्पताल में किसी भी वार्ड में निजी पारामेडिकल स्टूडेंट या चिकित्सक के काम करने पर रोक है. किसी वार्ड में निजी पारामेडिकल स्टूडेंट कार्य करते पाये जाते हैं तो संबंधित वार्ड की परिचारिकाओं पर कार्रवाई की जायेगी.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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