देश के विभिन्न प्रांतों के साथ 15 देशों के आनंदमार्गी और संन्यासी ले रहे भाग
तांडव और कौशिकी नृत्य के साथ पारंपरिक रूप से हुआ पीपी दादा का स्वागत
जमालपुर. बाबा नगर जमालपुर में प्रकृति की सुरम्यवादी में स्थित आध्यात्मिक केंद्र में आनंद मार्ग का तीन दिवसीय विश्व स्तरीय धर्म महासम्मेलन शुक्रवार को बाबा नाम केवलम के जय घोष के साथ आरंभ हुआ. इस धर्म महासम्मेलन में देश-विदेश के लगभग पांच हजार श्रद्धालु पहले दिन शामिल हुए. कार्यक्रम का शुभारंभ सामूहिक साधना से हुई. पुरोधा प्रमुख आचार्य विश्व देवानंद अवधूत के आगमन पर आनंद मार्ग सेवा दल के समर्पित स्वयंसेवकों ने उन्हें गार्ड ऑफ ऑनर प्रदान कर उनका स्वागत किया.
पुरोधा प्रमुख ने बाबा आनंदमूर्ति के भव्य चित्र पर माल्यार्पण किया और उन्हें साष्टांग दंडवत कर नमन किया. इसके बाद आचार्य सुष्मितानंद अवधूत और आचार्य संतदेवानंद अवधूत के नेतृत्व संजीव, मनमीत, अंगद, देवचंद्र प्रकाश, बबलू, अतुल और आनंद कृष्ण ने तांडव नृत्य कर पुरोधा प्रमुख का स्वागत किया. धर्म महासम्मेलन में सात समंदर पार के लगभग दर्जन भर देश के आनंद मार्गी शामिल हो रहे हैं. इन आनंदमार्गियों में संन्यासी और मार्गी दोनों शामिल हैं. न केवल पुरुष, बल्कि विदेशी महिलाएं भी धर्म महासम्मेलन में शामिल होने पहुंची है.पुरोधा प्रमुख आचार्य विश्व देवानंद अवधूत ने कहा कि हम सभी जानते हैं कि तीनों गुण सूत्र रज और तम सूक्ष्म से स्थूल की ओर रूपांतरित होते रहते हैं. यह जो बंधन गति दक्षिणावर्त है. वहीं प्रकृति की गति है. कुंडलिनी भी मूलाधार में साढ़े तीन फेरे दक्षिणावर्त ही बांधी हुई है. प्रकृति की इस बंधन गति को खोलने के लिए वामावर्त दिशा में कीर्तन करना पड़ता है. उन्होंने कहा कि संचर धारा में गति सूक्ष्म से स्थूल की ओर होती है. जबकि प्रति संचार धारा में स्थूल से सूक्ष्म की ओर. बंधन गति को खोलने के लिए घर से पूर्व से पूर्व, दक्षिण दक्षिण से पश्चिम और पश्चिम से उत्तर की ओर परिक्रमा करनी होती है. यही कारण है कि अखंड कीर्तन में वामावर्त दिशा में कीर्तन किया जाता है. उन्होंने कहा की आवर्त कीर्तन में गति दक्षिणावर्त होती है. इसका कारण यह है कि 50 मूल वृत्तीय है जो दसों दिशाओं में सक्रिय रहती है. 10 दिशाओं में पूर्व पश्चिम उत्तर दक्षिण ईशान अग्नि नैऋत्य वायु उर्ध्व और अधो दिशा शामिल है.
तांडव नृत्य मानव मस्तिष्क के विकास का एकमात्र उपाय
आनंद मार्ग प्रचारक संघ के केंद्रीय जनसंपर्क सचिव आचार्य कल्याण मित्र आनंद अवधूत ने बताया कि तांडव नृत्य का विशेष महत्व है. इस नृत्य का प्रतिपादन हजारों वर्ष पहले महादेव शिव ने किया था, जिसे कालांतर में मानव जाति भूलने लगे थे. गुरुदेव आनंद मूर्ति ने तांडव नृत्य को पुन: स्थापित किया. उन्होंने कहा कि ऐसा माना जाता है कि तांडव नृत्य मानव मस्तिष्क के विकास का एकमात्र उपाय है और यही कारण है कि इसके लगातार अभ्यास से याददाश्त शक्ति, सृजनात्मक क्षमता और निर्णय लेने की क्षमता का विकास होता है. छात्रों एवं युवाओं के लिए यह एक सर्वोत्तम आसान है. महिलाओं के लिए तांडव नृत्य वर्जित है.
महिलाओं के लिए अमृत है कौशिकी नृत्य
केंद्रीय जनसंपर्क सचिव ने बताया कि आनंद मार्ग के संस्थापक बाबा आनंदमूर्ति ने महिलाओं से संबंधित सभी 22 रोगों की औषधि के रूप में कौशिकी नृत्य का प्रतिपादन किया है. इस नृत्य को करने से महिलाओं और बालिकाओं की समस्त बीमारियों से मुक्ति मिलती है. उन्होंने बताया कि कौशिकी नृत्य करने से लिवर, किडनी, पेनक्रियाज और स्प्लीन पर प्रभाव पड़ता है और बीमारियों से मुक्ति मिलती है. कौशिकी नृत्य का प्रतिपादन बाबा आनंदमूर्ति ने छह सितंबर 1978 को पटना में किया था.
प्रभात संगीत की प्रस्तुति के बाद तीन भाषाओं में किया गया अनुवाद
पुरोधा प्रमुख के आगमन पर आचार्य जगदात्मानंद अवधूत ने प्रभात संगीत का गायन प्रस्तुत किया. अलग-अलग भाषाओं में प्रभात संगीत की प्रस्तुति पर अलग-अलग आचार्य द्वारा हिंदी, अंग्रेजी और बांग्ला में इसका अनुवाद किया गया. हिंदी में वरिष्ठ मार्गी प्रद्युम्न नारायण, अंग्रेजी में आचार्य विमलानंद अवधूत और बंगाल में आचार्य राज मयानंद अवधूत ने अनुवाद प्रस्तुत किया.
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