मोतिहारी.केविवि में गांधीवादी दृष्टिकोण से सामाजिक कार्य: संभावनाएं एवं चुनौतियां’ विषय दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया. संगोष्ठी विश्वविद्यालय के गांधी एवं शांति अध्ययन विभाग, सामाज कार्य विभाग तथा भारतीय गांधीवादी अध्ययन सोसायटी के संयुक्त तत्वाधान में आयोजित की गई.कार्यक्रम के संरक्षक कुलपति प्रो. संजय श्रीवास्तव रहे, जबकि संयोजक प्रो. सुनील महावर थे. संगोष्ठी के दौरान उद्घाटन एवं समापन सत्रों के अतिरिक्त आठ तकनीकी सत्रों का आयोजन किया गया, जिनमें विभिन्न विश्वविद्यालयों के विशेषज्ञों, शिक्षाविदों और शोधार्थियों ने भाग लिया.मुख्य वक्ताओं में प्रो. शीला राय, प्रो. संजय पासवान, प्रो. हिमांशु बौराई, प्रो. प्रेमानंद मिश्रा, प्रो. तपन आर. मोहंती, प्रो. अर्चना शर्मा और प्रो. रजनीकांत पांडेय शामिल रहे.वक्ताओं ने गांधीजी के सामाजिक कार्यों, सत्याग्रह, अहिंसा, ग्रामीण विकास, शिक्षा और समकालीन चुनौतियों पर अपने विचार साझा किए. मुख्य अतिथि प्रो. रजनीकांत पांडेय ने कहा कि गांधी जी ने संगठित समाज को ही संगठित राष्ट्र की नींव माना था. उन्होंने अंतरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्था और भारतीय विकास मॉडल की चर्चा करते हुए भारत को आत्मनिर्भर बनाने और कुटीर उद्योगों को बढ़ावा देने पर जोर दिया. प्रो. रिपु सुदन सिंह ने गांधी द्वारा स्थापित आश्रमों की महत्ता पर प्रकाश डाला. प्रो. हिमांशु बौराई ने गांधी के समाज कल्याण में योगदान और उनके विचारों के समाज पर प्रभाव की चर्चा की. प्रो. अर्चना शर्मा ने “विकास की अवधारणा ” पर प्रकाश डालते हुए कहा कि भारत एक विकासशील देश है और हमें पाश्चात्य संस्कृति के प्रभावों को समझने की जरूरत है.विभागाध्यक्ष डॉ. जुगल किशोर दाधीच ने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि गांधी जी के मूल्यों और सिद्धांतों की वजह से ही चंपारण आज भी जीवित है. संगोष्ठी में 170 शिक्षक, शोधार्थि, छात्र एवं विभिन्न संगठनों के प्रतिनिधि ने भौतिक एवं आभाषी माध्यम से अपने शोध पत्र प्रस्तुत किए. संगोष्ठी के संयोजक प्रो. सुनील महावर रहे, जबकि अनुपम कुमार शर्मा ने मंच संचालन किया. समापन समारोह में स्वागत वक्तव्य संगोष्ठी के आयोजन सचिव डा. जुगल किशोर दधीचि ने दिया.
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