मोतिहारी.महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय के भाषा एवं मानविकी संकाय के तत्वावधान में आयोजित भारतीय ज्ञान परंपरा एवं आर्य भाषाएं विषयक दो दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी का समापन गुरुवार को सभागार में संपन्न हुआ. इस अवसर पर विद्वानों ने भारतीय ज्ञान परंपरा की महत्ता, उसके संरक्षण एवं संवर्द्धन पर अपने विचार व्यक्त किए. समापन सत्र की अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रो. संजय श्रीवास्तव ने भारतीय ज्ञान परंपरा के संरक्षण और संवर्द्धन की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा कि महत्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय इस दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा. उन्होंने घोषणा की कि विश्वविद्यालय के पुस्तकालय में प्राचीन पांडुलिपियों के संरक्षण का कार्य आरंभ किया जाएगा .प्रो. प्रसून दत्त सिंह ने स्वागत उद्बोधन दिया. उन्होंने कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा युगों-युगों से प्रवाहित होती आ रही है और संपूर्ण मानवता को समृद्ध कर रही है. संगोष्ठी के मुख्य अतिथि पद्मश्री प्रो. अभिराज राजेंद्र मिश्र (पूर्व कुलपति, सम्पूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी) ने भारतीय ज्ञान परंपरा की विशेषताओं पर प्रकाश डालते हुए कहा कि “हमारी परंपरा अनादि और अनंत है. डॉ. भूषण कुमार उपाध्याय (पूर्व पुलिस महानिदेशक, महाराष्ट्र सरकार, आईपीएस) ने भारतीय ज्ञान परंपरा की समावेशी प्रकृति पर प्रकाश डालते हुए कहा कि यह संकीर्णता और द्वंद्व से मुक्ति दिलाने वाली परंपरा है. प्रो. उपेंद्र कुमार त्रिपाठी (काशी हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी) ने भारतीय ज्ञान परंपरा की वैज्ञानिकता को रेखांकित करते हुए कहा कि संस्कृत और आधुनिक विज्ञान के बीच की खाई को पाटने की जरूरत है. प्रो. अनिल सौमित्र (भारतीय जनसंचार विभाग, जम्मू) एवं डॉ. मयंक कपिला (मुंशी सिंह लॉ कॉलेज, मोतिहारी) ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के संदर्भ में भारतीय ज्ञान परंपरा को समृद्ध करने की आवश्यकता पर बल दिया. इस ऐतिहासिक संगोष्ठी में विश्वविद्यालय के अनेक विद्वान एवं शिक्षक उपस्थित रहे, जिनमें प्रमुख रूप से प्रो. शिरीष मिश्रा, प्रो. प्रणवीर, डॉ. सपना सुगंधा, डॉ. अनुपम वर्मा, डॉ. परमत्मा कुमार मिश्रा, डॉ. नरेंद्र मोराल, डॉ. सुजीत कुमार, डॉ. नरेंद्र आर्य, डॉ. कल्याणी हजारिका, प्रो. श्याम कुमार झा, डॉ. बबलू पाल, डॉ. गोविंद प्रसाद वर्मा, डॉ. श्यामनंदन, डॉ. आशा मीणा, डॉ. विश्वजीत वर्मन, डॉ. दीपक, डॉ. नरेंद्र, डॉ. चंदोवा बालेंदु नर्सिंग, डॉ. कल्याणी हाजिरी, गांधीवादी संजय सहित अन्य विशिष्ट अतिथि एवं बड़ी संख्या में शोधार्थी एवं छात्र उपस्थित रहे. धन्यवाद ज्ञापन अंग्रेजी विभागाध्यक्ष प्रो. विमलेश कुमार सिंह ने किया, जबकि मंच संचालन अंग्रेजी विभाग के सहायक प्राध्यापक डॉ. उमेश पात्रा ने किया.
इस दो दिवसीय संगोष्ठी के दौरान प्रस्तुत किए गए शोध-पत्रों का “शोध सार-संग्रह ” भी लोकार्पित किया गया। यह पुस्तक भारतीय ज्ञान परंपरा पर किए गए नवीनतम शोध को संकलित करने और व्यापक मंच पर प्रस्तुत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है.
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