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गौशाला परिसर में होती है वैष्णवी दुर्गा की आराधना, नहीं दी जाती है बलि

गौशाला परिसर में होती है वैष्णवी दुर्गा की आराधना, नहीं दी जाती है बलि

मधेपुरा.

जिला मुख्यालय के वार्ड नंबर चार स्थित गौशाला परिसर में सार्वजनिक स्थित दुर्गा मंदिर का इतिहास पुराना है. इस जगह पर मां दुर्गा की पूजा अर्चना वर्ष 2002 से की जाती है. उस समय यह मंदिर दीवाल व टीना से निर्मित घर में था. इस झोपड़ीनुमा कच्चे मकान में बने मंदिर में मां दुर्गा की पूजा की जाती थी. धीरे-धीरे समय बदलता गया और मंदिर को भव्य रूप देने के लिए चर्चा होने लगी. मूलतः यह मंदिर गौशाला परिसर की थी. जिसमें गौशाला से जुड़ी सभी पूजा होती थी व मेला लगती थी, लेकिन स्थानीय लोगों के प्रयास पर इस मंदिर में मां दुर्गा की भी पूजा होने लगी तथा भव्य मेला का आयोजन होने लगा. 2024 में यहां पर स्थायी रूप से प्रतिमा स्थापित की गयी है.

2009 में कच्चे नुमा मंदिर के बगल में भव्य मंदिर का हुआ निर्माण

गौशाला मंदिर की खास बात यह है कि गौशाला परिसर में होने के कारण जिले का एकमात्र मंदिर है, जिसके पास मेले के लिए पर्याप्त जगह है. संस्थापक कमेटी अध्यक्ष लाल बहादुर प्रसाद यादव, सचिव राकेश प्रसाद यादव तथा सदस्य रामाधीन प्रसाद यादव, भुनेश्वर ठाकुर, नरेंद्र प्रसाद यादव, डा दिनेश प्रसाद यादव, अरुण प्रसाद यादव, जनार्दन प्रसाद यादव, दीप नारायण प्रसाद यादव के अथक प्रयास से 2009 में कच्चे नुमा मंदिर के बगल में भव्य मंदिर का निर्माण किया गया. इस कमेटी की भी खास बात यह है कि इस मंदिर में दुर्गा पूजा के स्थापना काल में ही जो कमेटी बनी थी, वही कमेटी आज भी दुर्गा पूजा व मेला के कार्य की देखरेख करती है.

नहीं दी जाती है बलि

गौशाला परिसर स्थित सार्वजनिक दुर्गा मंदिर में मां दुर्गा की पूजा स्थानीय पुरोहितों के द्वारा ही करवाया जाता है. यह मंदिर वैष्णवी मंदिर होने के कारण इस मंदिर में बलि प्रथा का रिवाज नहीं है. जो भी लोग बलि प्रथा के लिए इस मंदिर में आते हैं. पूजा-पाठ करवाकर उन्हें भेज दिया जाता है. वर्षों पूर्व से इस मंदिर में विधि-विधान से मां भगवती की पूजा अर्चना होती आ रही है. दिन-ब-दिन लोगों की आस्था इस मंदिर से बढ़ती गयी. स्थानीय लोगों में मंदिर के प्रति इतनी अटूट आस्था व श्रद्धा है कि माता के दरबार से कोई खाली नहीं जाता है. ऐसी मान्यता और विश्वास है कि यहां सच्चे मन से मांगी गयी मुराद मां जरूर पूरी करती है. दूरदराज से यहां लोग अपनी याचना और फरियाद ले कर पहुंचते हैं. प्रथम पूजा से ही पूजा पंडाल में भक्तों की भीड़ लगनी शुरु हो जाती है.

मिथिला के परंपरा के अनुसार होती है नवरात्रि में पूजा

इस मंदिर में मिथिला के परंपरा के अनुसार नवरात्र पूजा होती है. मंदिर के पूजा की विशेषता यह है की अष्टमी के रोज प्राण प्रतिष्ठा कर मां दुर्गा को छप्पन भोग लगाया जाता है. प्रतिमा की विशेषता है कि पूजा के प्रत्येक दिन मां के रूप में आपरूपी परिवर्तन हो जाता है. मूर्तिकार के दिये रूप से उस दिन मां की प्रतिमा अलग दिखती है. कलश स्थापना से लेकर महानवमी तक नियमित रुप से आरती में शामिल होने वाले श्रद्धालुओं की भीड़ पंडाल में लगी रहती हैं. समिति द्वारा प्रकाश संयोजन भी आकर्षक किया जाता है. जिले से ही प्रतिवर्ष मूर्तिकार प्रतिमा का निर्माण करने आते है. जबकि आकर्षक पंडाल का निर्माण भी जिले के कारीगर के द्वारा किया जाता है. जबकि पूजा के पहले दिन से लेकर के अंतिम दिन तक पूजा के दौरान नगारा बजाने वाले को पश्चिम बंगाल के मालदह जिले से बुलाया जाता है.

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