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वंदे मातरम, भारत की व्यावहारिकता व आत्मगौरव का प्रतीक

यूभीके कॉलेज कड़ामा में शुक्रवार को राष्ट्रीय गीत वंदे मातरम की 150वीं वर्षगांठ पर एक विशेष कार्यक्रम का आयोजन किया गया.

मधेपुरा.

यूभीके कॉलेज कड़ामा में शुक्रवार को राष्ट्रीय गीत वंदे मातरम की 150वीं वर्षगांठ पर एक विशेष कार्यक्रम का आयोजन किया गया. महाविद्यालय के प्रधानाचार्य डॉ माधवेंद्र झा के नेतृत्व में इस आयोजन में राष्ट्रीय सेवा योजना के तीनों पदाधिकारी चंद्रशेखर मिश्र, प्रो प्रेमनाथ आचार्य और प्रो अमरेंद्र झा ने भाग लिया. विश्वविद्यालय के राष्ट्रीय सेवा योजना विभाग द्वारा जारी निर्देशानुसार छात्र-छात्राओं व शिक्षक-कार्मिकों की अच्छी संख्या में इसमें भागीदारी रही. कार्यक्रम का उद्देश्य इस ऐतिहासिक गीत के महत्व को समझना और राष्ट्रभक्ति की भावना को पुनः जागृत करना था. कार्यक्रम को संबोधित करते हुए डॉ चंद्रशेखर मिश्र ने वंदे मातरम के इतिहास और उसकी रचनात्मक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डाला. उन्होंने बताया कि यह गीत भारत की व्यावहारिकता और आत्मगौरव का प्रतीक है, जिसे सुनकर हर भारतीय का हृदय गर्व से भर उठता है. उन्होंने बताया कि यह गीत सात नवंबर 1875 को बंकिमचंद्र चटर्जी द्वारा आनंदमठ के एक अंश के रूप में लिखा गया था व पहली बार बंगदर्शन पत्रिका में प्रकाशित हुआ. मातृभूमि के प्रति इस गीत का संदेश शक्ति, समृद्धि और दिव्यता का प्रतीक है, जिसने भारत की एकता और आत्मगौरव की भावना को प्रोत्साहित किया. यह गीत राष्ट्र के प्रति समर्पण का स्थायी प्रतीक बन गया है.

कार्यक्रम के दौरान उप प्रधानाचार्य डॉ ललन कुमार झा, डॉ शेखर झा और अन्य शिक्षक-छात्र भी उपस्थित रहे. उन्होंने इस अवसर पर भारत की सांस्कृतिक विरासत एवं राष्ट्रीय भावना का सम्मान करने का आह्वान किया.

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