गड़बड़झाला . सैकड़ों करोड़ खर्च के बावजूद नहरों के तटबंध खस्ताहाल
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नहरों की मरम्मत या वारे-न्यारे
गड़बड़झाला . सैकड़ों करोड़ खर्च के बावजूद नहरों के तटबंध खस्ताहाल जिले में नहरों के क्षतिग्रस्त तटबंध को ठीक करने पर बराबर सैकड़ों करोड़ रुपये खर्च किये जाते हैं. लेकिन, इसके बावजूद स्थिति इससे अलग है. क्षतिग्रस्त तटबंध को ठीक करने लेकर इस बार भी टीम गठित की गयी है. अब देखना यह है कि […]
जिले में नहरों के क्षतिग्रस्त तटबंध को ठीक करने पर बराबर सैकड़ों करोड़ रुपये खर्च किये जाते हैं. लेकिन, इसके बावजूद स्थिति इससे अलग है. क्षतिग्रस्त तटबंध को ठीक करने लेकर इस बार भी टीम गठित की गयी है. अब देखना यह है कि परिणाम क्या निकलता है.
मधेपुरा : विगत मंगलवार से हो रही बारिश ने किसानों के चेहरे खिला दिये हैं. धान के मुरझा रहे पौधों को जैसे नयी जिंदगी मिल गयी है. वरना सुखाड़ की आशंका से किसान सहम गये थे. हालांकि, सरकार ने अपनी तैयारी शुरू कर दी थी. जिले में भी कृषि विभाग व जल संसाधन विभाग के मुरलीगंज, राघोपुर व त्रिवेणीगंज प्रमंडल के कार्यपालक अभियंता के साथ जिलाधिकारी ने समीक्षा बैठक कर नहरों की स्थिति की जांच के लिए टीम गठित की.
नहरों में पानी लबालब भरा है लेकिन कई जगह नहर के तटबंध कमजोर हैं. पानी का तेज दबाव सहन नहीं कर पाते और अक्सर टूट जाते हैं और सैकड़ों एकड़ फसल तबाह हो जाती है. यह प्रयास प्रशंसनीय है, लेकिन यहां ठहर कर एक बात पर विचार करना जरूरी है. वर्ष 2008 में कोसी जब तटबंध से आजाद हुई, तो प्रभावित इलाके में नहरें भी बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गयी. केवल नहरों की पुन:स्थापना के लिए करीब डेढ़ सौ करोड़ से अधिक राशि खर्च की गयी.
नहरों की मरम्मत का यह ‘ कठिन’ कार्य डेढ़ दो वर्ष पहले तक चला. लेकिन इतनी राशि खर्च करने के बाद भी नहरों की स्थिति इसी स्थिति में है कि एक बार फिर से इन नहरों की मरम्मत के नाम पर राशि दी गयी है. एक बार फिर इन नहरों की मरम्मत होगी या इसका नाटक किया जायेगा पता नहीं, लेकिन कोसी परियोजना की पूर्वी नहर प्रणाली को थोड़ा समझने की कोशिश करते हैं.
38 टीम गठित कर नहरों की मांगी रिपोर्ट: मधेपुरा जिले में कुल सिंचित भूमि 97650 हेक्टेयर है. इनमें से 30243 हेक्टेयर भूमि की सिंचाई नहर से की जाती रही थी. जिले में औसत से कम बारिश होने के कारण नहरों से जल खेतों तक पहुंचे इसके लिये
प्रशासनिक स्तर पर कार्रवाई की जा रही है़ इस संबंध में समीक्षात्मक बैठक कृषि विभाग एवं जल संसाधन विभाग के तीनों प्रमंडल यथा सिंचाई प्रमंडल, मुरलीगंज, सिंचाई प्रमंडल, राघोपुर एवं सिंचाई प्रमंडल, त्रिवेणीगंज के कार्यपालक अभियंता के साथ की गयी़ तीनों प्रमंडल के अभियंताओं द्वारा नहर के अंतिम छोर तक जल पहुंचाने की सूचना दी गयी़ तीनों प्रमंडल के
अभियंताओं द्वारा नहर के अंतिम छोर तक जल पहुंचाने की सूचना दी गयी, परंतु स्थानीय किसानों से प्राप्त सूचनानुसार नहरों के अंतिम छोर तक जल नहीं पहुंच रहा है़ इसलिए कृषि विभाग एवं जल संसाधन विभाग की 38 संयुक्त टीम गठित की गयी है, जो पूरे चार दिनों में नहरों का स्थलीय निरीक्षण कर प्रतिवेदन समर्पित करेंगे़ जल संसाधन विभाग से अनुरोध कर तीनों प्रमंडल को नहर मरम्मति हेतु अधियाचित राशि उपलब्ध करा दी गयी है़
कोसी परियोजना के थे तीन संकल्प : कोसी नदी पर बराज बनाने से पहले तीन संकल्प लिये गये थे. कोसी क्षेत्र के लोगों को बाढ़ से बचाना, बिजली मुहैया कराना और खेतों में नहरों के जरिये पानी पहुंचा कर सिचाई की सुविधा मुहैया कराना. कोसी पर बराज बनाया गया. परियोजना पूर्ण भी हो गया लेकिन कोसी नदी ने राजनेताओं के सपने और इंजीनियरों की मेहनत पर पानी फेर दिया. एक बड़ी आबादी बाढ़ से प्रभावित होती रही है. तटबंध टूटने का कहर भी लोगों ने कई बार झेला.
बिजली पैदा करने के लिए लगाये गये प्लांट ने भी काम करना बंद कर दिया. पश्चिमी नहर प्रणाली तो कभी शुरू ही नहीं हो सकी और पूर्वी नहर प्रणाली कुछ दशक तक काम करने के बाद गाद भरने के कारण ठप पड़ गयी. इन सभी समस्या का कारण कोसी नदी के पानी में हिमालय से आने वाला गाद था. कोसीवासी गाद के बदले सिल्ट शब्द का ज्यादा प्रयोग करते हैं.
पूर्वी नहर प्रणाली में 1963 में पहली आया था पानी : कोसी परियोजना का काम पूर्ण होने पर तत्कालीन केन्द्रीय सिचाई मंत्री के एल राव ने पूर्वी नहर प्रणाली योजना का शुभारंभ किया. पहली बार 1963 में नहरों में पानी छोड़ा गया. किसानों की बांछे खिल गयी. लेकिन कोसी नदी का सिल्ट धीरे- धीरे नहरों में भी आने लगा. नहर का पेट धीरे-धीरे गाद से भरने लगा और करीब 1992 के बाद नहरों में पानी आना बंद हो गया. एक दशक बाद नहरों की सफाई की गयी तो किसी तरह कुछ नहरों में फिर से पानी आना शुरू हुआ. इसके बाद 2008 में 18 अगस्त को कोसी नदी ने तटबंध से मुक्त हो कर नहरों को जहां-तहां तोड़ कर रख दिया.
केवल मुरलीगंज प्रमंडल में 67 करोड़ का काम : दो साल पहले तक मधेपुरा जिले में ही नहर पुनर्स्थापन कार्य करोड़ों रुपये के उठाव के बावजूद अब तक पूर्ण नहीं हो पाया था. विभागीय अधिकारी की मिलीभगत से संवेदक मालामाल हो गये. किसान आज भी नहर के जगह-जगह टूटने की वजह से फसल खराब होने का दंश झेलते रहते हैं. केवल मुरलीगंज नहर डिवीजन में 67 करोड़ की राशि से कार्य होना था. काम टुकड़ों में पेटी कांट्रैक्टर को दे दिया गया
. अगर राज्य सरकार की सोच के अनुसार पचास फीसदी कार्य भी हुआ होता तो सचमुच नयी कोसी का निर्माण हो जाता लेकिन विभाग के भ्रष्ट अधिकारी और संवेदकों ने इस योजना को पलीता लगा कर अपनी झोली भर ली. नतीजा यह है कि नहरों की स्थिति में जरा सा ही फर्क आया है. काम की समय सीमा बार-बार बढ़ती रही. हाल यह है कि अब भी नहर जहां तहां टूटते रहते हैं. हद तो यह है कि इस कार्य में रिकार्ड विलंब करने के लिये कहीं कोई कार्रवाई भी नहीं हुई.
बार-बार किया जाता रहा आगाह : नहर पुनर्स्थापन कार्य में गड़बड़ी की खबर अखबारों में कई बार प्रकाशित होती रही. लेकिन मुरलीगंज नहर प्रमंडल के तत्कालीन कार्यपालक अभियंता हर बाद लीपापोती करते रहे. हर सवाल पर उनका यही जवाब होता था कि कार्य गुणवत्तापूर्ण हो रहा है. सवाल यह कि अगर कार्य ठीक हो रहा था तो आज भी नहर टूटता क्यों है?
इसकी शिकायत पटना तक गयी है और इसकी जांच भी हुई है लेकिन सारा मामला इस तरह फिट रहा कि न इस मामले में कोई कार्रवाई हुई और न किसानों की किस्मत बदली. अब एक बार फिर इन नहरों की स्थिति समझने का प्रयास किया जा रहा है. उम्मीद है यह प्रयास ईमानदारी से किया जायेगा और मरम्म्त का कार्य भी ठोक बजा कर होगा.
कोसी नदी के लिए 753 करोड़ की बनी योजना
वर्ष 2008 में आयी बाढ़ के बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने नहर पुनर्स्थापना कार्य योजना की शुरूआत की. उन्होंने सुपौल के वीरपुर में विशाल आमसभा कर कार्यारंभ कराया था. करीब 753 करोड़ की योजना बनी. इसमें बराज के पास कोसी नदी से सिल्ट हटाना आदि जैसे कार्य सहित पूर्वी नहर प्रणाली के अंतर्गत आने वाले सभी नहरों की पुनर्स्थापना करना आदि शामिल था. नहर के काम के लिए ग्लोबल टेंडर किया गया. काम जेकेएम कंस्ट्रक्शन को मिला.
कार्य 31 मार्च 2012 तक पूर्ण होना था. पूर्वी नहर प्रणाली के तहत सुपौल, मधेपुरा, सहरसा, अररिया, पूर्णिया, किशनगंज और कटिहार जिले में नहरों का जाल बिछा हुआ है. लेकिन इस योजना में करोड़ों रूपये खर्च करने के बावजूद लक्ष्य नहीं पाया जा सका. काम हुआ लेकिन गुणवत्ता को ताक पर रख दिया गया.
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