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लोगों को एनएच-106 का इंतजार

मधेपुरा जिले में राष्ट्रीय उच्च पथ के नाम पर एनएच-106 व एनएच-107 है. दुखद स्थिति यह है कि इन सड़कों को एनएच का नाम तो दे दिया गया, लेकिन इसे अमलीजामा पहनाने में इलाके के जनप्रतिनिधि कमजोर साबित हो रहे हैं. एनएच बनने की घोषणा के बाद भी बीच-बीच में एनएच 106 को लेकर विभिन्न […]

मधेपुरा जिले में राष्ट्रीय उच्च पथ के नाम पर एनएच-106 व एनएच-107 है. दुखद स्थिति यह है कि इन सड़कों को एनएच का नाम तो दे दिया गया, लेकिन इसे अमलीजामा पहनाने में इलाके के जनप्रतिनिधि कमजोर साबित हो रहे हैं. एनएच बनने की घोषणा के बाद भी बीच-बीच में एनएच 106 को लेकर विभिन्न जनप्रतिनिधियों के बयान आते रहते हैं. इन बयानों को सुन कर लोगों को यह लगने लगता है कि अब एनएच 106 कुछ ही साल में तैयार हो जायेगा. लेकिन ऐसा लगते हुए भी एक दशक बीत चुका है.

मधेपुरा : जिले से गुजरने वाले एनएच का निर्माण अब स्वप्न लगने लगा है. इस मार्ग के एनएच में परिवर्तन किये जाने के पीछे तत्कालीन सरकार की मंशा थी कि अंग क्षेत्र का कोसी, मिथिलांचल के बीच सीधा संबंध स्थापित हो सके. इन इलाकों की दूरियां भी कम हो सके. इसके अलावा नेपाल की सीमा तक पंहुचने के कारण इस सड़क का सामरिक महत्व भी है. इस सड़क के निर्माण से जहां क्षेत्र को विकास का नया आयाम मिलेगा वहीं बेरोजगारों को रोजगार भी. लेकिन सपना पूरा होने से पूर्व ही टूट कर बिखरता नजर आ रहा है. दियारा के लोगों को अपनी इस संभावित लाइफ लाइन का अब भी इंतजार है.
कोसी, मिथिलांचल के साथ-साथ पड़ोसी राष्ट्र नेपाल का अंग क्षेत्र व झारखंड से संबंधों में प्रगाढ़ता लाए जाने के उद्देश्य से वीरपुर-वीहपुर मार्ग को एनएच-106 के रूप में परिणत किया गया था. लेकिन, शिलान्यास के 14 वर्ष बीत गये हैं. बातें हवा हवाई साबित हो रही हैं. एनएच का निर्माण नहीं होने से जिला सहित उदाकिशुनगंज अनुमंडल क्षेत्र उपेक्षित है. पांच जुलाई 2001 को तत्कालीन एनडीए सरकार के भूतल परिवहन राज्य मंत्री भुवन चंद्र खंडुरी की उपस्थिति में भारत सरकार के नागरिक एवं उड्डयन मंत्री सह स्थानीय सांसद शरद यादव ने जिला मुख्यालय के बीपी मंडल चौक पर मार्ग का शिलान्यास किया था. इस शिलान्यास समारोह में राजद सरकार के मंत्री व विधायक भी उपस्थित थे.
काम के नाम पर बस सर्वे : विश्व बैंक के पैसे से निर्मित होने वाले इस सड़क को लेकर विभाग के पास प्लान है लेकिन शीघ्र क्रियान्वयन के आसार नजर नहीं आते.विश्व बैंक की टीम ने सर्वेक्षण में दस किमी लंबे पुल की जरूरत बतायी लेकिन विभाग के पास केवल साढ़े चार किमी पुल बनाने की योजना थी. फिलवक्त लंबे से समय से प्रतीक्षित और कोसी प्रलय के दौरान लाइफ लाइन बनी इस सड़क के पूर्णत: राष्ट्रीय राजमार्ग में तब्दील होने का इंतजार करोड़ों लोगों को है.
विश्व बैंक के कर्ज से होना था निर्माण : जानकारी के अनुसार वर्ष 2011 के नवंबर माह में विश्व बैंक की सहायता से देश के 33 और राज्य के सात राष्ट्रीय राजमार्गों को टू – लेन में परिवर्तित किया जाना था, इसमें कोसी क्षेत्र का एनएच-106 भी शामिल है. इसे लेकर विश्व बैंक की टीम ने विभागीय अधिकारी के साथ नाव से कोसी नदी पार कर भागलपुर जिले के बिहपुर तक का सफर कर जायजा लिया था. कोसी नदी की लंबी दूरी तक कटाव को देख टीम ने उदाकिशुनगंज से आगे काम कर पाने में असमर्थता जाहिर कर दी थी. टीम का मानना था कि कोसी में कम से कम 9 से 10 किलोमीटर का पुल बनाया जाना है. लेकिन वर्तमासन बजट में यह संभव नहीं है.

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