उदाकिशनु : गंज अनुमंडल व्यवहार न्यायालय स्थापना के एक वर्ष बाद अब मुख्यालय में सर्वे कोर्ट स्थापना की मांग उठने लगी है. इसके लिए अधिवक्ता ही आगे आने लगे है. चूंकि सर्वे कोर्ट नहीं रहने के कारण भूमि विवाद निबटारा कराने में लोगों को काफी परेशानी हो रही है. अनुमंडल मुख्यालय में सर्वे कोर्ट की स्थापना 1985 ई में की गयी थी.
तब लोगों को लगा था कि अब सस्ता व सुलभ न्याय मिल सकेगा. किंतु तीन महा बाद ही सर्वे कोर्ट को यहां से हटा कर सहरसा ले जाया गया. विभागीय पदाधिकारी के दोषपूर्ण नीति के कारण अनुमंडल के विभिन्न गांव में व्याप्त भूमि विवाद का निबटारा कराने के लिए लोगों को 67 से 89 किमी दूर सहरसा जाना पड़ा.
जिससे लोगों को आर्थिक नुकसान के साथ – साथ शारीरिक और मानसिक मानसिक परेशानियों का सामना करना. हालांकि बाद में अधिवक्ताओं के पहल पर ही 2005 ई में सप्ताह में दो दिन कैंप सर्वे कोर्ट स्थानीय डाक बंगला भवन में शुरू तो किया गया परंतु फिर वहीं हाल हुआ और 2008 में पुन: कोर्ट स्थानांतरित कर सहरसा ले जाया गया.
हालांकि एक बार फिर चंद दिनों के लिए सहरसा से सर्वे कोर्ट अनुमंडल मुख्यालय लाया गया और कोसी परियोजना के आइबी में चलाया गया. लेकिन चंद माह के बाद ही उन्हें विभागीय पदाधिकारी पुन: कोर्ट को लेकर सहरसा चले गये. ऐसी स्थिति में यहां के लोगों की परेशानी फिर बढ़ गयी.
किंतु विभागीय पदाधिकारी विगत पांच वर्ष पूर्व सहरसा से कोर्ट स्थानांतरित कर जिला मुख्यालय मधेपुरा लेकर चले आये. फिर भी यहां लोगों की परेशानी बढ़ी की बढ़ी रह गयी. कुछ दूरी कम जरूर हुई है.
लेकिन यहां के अधिवक्ताओं की मंशा है कि सर्वे कोर्ट अनुमंडल मुख्यालय में चालू किया जाय. अधिवक्ता हीरानंद झा व विनोद कुमार मेहता ने कहा कि वे विधि मंत्री से पत्राचार कर इस समस्या को उठाने जा रहे है. अगर जरूरत पड़ी तो पटना जा कर विधि मंत्री से मिलकर अपनी मांग से अवगत करेंगे.
इस तरह विभागीय पदाधिकारी के गलत रवैये से यहां के लोगों को परेशानी उठानी पड़ रही है. आखिर अनुमंडल मुख्यालय में सर्वे कोर्ट चलाने से विभागीय पदाधिकारी कर्मचारी कतराते क्यों हैं? बार बार कोर्ट के स्थान परिवर्तन करते रहने के पीछे इनकी मंशा क्या रही है. यह सवाल जरूर उठ रहा है.