मधेपुरा : विद्युत करंट का अवांछित प्रवाह पोल या अन्य माध्यम से न हो ताकि जानमाल की रक्षा हो सके, इसलिए इंसूलेटर का प्रयोग किया जाता है. गत दिनों जिले के विभिन्न इलाकों में इंसूलेटर के पंक्चर होने की वजह से कई दुर्घटनाएं हुई हैं. बिहार में बिजली पोल पर पोर्सलीन इंसूलेटर का इस्तेमाल बिजली विभाग के द्वारा किया जाता है. चिकनी सतह वाले इस इंसूलेटर पर पानी नहीं टिकने की क्वालिटी की वजह से इसे बेहतर इंसूलेटर समझा जाता रहा है.
किसी जमाने में यूरोप तथा जापान से आयतित पोर्सलीन इंसूलेटर अपनी गुणवत्ता तथा लंबे समय तक उपयोग रहता था, लेकिन इन दिनों इंसूलेटर की खराबी की वजह से हो रही दुर्घटनाएं हो रही है. यह भी माना जाता है कि थंडरिंग जोन (वज्रपात व तेज बिजली कड़कने वाला क्षेत्र) में इंसूलेटर गरम हो जाने की वजह से खराब होने की आशंका अधिक रहती है. इंसूलेटर की गड़बड़ी की वजह से हुए दुर्घटना में जहां मुरलीगंज में एक साथ छह लोगों की जान चली गयी है. वहीं इस तरह की दुर्घटनाओं में वर्ष 2016-17 में 27 लोगों के मौत की सूचना विद्युत विभाग के पास है. इनमें से 11 लोगों को मुआवजा भी विभाग ने दिया है. विभाग अगर बेहतर इंसूलेटर का इस्तेमाल करें तो जान माल को सुरक्षित किया जा सकता है.
मुरलीगंज से कुमारखंड पावर सब स्टेशन तक जाने वाली 33 हजार वोल्ट का तार सुप्रीमो कंपनी ने लगाया है. नई लाइन बनने से अबतक लगभग 56 इंसूलेटर बदला जा चुका है. बराबर पंक्चर होने की वजह से ब्रेक डाउन हो जाता है. इंसूलेटर खराब होने के कारण कई बार तार टूटने की भी घटना हुई है. वहीं छह माह पूर्व तीन पोल गिर जाने की वजह से तीन दिन तक यह लाइन बाधित रही है. अभी भी इस लाइन में बराबर इंसूलेटर पंक्चर होने से ब्रेक डाउन होने की सूचना प्राप्त हो रही है.
33 हजार वोल्ट की नई लाइन का निर्माण कर मधेपुरा से मुरलीगंज पावर सब स्टेशन को जोड़ा गया है. गोपी कृष्णा कंपनी द्वारा बनायी गयी यह लाइन भी इंसूलेटर के बार-बार उड़ जाने के कारण अबतक शुरू नहीं हो पायी है. चेकिंग के दौरान नो लोड की स्थिति में इस लाइन में करंट दौड़ाते ही इंसूलेटर पंक्चर होने के बाद फॉल्ट आ जा रहा है. जिसकी वजह से ब्रेक डाउन हो जाता है. यही कारण है कि मधेपुरा से मुरलीगंज अब तक पूराने लाइन से ही विद्युत आपूर्ति की जा रही है.
कम दर पर निविदा लेने की होड़: विद्युत विभाग द्वारा सारी निविदा केंद्रीयकृत व्यवस्था के तहत की जाती है. स्थानीय तौर पर एक स्विच तक खरीदने का अधिकार नहीं होता है. निविदा के दौरान कम दर पर निविदा लेने की होड़ कहीं न कहीं घटिया निर्माण को बढ़ावा देती है. इस पर लगाम लगाने का प्रयास करने वाले स्थानीय अधिकारियों पर भी संवेदक आरोप लगाने से बाज नहीं आते. यही कारण है कि अधिकारी भी फूंक फूंक कर ही कार्रवाई करते हैं. अधिकतर निर्माण कार्य आनन-फानन में कार्यपूरा हुआ है. ऐसी स्थिति में जिलास्तर पर समग्र जांच से ही लाइन की गुणवत्ता तथा इस्तेमाल किये गये सामान की गुणवत्ता का पता चल पायेगा.